तीसरी आँख ----क्रियायोग(प्रथम भाग)

                                                                              
         तीसरी आँख
         क्रियायोग
                                                                    स्फूर्ति: श्री श्री परमहंस योगानंद
  रचना: कौता मार्कंडेय शास्त्रि  
                                                                    
             


  
         ॐ श्री योगानंद गुरु परब्रह्मणेनमः
शरीर—समस्थिति:
ह्रदय फेफडे रक्तप्रसरण और मॉसफेसी(Muscles)का स्पंदनो में गभराहट नहीं होने चाहिए! निश्शब्द निश्चलता, और स्थिरत्व होने और तनावरहित देह मानसिक प्रशान्तता देगा! अथात शक्ति वृधा नहीं होगा! साधक शरीर  को रिलाक्स(relax) करना चाहिए! एकाग्रता को वृद्धि करना है! शक्ति को शरीर  से उपसंहार कर के चेतानापूर्वक मेरुदंड और मस्तिष्क(cerebrum)का अन्दर दिशानिर्देश करा सकता है! शरीर को सभी स्पंदनो से दूर करना चाहिए! चंचल शरीर आध्यात्मिकता को दोहद नहीं करेगा!
कुछ लोग बाहर से देखने के लिए आरोग्य दिखाई देता है परंतु आंशिक रूप से तनाव स्थिति में रहते है! उन लोगों का पादं पाणी गुदास्थान शिशिनं और मुख इति कर्मेन्द्रिया शांत दिखाई देता है पर असली में आँख नाक कान जीब त्वचा इति ज्ञानेंद्रियों चंचल होता है! वैसा शरीर आंशिक रूप से तनाव स्थिति में होक क्रमशः थक जाते है!
दीर्घ अंतःकुंभक और बाह्य कुंभक करने साधक का फेफडे चंचलरहित स्पंदन निश्शब्द शांति सन्नाट स्थिति में होता है! ह्रदय का स्पंदनो कम कराने को  दोहद करेगा! वैसा देहा परिपूर्ण समस्थिति में है कहा सकते है! 
गहरा नीँद में मनुष्य का चेतन और प्राणशक्ति अप्रयत्नपूर्वक ही साधक का इन्द्रियों माँसपेशियों शिरा फेफडे डयाफ्रं ह्रदय इत्यादि से विमुक्त होके रहेगा! इसीको अचेतानापूर्वक शांत स्थिति कहते है!
क्रियायोग प्राणायाम पद्धतियों का माध्यम से चेतनापूर्वक मन और शक्ति को वष कर के इन्द्रियों माँसपेशियों शिरा फेफडे डयाफ्रं ह्रदय इत्यादि से उपसम्हारण करा सकता है!
डयनमो का बल्ब फट्ने से उस का अंदर का विद्युत् उस डयनमो का अन्दर पहुँच जाता है! वैसा ही मराहुआ शरीर का प्राणशक्ति और चेतना परमात्मा का(Cosmic Energy) शक्ति और चेतना(Cosmic Consciousness)नामका डयनमो का अंदर पहुंच जाता है! डयनमो का तार पूरा मत निकालिये! उस टूटी हवी बल्ब का स्थान में और एक बल्ब लगाने से उस डयनमो फिर चालू होजायेगा! उन तारे पूरा खराब होने से कुछ नहीं करसकता उपयोग नहीं है! उस का अन्दर का विद्युत् उस डयनमो का अन्दर जाएगा! मराहुआ शरीर एक बल्ब जैसा है! मानव प्राणशक्ति और चेतना एक डयनमो जैसा है! ए परमात्मा का डयनमो से ही आया है! अथात मनुष्य शरीर का प्राणशक्ति और चेतना अपना भूमि और भूम्याकर्षनों से विमुक्त होने तक इस बल्ब यानी शरीर जोड़ा जाता है! अथात मरणं इच्छाओँ यानी तारों का अंता नहीं है, वह केवल टूट होने बल्ब जैसा है!
