आहार--- मन
खाए हुए आहार का वीर्य बनने के लिये जो परिवर्तन होते है वह इस प्रकार है :
1) आहार 2) रक्त 3) मांस 4) स्नायु (nerves) 5) हड्डी 6) मज्जा
(marrow) 7) शुक्र।
पेट के अंदर के आम्लों की वजह से आहार रस मे परिवर्तित होता है। इस के लिये 360 मिनट लगते है। इस रस को साधारण रक्त मे बदल ने के लिये 15 दिन लगते है (15 दिन=एक पक्ष)। साधारण रक्त को स्वच्छ रक्त बनने के लिये 27 दिन लगते है (27 नक्षत्र)स्वच्छ रक्त का मांस बनने क़े लिये 41 दिन लगते है (कोई भी मंत्र सिद्धि के लिये 41 दिन लगते है)। मांस को स्नायु बनने क़े लिये 52 दिन लगते है
(52 संस्कृत अक्षर)। स्नायु से हड्डी बनने क़े लिये 64 दिन लगते है (64 कला शास्त्रों)। हड्डीयों से मज्जा (marrow) बनने क़े लिये 84 दिन लगते है (84 लाख योंनिया)। मज्जा (marrow) से शुक्र बनने क़े लिये 96 दिन लगते है (96 तत्वों का सम्मेलन है यह शरीर --- सांख्य सिद्धांत)। शुक्र से ओजः शक्ति बनने क़े लिये 108 दिन लगते है (अष्टोत्तर मे 108 नाम होते है)।
आहार--- मन
अन्नं पुंसासितं त्रेथः जायते
जठराग्निनामलंस्तविष्ठोभगश्यात्
मध्यमो मांसतांव्रजेत् मनो कनिष्टोभगश्यात्
तस्मात् अन्नमयं मनः!
आहार जीर्णकोश मे जाकर जठराग्नि के कारण तीन रूपों मे बदल जाता है 1) कठिन हिस्सा मल और मूत्र मे, 2) द्रव वाला हिस्सा रक्त, हड्डिया, हड्डियों मे मज्जा और नाडिया इत्यादि सप्तधातु और 3) सूक्ष्म हिस्सा मन बनता है!
पंचीकरण पद्धति देखिये! उस मे आकाश का हिस्सा अंतःकरण, भागआयु का हिस्सा मन, अग्नि का हिस्सा बुद्धि, जल का हिस्सा चित्त और पृथ्वि का हिस्सा अहंकार बन जाता है!
अणुमंता विशासिता निहंता क्रयविक्रहः
मछली, मेंडक, पक्षी, पशु इत्यादि और इन के अंडे और बच्चो का माँस खानेवाला, इन सभी को मारने या काटने को प्रोत्साहित करने वाला, खरीदने वाला, बेचने वाला, पकाने वाला और इन सभी को काटने के लिये ले जाने वाला ये सभी लोग पापी होते है! एक वृक्ष की शाखाएँ और पत्ते काटने के कुछ दिनों पश्चात उसी वृक्ष की शाखाएँ और पत्ते वापस आ जाते है! परमदयालु परमात्मा ने हिरण्याक्ष, हिरण्यकश्यप, रावण, कुंभकर्ण इत्यादि दानवों का संहारकरके अपने भक्तों की रक्षा की थी ! ऐसा परमदयालु परमात्मा अपनी बनाई हुई चीजों को काट के
मुझे अर्पित करो, अर्पित करके उन के माँस का भक्षण करो, ऐसा कहकर कैसे प्रोत्साहित करसकते है? परमात्मा पशु-पक्षिओ को प्रसाद के रूप मे नही चाहता है वह तो चाहता है की
मनुष्य अपने काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य, अहंकार
इत्यादि को उसे प्रसाद के रूप मे अर्पित करें अर्थार्थ त्याग चाहता है परमात्मा! साधक को अपने अंदर के इन नकारात्मक
पशु जैसे गुणों को मारना चाहिए!
गोमांसभक्षण ---- प्राणायाम्
गोमाँसभोजयेन्नित्यं पिबेत् अमरवारुणीं
गोमांसभक्षणंतु महापातकनाशनं!
