श्रीरूद्र नमकम् अनुवाक 1----8

नमकं संपूर्ण तात्पर्य
श्रीरूद्र नमकम् 
रुद्रम् = पांच कर्मेन्द्रियों + पांच ज्ञानेंद्रियों + मनस = पवित्र शरीर = शुद्ध ज्ञान
हम नित्यं उस परम शिव का दिव्य मंगळ लिंग रूप को अभिषेक इत्यादि भक्ति से करते है! नमकं और चमकं, उदात्त, अनुदत्ता, और स्वरितों से भक्ति पारवाश्य से पूजा/जप इत्यादि करते है! परंतु उस मंत्रार्थ नहीं जानते है! मंत्रार्थ जानके करने से उस का पूर्ण फल मिलेगा!  
यदधीतम अविज्ञातम निगदेनैव शब्द्यते
अनाज्ञाविव शुष्केंचौ नाथाज्जलाठी कर्हिचित !
तात्पर्य: जो पढा उस का अर्थ अवश्य जानना चाहिए! जपा मंत्रों का अर्थ जापने का समय में अर्थ भावन करना चाहिए! अर्थ नहीं जाने अक्षरजाप फल नहीं देगा जैसा अग्नि नहीं होने से लकड़ी नहीं जलेगा!   
नमस्ते रूद्र मन्यव उतोत इषवो नमः
नमस्ते अस्तु धन्वने बाहुभायामुत ते नमः !
हे शुद्ध ज्ञान रूपा रूद्र ! तुंहारा क्रोध यानी निश्चलत्व को नमस्कार! तुंहारा क्रोध यानी निश्चलत्व हमारा बाह्याभ्यांतर शत्रुवों का उप्पर प्रवर्तित होनेदो! तुंहारा निश्चलत्व नाम का बाण, और धनुस और धनुर्बानो सहित तुंहारा बाहुवों का येही हमारा नमस्कार
यात इषुश्शिवतमा शिवम् बभूवते धनुः
शिवशरव्या यातव तयानो रूद्र मृदय !
ओह शुद्ध मनस ! तुंहारा श्वर शांतियुत है, तुंहारा धनुस शांतियुत है, तुंहारा तीर का तरकश  शांतियुत है, इसी हेतु तुम तुंहारा शांतियुत शरीर, और तुंहारा तीर का तरकश का साथ हमको सुख करो !
याते रूद्र शिव तनूः अघोरापापकाशिनी
तयानस्तनुवा शंतमया गिरिशंताभिचा कशीही !
ओह  शद्ध ज्ञान रुद्रा ! हामारा उप्पर अनुग्रह करो ! तुंहारा मंगळमय शिव नाम का शरीर हामारा उप्पर अघोर नहीं करनेदो, तुंहारा शरीर हमारा उप्पर हिंसा और पापा रूप अनिष्ट प्रकाशित नहीं करनेदो, हे शिव ! तुंहारा शुद्ध ज्ञान रूप का रूद्र हमको स्वयं ही इंद्रियवासनों से हिंसा नहीं करनेदो !
यामिषुं गिरिशंत हस्ते बिभर्ष्यस्तवे
शिवां गिरित्रतां कुरु माहिगुंसीः पुरुषं जगत् !     
हे हिमवंतशुद्ध ज्ञान रूद्र! आप अपना विचार जैसा तीर को अपना शत्रुवोम का उप्पर डालने धनुरधार होगया! ओह कैलास गिरी वासा यानी कूटस्थ स्थित रूद्रआप अपना बाण को हमारा उप्पर नहीं छोड़ना, शांत हो जावो, हमको हिंसा नहीं करना !
शिवेन वचसात्वा गिरिशाच्छावदामसि
यथानस्सर्वमि ज्जगदयक्ष्मगुं सुमना असत् !    
हे शुद्ध मन ! तुम कूटस्थ में रहते हो, इस जंगम प्रपंच नीरोग होकर सौमनस्य संपन्न होने दो! 