मनुष्य चेतानापूर्वक शान्तस्थिति को क्रियायोगासाधाना द्वारा साध्य करना है! इन्द्रियों से, मन से, माम्स्फेसीयों से ह्रदय से फेफडों से गुर्दो से अपना इच्छा से विमुक्त होने का स्थिति लभ्य करना चाहिए!
दैडने समय शरीर नाम का बल्ब अधिक तेज से प्रकाशित होता है! शरीर को उपयोग करने रीति का मुताबिक़ वह जलता है! ध्यान बिल्कुल नहीं करने मनुष्य का शरीर ज्यादा कम कांती से जलेगा! यह ही मरण का उप्पर मनुष्य का विजय! मन और प्राणशक्ति का कारण मनुष्य को इस जड़शरीर का साथ संबंध होता है! जोभी काम कारता है उस काम  मन और प्राणशक्ति साथ मिलके करता है! प्रयत्न का साथ विचारें और प्राणशक्ति दोनों को उपसंहरण करना अत्यंत आवश्यक है! मनुष्य चेतना और प्राणशक्ति दोनों एक गाँठ जैसा है! इस गाँठ को निकालना चाहिए तब परमात्मा का अनुसंथान आसान होजायेगा!
अवयवों और माँसपेशों विश्रांत होने से भौतिकशरीर का अन्दर का कण नाशन कम होजायेगा! नाश हुआ कणों को इस विश्रांत पद्धति से पुनरुद्धन करा सकते है!
नेत्रों को बंद करके रेचकं करना है! इन्द्रियों से श्वास और ध्यास को उपसंहरण करना चाहिए! ह्रदय और रक्तप्रसरण को अपना इच्छा शक्ति से व्याकुलतारहित करसकते है!  शरीर का अंदर का जोभी अवयव शांत करने को उस अंग को प्रथम में तनाव(Tense) करना चाहिए! ॐ नमःशिवाय अथवा ॐ नमो भगवते वासुदेवाय इति तीन या चार बार मन में स्मरण करके रिलाक्स(Relax) करना चाहिए! तब पूरा शरीर तनावरहित होजायेगा! अगर शरीर रोगग्रस्थ होने से उस शरीर का अंगों में तनाव थोड़ा ही करना चाहिए! 
मानसिक प्रशान्तता के लिये साधक का एकाग्रता भंग करने और बाधा पहुंचाने विचारों से मन को दूर करना चाहिए! कूटस्थ में दृष्टि रखना चाहिए! कोई भी भगवान का नाम यानी उदाहरण के लिए ॐ नमःशिवाय अथवा ॐ नमो भगवते वासुदेवाय इति उच्चारित करते हुवे नीँद में गिरना चाहिए!  इस प्रकार क्रमशः वैसा अपना इच्छा का अनुसार सोना जागना विचारों से अलग होना अभ्यास करना चाहिए! कितना भी तकलीफ हो परमात्मा का उप्पर अचंचल भक्ति और विश्वास होना अत्यंत आवश्यक है! तब साधक मानसिक प्रशान्तता में है करके गिनादेगा! जितना भी चंचल जीवन बिताने से भी क्रियायोग ध्यान पद्धतियों का माध्यम से मन को नियंत्रण करसकते है!
सम+अधि= समाधि! परमात्मा का साथ अनुसंथान करना ही समाधि है! अपना इच्छा का अनुसार समाधि स्थिति पानेवाला साधक हर समय में चंचलरहित विश्रान्त शांति जीवन बिता सकता है! स्वल्प प्रमाण से भी अशांति नहीं होने साधक शरीर धन भार्या भर् स्थिर और चर संपत्तियों कुल जाती प्रदेश संस्कारों राग द्वेष काम क्रोध लोभ मद और मात्सर्य इति अरिषड्वर्गों मनो बुद्धि चित्त अहंकार इति अंतःकरण इत्यादि सर्वविशयों से विमुक्त होके परिपूर्ण निश्चलस्थिति लभ्य करेगा! मनुष्य अन्दर का नकारात्मक शक्तियों मनुष्य को भौतिक मानसिक और आध्यात्मिक रुग्मतायें भय दरिद्रता दुःख पराजित होना इत्यादियोँ का हेतु है! नकारात्मक शक्तियों को नियंत्रण करने पद्धतियां ऋषि लोगों ने आविष्कार किया!