हठयोगप्रदीपिक 3.47---48
गोमांसभक्षण जो हर दिन करता है और सोमरस हर दिन पीता है वे लोग उच्चकोटि के है बाकी सब अधमाधम लोग है! यहाँ यह
समझने लायक है कि गो शब्द का अर्थ जीभ होता है यानि इस
जीभ को मोडकर तालुए मे लगाने को गोमांसभक्षण कहते है! इसीको खेचरी मुद्रा कहते है! इस खेचरी मुद्रा मे ध्यान करते समय मुँह मे मिठापन मेहसूस होता है इसी को सोमरस कहते है!
योगसाधना से ही मानवचेतन पुनः मेरुदंड के माध्यम से परमात्मचेतना के साथ ऐक्य होगा! सृष्टि चक्र इस प्रकार मेरुदंडा का
माध्यम से चलता रहता है!
धूम्रपान, सुरापान, मांसभक्षण, कामलोलता, इत्यादि सभी कर्मो
अधर्मयुक्त है!
मनुष्य भोजन करने अन्ना पान इत्यादि पदार्थो जठराग्नि का माध्यम से तीन प्रकार का परिवर्तन होते है!
1) स्थूलाभाग मलमूत्रो में, 2) मध्यभाग मांसादि सप्तधातुओं में और 3) कनिष्टभाग मनस् में परिवर्तन होता है! इसीलिए आहार का
मुताबिक़ मन होता है!
पंचीकरणरीति से देखने से भी आहार में आकाशसूक्ष्मांश अंतःकरण, वायुर्वांश मन, अग्नांश बुद्धि, जलांश और प्रुथ्वांश अहंकार में परिवर्तन
होता है!
पशु पक्ष्यादियों में शुक्ल शोणित और रक्त होता है! इसीलिये
1)पशु पक्ष्यादियों, उन् के बच्चों को, अंडों को मार के हिंसा को आमोदन करनेवाले 2)मांसभक्षण उत्तम कहके बोधन करनेवाले, 3) वध करनेवाले, 4) मांस बेचनेवाले, 5) मांस खरीदनेवाले 6) मांस पकानेवाले
7) मांस लानेवाले और 8) मांस खानेवाले—ए सब घातक है!
मनुष्य का मेरुदंड में 33 माला का दाना(string of beads) है! 32 फुट लम्बाई का आँते(Intestine) और 32 दाँत होते है! आज का खाया शाखाहारभोजन पचन होने के लिए मनुष्य को 24घंटे लगते है! कम से कम 8 बार आहार दांतों से चबाके खाना चाहिए! पशु का मेरुदंड में 11 माला का दाना है! 10 फुट लम्बाई का आँत(Intestine) और 10 दाँत होता है! इस् का मतलब मनुष्य से सभी चीज यानी माला का दाना, आँत और दाँत तीन गुणा कम है! खाया हुआ आहार पचन होने के लिए पशु पूरा दिन चबाते रहता है!
मनुष्य ने खाया मांसाहार पचन होने को 72घंटे लगता है! पशु को काटने समय वह डर से कांप के गोबर छोडता है! क्रोधित और आक्रोशित होके मुझ को काटनेवाले को भी इसी स्थिति में आना है कर के आक्रोश से मरता है! मनुष्य का दांतों भी मांसभक्षण के लिए योग्य नहीं है! इसीलिए मांसभक्षण तुरन्त छोडना चाहिए!
एक वृक्ष को काटने के बाद में तत्संबंधित शाखाएँ, पत्र पुष्प और फल आते है! दूसर वृक्ष का नहीं आता है! वेदों में परमात्मा परमदयालु इति कहागया है! आवश्यकता का अनुसार अवतारों को लेकर दुष्ट राक्षसों को संहार करके शिष्टों का संरक्षण किया! वैसा परमदयालु परमात्मा मांसभक्षण को प्रोत्साह करेगा? यज्ञों में पशु को नहीं बलिदेना चाहिए! काम, क्रोध, लोभा, मोह, मद और मात्सर्यादि पशुओं को बलिदेना चाहिए!
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