अथ्यवोच दधिवक्ता प्रथमो दैव्योभिषक
अहीगुश्च सर्वां जंभयन सर्वाश्च यातु धान्यः
आप हमारा सभी में तुम ही अधिवक्ता है! आप ही मुख्य है! आप ही प्रथम देवता है! आप का निश्चलता से सर्वरोग का उपशमन मिलेगा! इसी हेतु तुम ही प्रथम वैद्य है! हम को रक्षा करने तुम बिना अन्य कोई नहीं है!  
असौयस्ताम्रो अरुण उत बभ्रुः सुमंगळः
येचेमागुम् रूद्र अभितो दिक्षु श्रितास्सह शोवैषागुम् हेडईमहे !
अज्ञान को अपना प्रकश से निकालने हेतु अत्यंत मंगळ स्वरूप होगया है! इस मनस् ही सर्व जगत में व्याप्त हुआ है! इस मनस् समिष्टि रूप में है ! वह ही व्यष्टि रूप में  सारे दिशो में सहस्र किरण संख्यो में व्याप्त हुआ है! उस को भक्ति से नमस्कार करता हु!    
असौयोवसर्पति नीलगीवो विलोहितः
उतैनम् गोपा अदृशन्न दृशन्नु दहार्यः    
उतैनम् विश्व भूतानि सदृष्टो मृडयानितः
 जो तीव्र साधक रूद्र अपना तीव्र ध्यान का हेतु नीलकंठ बनगया जैसा कालकूट विष पीनेसे होता है! इस रूद्र का रूप विशेष रक्तवर्ण है! ये सूर्यमंडलवर्ती है! ये उदय और अस्तमान संपादक है! वेदाशास्त्र संस्कारहीन गोपाल भी इन आदित्यरूप और सौरमंडलस्थित इस शुद्ध ज्ञानी रूद्र को देखते है! और गो, बहेष, पक्षी इत्यादि सर्व प्राणियों देखते है! ये रूद्र जो वेद शास्त्र पंडितों,  वेद शास्त्र हीन पंडितों, और सकल प्राणियों को दर्शन देता है वो रूद्र हम को सुख देनेदो
नमो अस्तु नीलगीवाय सहस्राक्षाय मीढुषे
अथोये अस्य सत्वानो हंतेभ्योकरं नमः !
इंद्रियों का राजा मनस् यानी इंद्र है! तुम को सहस्र नेत्र यानी हर तरफ तुंहारा नेत्र है! इस मनस् का विविध रूप मेरा नहीं है!
प्रमुंच धन्वनस्त्व मुभयोरार्त्नि योर्ज्यां 
याश्चते हस्त इषवः पराता भगवोवप !
हे भगवान! आप ही पूजा को अर्ह है! आप ही महदैश्वर्य संपन्न है! हे शुद्ध ज्ञानी रुद्र! तुंहारा धनुस् का बांधा हुआ धागा को छोड़ दे, तुंहारा बाणों को छोड़ दे, वे हमारा उप्पर नहीं छोड़ दे!  
अवतत्य धनुस्त्वग् सहस्राक्ष शतेषुधे
निशीर्य शल्यानां मुखा शिवोनस्सुमनाभव !
हे इंद्रियो का राजा मनस् ! आप का मनस् ही धनुस् है! वह हजारो विचारों का मूल है! वो धनुस् को नीचे रखदो, तुम वह तीर को तरकश में रखो! तुम मेरा उप्पर अनुग्रह करो, शांतिपूर्ण हो जाओ, हमारा मनस् को निश्चल रखदो
विज्यं धनु कपर्दिनो विशल्यो बानावागुम् उत
अनेशन्न स्येषव अभुरस्य निषंगधिः !
मंगळमय मनस शिव का धनुस है ! वह धनुस बिना धागावाला होनेदो! तरकश बिना बाण यानी विचार रहित और निश्चल होने दो ! तब वह साधक का एकाग्रता लभ्य होगा!  
यातेहेती र्मीढुष्टम हस्ते बभूवते धनुः
तयास्मान् विश्वतस्त्वम यक्ष्मयाँ परिब्भुजः !
