गौतम--अहल्य
गौतम--अहल्य:
अहल्य गौतम ऋषि का पत्नी है! गौतम अपना पत्नी को
आध्यात्मिक बोधन करते थे! उस समाया में उसका मन विचलित रहा था! प्रापंचिक विषय
चिंतना में डूबे हुआ था! इस विचलितपन् का हेतु इन्द्रियों है! इंद्रियों का राजा
इंद्र यानी मन है! पत्नी का विचलितपन् को जानकार गौतम ने ‘न हल्य’ अहल्य यानी हिलो
मत स्थिर मन से पत्थर जैसानिश्चल मन से बैठो और सुनो कहते है! जिस को देह
नहीं उसी को देवी अथवा देवता कहते है! इसी
तरह देहरहित मन देवता है! इसी को अहल्य का मन देवताओं का राजा इंद्र का उप्पर लगना
कहते है! यह ही गौतम ऋषि का शाप कहते है!
राम आके शाप विमोचन का तात्पर्य इस प्रकार का है!
आध्यात्मिक विषयों चंचल मन होने से समझना असंभव है! इस के लिए मनोनिश्चलता अत्यंत
आवश्यक है! मनोनिश्चलता ही ध्यान है! वैसा निश्चल मनः स्थिति में ही राम व
परमात्मशक्ति मूलाधारचक्र का पास हुआ कुण्डलिनी शक्ति को जागृति करा सकते है! तभी
मनुष्य जन्म का सार्धकता है! ध्यान नहीं किया मनुष्य पशु का समान है! अपना अपना दैनान्दिका
कर्म करते हुवे ध्यान करके मनुष्य दैव साम्राज्य का प्रवेश का अर्हता लभ्य करना
चाहिए! तत् पश्चात् दैनान्दिका कर्म करते हुवे मनुष्य ध्यान को तीव्रतर करके
परमात्मा में ममैक होना चाहिए!
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