Vasudeva kriya 3 & 4 in Hindi. ( वासुदेवक्रिया)
ओं श्री योगानंद गुरुपरब्रह्मने नमः क्रिया 3 :-- वासुदेवक्रिया— सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! कूटस्थ मे दृष्टि रखे! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा ढीला रखीए! खेचरी मुद्रा में रहिये! मुह पूरा खोलके ही रखना चाहिये! जीब को पीछे मूड के तालु में रखना चाहिए! इसी को खेचरी मुद्रा कहते है! दोनों हाथो के अंगुलियों एक दूसरे का अन्दर दबाके मिलाके रखना चाहिए! उन दोनों हाथो को नाभी का नीचे रखना चाहिए! अब आस्था आस्था ( slowly & tenderly) सरलता से नाभी का नीचे वाला उदर यानी पेट दबाते हुए श्वास को अन्दर लेते हुए मूलाधाराचक्र में ‘ॐ’, स्वाधिष्ठान में ‘न’, मनिपुरचक्र में ‘मो’, अनाहताचक्र में ‘भ’, विशुद्धचक्र में ‘ग’, आज्ञा पाजिटिव चक्र में ‘व’ कहते हुए कूटस्थ तक श्वास को अन्दर खीचते हुए आरोहणा क्रम में लेजाने चाहिए! कूटस्थ में मन और दृष्टी रखना चाहिए! अंतःकुंभक करना चाहिए! अंतःकुंभक करते हुए गर्दन को दाहिने तरफ घुमाके आज्ञा नेगटिव चक्र में ‘ते’, बाए तरफ घुमाके ‘वा’ और ग