Gurudosha in Hindi गुरुदोष
गुरुदोष
दोंनो भौहों का बीच को कूटस्थ व आज्ञा पाजिटिव चक्र कहते है!
क्रियायोग साधना सारे दुःख का निवारण करेगा!
सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन
मे वरुण मुद्रा में बैठिए!
कनिष्ठा अंगुलि को अंगुष्ठ से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें।
रूखेपन की कमी, और चिकनाई में वृद्धि, चर्म में मृदुत्व होना, मुहासों को नष्ट करना, और चहरा मे सुंदरता का बढ़ाना, रक्त विकार और जलतत्व की कमी से उत्पन्न हुआ रोगों को दूर करने में लाभकारी
है!
स्वाधिष्ठान चक्र में तनाव लगाईये!
स्वाधिष्ठान चक्र में मन और दुष्टि लगाईये!
हम अभी 108 बार स्वाधिष्ठान चक्र में ‘वं’ का उच्चारण करेंगे!
इस के बाद 108 बार स्वाधिष्ठान चक्र में ब भ म य र ल
अक्षरों का उच्चारण करेंगे!
41 दिन प्रातः और शाम दोनों समय में करना चाहिए!
Urino-genital system, मेरुदंड,
appendix, जीब का संबंधित समस्याए, और क्रोधपूरित स्वभाव कम होना, इन सभी में लाभ होगा!.
विवाह, विद्या संबंधित विषयों में लाभ प्राप्ति होगा!
स्वाधिष्ठान चक्र गुरु का स्थान है!
इन का बाए तरफ यानी इडा पक्ष में मिथुन राशि, और दाहिने का पक्ष में यानी पिंगळा की तरफ कर्काटक राशी उपस्थित है!
इस से गुरुदोष निवारण होगा!
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