दीपावलि
दीपावलि:--
नरकासुर वध आशीज बहुळ चतुर्दशी तिथि में हुआ करके
हमारा पुराणोंमें लिखा है! अमावाश्य का तिथि में दीपावलि त्यौहार बनाते है! निद्रा
आलसीपन काम क्रोध लोभ मोह मादा मात्सर्य क्रियायोग साधना को कल करेगा परसों करेगा
करा के पोस्टपों(Postpone) करना स्त्रीव्यामोह पुत्रेषण दारेषण धनेषण इत्यादि सब नकारात्मक शक्तियाँ
है! यह सब
असुर लक्षणों है! वे साधक को क्रियायोग साधना करने नहीं देगा! कुछ कुछ विघ्न
डालेगा! साधक का चेतना को संसार चक्रों मूलाधार स्वाधिष्ठान और मणिपुर चक्रों को
परिमित करेगा!
मूलाधारचक्र पृथ्वी तत्व को प्रतीक है! इन का
पुत्र यानी भूदेवी व गंध तत्व यानी पुत्र है नरकासुर! साधक का अन्दर का नकारात्मक
शक्तियाँ का नायक है!
गंध तत्व साधक का चेतना को भौतिक सुख को परिमित
करेगा! कुण्डलिनी शक्ति को निद्राणस्थिति में रखेगा! जागृती नहीं हुआ कुण्डलिनी
शक्ति परमात्मा को प्राप्ति नहीं करा सकेगा!
मेरा स्थान भ्रूमध्य स्थित कूटस्थ कर के श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण
ने कहा है! कूटस्थ को श्रीकृष्णचैतन्य कहते है! साधक अपना क्रियायोग साधना माध्यम
से कूटस्थ में तीव्रध्यान कर के कुण्डलिनी जागरण के लिए भगवान श्रीकृष्ण का सहायता
के लिए अभ्यर्थन करते है! तब शरीर को परिमित हुआ पृथ्वी तत्व यानी भूदेवी व
मूलाधारचक्र पहले जागृति होजायेगा! तत् पश्चात् भूदेवी का पुत्र गंध तत्व यानी
नरकासुर निर्जीव होजायेगा! क्रियायोग साधन सुलभतर होजायेगा! वैसा जागृती हुआ
मूलाधारचक्र का चार दळ साधक का अमावश्य अँधेरा से मुक्त करेगा! तब मूलाधारचक्र का
चार दळ पीला वर्ण में प्रकाशित होता हुआ क्रियायोगसाधक को दिखाई देने को दीपावलि
त्योहार कहते है!
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