 दो मार्ग:
मनुष्य का जीवन में दो मार्ग सामने आते है! चंचल मानसिक विचारें और रोगभूयिष्ट दुःखपूरित जीवन प्रथम है! निश्छल परिपूर्ण आनंदमय जीवन दूसरा है!
देश काल और उनका साथ आनेवाले कष्ट नष्ट बंधों और संबंधों को सुनिशित रूप से सावधान होना आवश्यक है! दुःख का कोई भी वजह नहीं होता है!
जो दुःख को अनुभव करता है उस मनुष्य का गुण का अनुसार दुःख का तीव्रता होता है! अंधेरा का बाद रोषनी अवश्य आएगा! जो साधक मन को अपना वश में रखेगा उस को ए कष्ट नष्ट बंधों और संबंधों का पीड़ा से विमुक्त होगा! मानसिक दुर्बलता ही इन दर्दों का हेतु है! कष्ट नष्टों से अतीत होना ही जीवन है! अनुभवज्ञों का सलहा सुनना ही युक्त है! ज्ञानी लोगों का सलहा पाकर सद्गुरु का पास शारीरक मानसिक और आध्यात्मिक शिक्षणा लभ्य करना चाहिए! वैसा साधक अपना अंतर्वाणी(Intuition) नामका नायक (Hero) को जाग उठायेगा! जीवन परमार्थ समझेगा! रोगरहित होकर परमानंद में डूब रहेगा!
अज्ञानि किसी का बात नहीं सूनेगा! ‘अपना खरमा है’ करके अपने आप को और दूसरो को गालीदेते हुवे जीवन बिताएगा! आखरी में क्रोध से अत्यंत रोगभूयिष्ट और दयनीय स्थिति पायेगा! क्रोध एक बीमारी है! वह असूया द्वेष प्रतिशोध सामने आने वाले को नाश करने भावना का वृत्त में गिर पडेगा! भेजा का नाड़ी फट(Brain Paralysis) जाएगा! आखरी में पागलपन का मार्ग में गिरादेगा!
जब क्रोध आता है तब ‘ॐ’ उच्चारण 54 अथवा 108 बार कूटस्थ में दृष्टी और मन रखा के करना चाहिए!
भय एक और माया रोग है! काम करने ढर, संकल्प किया कार्य होगा नहीं होगा करके ढर, इत्यादि! डरपोक अपने आप का शत्रु है! संकल्पित कार्य नहीं होने के लिए बीज भीज अपना संशय से ढरपुक खुद ही डालारहे! क्रियायोगध्यान करने से क्रोध भय इत्यादि अवरोधक शक्तियों को निकाल्सकते है! अपना अन्दर का धीरता विश्वास धैर्य और निश्चयात्माक शक्ती को वृद्धि अभिवृद्धि करा सकता है साधक!
कातरता भय अधैर्य और अपने आप में विश्वास नहीं हुआ लोगों से दूर रहना चाहिए! परमात्मा को विश्वास कीजीये! संतृप्ति और दुःखद लोगों को परमात्मा का अनुसंथान कभी भी लभ्य नहीं होगा! साधक का मन पूरा परमात्मा का विचारों से भरकर रहना चाहिए! तब परमात्मा का साथ अनुसंथान अवश्य लभ्य होगा!
एक शेर का बच्चा यादृच्छिक भेड़ों का ज्ञुंड बीच में मिल के उन समूह का साथ बड़ा होगया! वह उन का साथ बड़ा होते हुवे भेड़ों जैसा ‘में में’ बोलना और कातर भी बनगया!
एक दिन एक बड़ा शेर भेड़ों का ज्ञुंड का पास आया! सभी भेड़ों जैसा ‘में में’ बोलते हुवे  उस शेर को भागता हुवा देखकर अचंभा होकर उस को एक पकड़ कर पानी का ताल का पास लेकर उस का प्रतिबिंब दिखाया! तुम मेरा जैसा एक शेर हो करके उस का भीरुता दूर करदिया! वैसा ही मनुष्य वस्तुतः धीर है! परंतु अपना आस पास का लोगों से भीरुता सीखता है! इसीलिए सब से स्नेह नहीं करना, ज्यादा से ज्यादा से धैर्यवान लोगों का साथ  संबंध रखना चाहिए!
सोने के पहले शांती से कूटस्थ में मन और दृष्टी लगा के बैठना है! केवल परमात्मा का उप्पर ध्यान करना है! सोके उठने का बाद 30 मिनट शांती से कूटस्थ में मन और दृष्टी लगा के बैठना है! केवल परमात्मा का उप्पर ध्यान करना है! मनुष्य का जीवन सफलता का दिशा निर्देश का यह ध्यान अत्यंत आवश्यक है!
संस्कारों का अर्थ आदते! वे अच्छा और बुरा करके दो प्रकार का है! वे मनुष्य का जीवन में मुख्यपात्र पोषण करेगा! मनुष्य कभी कभी अच्छा काम करना चाहता है! परंतु बुरा संस्कारों का पात्रता का हेतु मनुष्य का अन्दर अधिक होने से जानते हुवे भी बुरा करेगा! वैसा ही अच्छा संस्कारों का पात्रता मनुष्य का अन्दर अधिक होने से गलत परिस्थितियों में भी अच्छा काम ही करवाएगा! मनुष्य नश्वर आत्मस्वरूपी है! संस्कारों, अच्छा और बुरा, दोनों शुद्धात्मा का लक्षण नहीं है! उन का वश में नहीं होना चाहिए! आत्मा का दिशा निर्देशन में ही काम करना चाहिए!
सु संस्कारों और दुष्ट संस्कारों का युद्ध फलितों का उप्पर आधारित है आरोग्य, सफलता और ज्ञान! मनुष्य बचपन से ही अच्छा सांगत में रहने चाहिए! धन कार स्त्री इत्यादि भौतिक वस्तुवों में व्यामोह रखनेवाले लोग वैसा ही व्यक्तियों का स्नेह स्वीकार करेंगे! बुरा संस्कार लोग अपना वाग्दान नहीं निभाएंगे!प्रयत्न भी नही करेंगे! आध्यात्मिकता को पसंद करने लोग बचपन से ही पवित्रमंदिरों में जाना और पवित्र साधू सद्गुरुवों का सलहा लेना करते है!
संस्कारों:
बुरा संस्कारों तात्कालिक सुख दे सकते है! मगर ऐ विषपूरित संस्कारों का आदते आखरी
में घोर परिस्थितियों का मार्ग में लेजाएगा! उन में ही वेदानापूर्वक भौतिक मानसिक और आध्यात्मिक रुग्मतों से व्याकुलत होजायेगा! मनुष्य जान्बूच के गलतियाँ नहीं करते है! गतजन्मों से जोड़ा हुआ बुरा संस्कारों जादा तरह हेतू है! परमात्मा मनुष्य का प्रसादित किया इच्छाशक्ति का माध्यम से क्रियायोगाध्यानातत्पर होक बिना गलती करते हुवे मनुष्य अपना जीवन बिता सकता है!
अच्छा हो या बुरा हो वे संस्कारों मनुष्य ने ही सृष्टि किया है! इसीलिए मनुष्य का मनोक्षेत्र को क्रमशिक्षणा से हल चलाना है! सुसंस्कारित बीजों बोना चाहिए! दुष्ट संस्कारित बेकार पौधों को सहिष्णुता से उखाड़ के फेकना चाहिए! इन्द्रियों का क्षणिक सुखों को आत्मा का शास्वतानंद से तुलना कर के युक्तायुक विचक्षना ज्ञान से पहिचान से समझना चाहिए!
आध्यात्मिकता बाज़ार में मिलने वास्तु नहीं है! निरंतर क्रियायोगसाधना से ही परमात्मा का साथ अनुसंथान लभ्य करेगा! वह गुफों में शीतल पर्वतों आग का बीच में बैठक करने से कठोर उपावासों इत्यादि से साध्य नहीं है! कितना वर्षों ध्यान किया इति परिगण में नहीं आयेगा, कितना तीव्रता और आर्द्रता से ध्यान किया इति परिगण में आयेगा! पहले दैवसाम्राज्य में कदम रखो, तब हर एक धर्मबद्ध चीज साधक को लभ्य होजायेगा! सब मनुष्य परमात्मा का बच्चे है! प्रति एक मनुष्य परमात्मा का अंश और अवतार है! अव यानी नीचे तारा यानी आना!
परमात्मा को केवल निश्शब्द में ही लभ्य करसकते है! विचारों को बँद करके केवल निश्शब्द में ही परमात्मा का साथ अनुसंथान करसकते है!
बहुत ही अंतर्गत स्पंदनों का साथ जोड़ा हुआ है इस भौतिक शरीर! बहुत ही अंतर्गत कणों (Cell) का स्पंदनों का साथ जोड़ा हुआ है अंतर्गत गति! बहुत ही अंतर्गत मालीक्यूल (Molecule) का स्पंदनों का साथ जोड़ा हुआ है अंतर्गत कणों (Cell)का गति! बहुत ही अंतर्गत अणुओं(Atom)का स्पंदनों का साथ जोड़ा हुआ है अंतर्गत मालीक्यूल(Molecule) का गति! बहुत ही अंतर्गत परमाणुओं(Atom)का स्पंदनों यानी एलक्ट्रांस(Electron) प्रोटोंस(Proton) न्यूट्रांस(Neutron)  पाजिट्रान्स्(positron) और मेसांन्स्(Meson) का साथ जोड़ा हुआ है अंतर्गत अणुओं(Atom) का गति! इन सारे स्पंदनों अपना अपना कक्ष्यों(orbit) में होते रहते है! इन सारे चाल का पीछे परमात्मा का अद्भुत रचना और जोड़ना का मेधावीपन् है! इन गतियों को व्यक्त करते हुवे स्फुरण(sensation), विचारों(Thoughts), भावनाए(Feeling) और इच्छाशक्ति(will power) है! इन सब का अपना कुक्षी का अन्दर रखने अहंकार(Ego) है! आत्मा केवल शुद्ध है! इस शुद्ध आत्मा का आवरण है इस अहंकार(Ego)! शुद्ध आत्मा नहीं होने पर इस अहंकार स्वयं प्रकाशित नहीं होसकता है! इस अहंकार का हेतु मनुष्य शरीर ही आत्मा सोचकर भ्रम में पड़ रहां है!
मनुष्य शरीर उप्पर से  ज्यादा से ज्यादा 6’X1½’ परिमाण में परिमित लगता है!   इस शारीर अंतर्गत  कणों(Cell) का स्पंदनों का समुद्र है, इन अंतर्गत कणों(Cell) का स्पंदनों से गरिष्ट है मालेक्युल(Molecule) का स्पंदनों का समुद्र, इन मालेक्युल(Molecule) का स्पंदनों से गरिष्ट है अणुओं(Atom) का स्पंदनों का समुद्र, इन अणुओं(Atom) का स्पंदनों से गरिष्ट है परमाणुओं यानी एलक्ट्रांस(Electron) प्रोटोंस (Proton) न्यूट्रांस(Neutron) पाजिट्रान्स् (positron) और मेसांन्स् (Meson) का स्पंदनों का समुद्र, इन परमाणुओं का स्पंदनों से गरिष्ट है इन सब को चलानेवाला प्राणशक्ति  (Vital force or life force)! अवचेतना(Sub-consciousness), अधिचेतना(Super-consciousness), चेतना(Consciousness), श्री कृष्ण चेतना (Krishna-consciousness), और परमात्मचेतना(Cosmic consciousness) का व्यक्तीकरण है इस प्राणशक्ति  (Vital force or life force)!
उप्पर से इस भौतिक शरीर साधारण दिखता है! अंतर्गत रसायन स्पंदनो के साथ प्रकाशित होने इन कणों वास्तव में घनीभव हुआ परमात्मचेतना(Cosmic consciousness)का व्याक्तीकरण ही है! इसी कारण इस शरीर अध्बुत शक्तियुक्त और सर्वव्यापी है! अंतर्गत रसायन स्पंदनो के साथ कणों को चालू रखने के लिए अल्ट्रा वायोलेट किरणों(ultraviolet rays), प्राणवायु अच्छा आहार पानी और फलरसों आवश्यक है! शरीर में जीवकणों नित्यरूप में उत्पत्ति होता रहता है! वे विचारों और शारीरक शक्तियों से परिमित हो बैठता है! अवचेतन चेतन अधिचेतन कूटस्थचेतना और परमात्मचेतना इत्यादि अत्यंत सूक्ष्म स्पंदनों का साथ शारीरक अंतर्गत रसायन स्पंदनों मालेक्युल(Molecule) का स्पंदनों अणुओं(Atom) का स्पंदनों इत्यादि जोड़ा हुआ होता है! मनुष्य का स्पंदनों परमात्म शक्ति का घनीभव हुआ स्पंदनों ही है! शरीर का अन्दर का कणों को चालू रखने सूर्यका अल्ट्रा वयलेट किरणों(Ultra violet rays) प्राणशक्ति आरोग्यवान् आहार फलरसों और पीने का पानी आवश्यक है! विचारें और जीवशाक्तिया(Biological forces) मिलके जीवकणों उत्पत्ति और उन शक्तियों का हेतु होता है! विविध प्रकार की कणों का रसायन चर्यों का अतिसूक्ष्म सूक्ष्मातिसूक्ष्मवाला अवचेतन चेतन अधिचेतन कूटस्थचेतना और परमात्मचेतना इत्यादि हेतु है! वे  जरूरत्वाला शक्तिपूरक् स्पंदनों लभ्य कर देता है! इन मेधावी स्पंदनों युक्त जीवन का   घनीभव हुआ परमात्मा का शक्ति ही हेतु है! भौतिक आहार कारण नहीं और वह केवल निमित्तमात्र है! इस भौतिक आहार का परमात्मा का शक्ति मिलने से ही शरीर स्थितिवंत् होता है! परमात्मा का शक्ति को मुख्यप्राण कहते है! इस मुख्यप्राण मनुष्य शरीर का  बाहर भी है और अन्दर भी है! दोनों का स्थितिवंत् का हेतु मुख्यप्राण ही है!
मुख्यप्राण पाँच प्रकार का अपने आप को इस मनुष्य का शरीर में विभाजन किया है!
1)प्राणवायु=स्फटिकीकरण(Crystallization), 2)अपानवायु=विसर्जन(Elimination), 3)व्यानवायु=प्रसरण(Circulation), 4)समानवायु=स्पांजीकरण(Assimilation),& 5)उडानवायु=जीवानुपाक(Metabolism).
आहार वायु पानी सूर्यरष्मी इत्यादी का उप्पर अपना जीवन आधरित करके समझता है साधारण मनुष्य! रोगग्रस्थ होकर औषधियों से ठीक नहीं होने शरीर का दुर्भर स्थिति देखकर आशा खो बैठता है! तब केवल परमात्मा ही इस शरीर को साधारण स्थिति को लासकता करके समझता है! हम इस शरीर को देने आहार इत्यादि परमात्मा का शक्ति का सामने अत्यंत अल्प करके परिपूर्णरूप में समझेगा! मरा हुआ शरीर को आहार वायु पानी सूर्यरष्मी इत्यादि देने से पुनः जीवित होगा क्या? 

आटोमोबाइल बाटेरी(Automobile battery)को फिर छार्ज (Charge) करने विद्युत् (Electricity) आवश्यक है! केवल डिस्टिल्ड् (Distilled water)से काम नहीं बनेगा!  परमात्मशक्ति मनुष्य का अंदर का प्राणशक्ति घनपदार्थ द्रवपदार्थ इत्यादियो को अवसर प्रमाण में युक्त मात्रा में बनाके मनुष्य को जीवित रखेगा! 

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