सभी का इच्छाओं अधिकतर पूरा करनेवाला शुद्ध मनस् ! शुद्ध मनस् ही धनुस है! वह तुम हाथ में धरा है! उस निश्चल मन नाम का धनुस से हमारा पालन करो
नमस्ते अस्त्यायुधा नातता यधृष्णवे
उभाभ्यामुतते नमो बाहुभ्यां तव धन्वने
हे शुद्ध मन! आप किसी हेतु बांधा हुआ नहीं है! आप का विचारों ही कष्टों का हेतु हैआप का आयुध को नमस्कार करता हु! तुंहारा द्वन्द्व प्रवृत्ति को यानी चंचल और निश्चल मनस को नमस्कार करता हु! तुंहारा धनुस का नमस्कार करता हु
परिते धन्वनों हेतिरस्मास् वृणक्तु विश्वतः
अथोये इषुधिस्तवारे अस्मन्निधेहितम् !
हे मनतुंहारा विचारोवाली बाणों की धनुस हम से दूर रहने दो ! तुंहारा तीर की तरकश हंसे दूर रखो!
अनुवाक 1 समाप्त  
नमस्ते अस्तु भगवान विश्वेश्वराय महादेवाय त्रयंबकाय त्रिपुरांतकाय कालाग्नि रुद्राय नीलाकंठाय मृत्युंजयाय सर्वेश्वराय सदाशिवाय श्री मन्महा देवायनमः
भगवान विश्वेश्वर को, महादेव को, त्रयंबक को, त्रिपुरांतक को, कालाग्नि स्वरुप शुद्ध ज्ञान स्वरुप रूद्र को, नीलकंठ को, मृत्युंजय को, सर्वेश्वर को, सदाशिव को, श्रीमन्महादेव को नमस्कार् है !
अनुवाक 2 प्रारंभ  
यजुस्सू 1
नमो हिरण्य बाहवे सेनान्ये दिशांच पतयेनमः
हे शुद्ध ज्ञानस्वरूपी रूद्र, आप सभी दिशावों में व्याप्ति होने सक्षम है! ऐसा शुद्ध मन को नमस्कार है!
यजुस्सू 2
नमो वृक्षेभ्यो हरी केशभ्यः पशूनाम् पतयेनमः   
हे शुद्ध ज्ञानस्वरूपा, रूद्र, जो हरा पत्तावों और शाखावों का साथ भरा हुआ पेड़  और पशु इत्यादि प्राणियों का अधिकारी, तुम को नमस्कार कर रहा हु!  
यजुस्सू 3
नमस्सस्पिंजरायत्विषीमते पथीनां पतये नमः
हे शुद्ध ज्ञान स्वरुप रूद्र ! तुम को नमस्कार! तुम पीला और लाल रंग दोनों मिला हूआ  मृदू घास का कांति मार्ग का पालक हो!  
यजुस्सू 4.
नमो बभ्लुशाय विव्याधिने न्नानां पतयेनमः
मन ही खाने को, पीने को, सूंघने को, देखने को, स्पर्शन करने को, सभी का हेतु है! मन नहीं होने से हम कुछ भी नहीं करसकते है!
मन चंचल होने से जीवन बैल का जीवन जैसा भारी पड़ेगा! मानसिक रोगों का हेतु बनेगा! परंतु मन निश्चल होने से वह कही औषधियों का समान होगा! वैसा शुद्ध मन को नमस्कार!
यजुस्सू   5
नमो हरि केशायोपवीतिने पुष्टानां पतयेनमः
उप = समीप में     वीतिने = पहनना 
शुद्ध ज्ञान स्वरुप रूद्र को नमस्कार करता हु जो हमारे तमोगुण को निकालने हेतु उपयोगकारी यज्ञोपवीत पहनते है! जिस का अर्थ हैं कि तमोगुण निकालने हेतु परिपूर्ण पुरुषों यानी क्रियायोग साधकों का स्वामी शुद्ध मन निश्चल मन को नमस्कार करता हु !  
यजुस्सू  6.
नमो भवस्य हेत्यै जगतां पतये नमः
मन ही संसार का हेतु है! वैसा मन को नमस्कार !
यजुस्सू 7.
नमो रुद्राया तता विने क्षेत्राणां पतये नमः
हे शुद्ध मन नमस्कार ! जो व्याप्ति किया हुआ शरीर नाम का पुण्य क्षेत्रो  पालक को नमस्कार
यजुस्सू  8
नम स्सूताया हंत्याया वनानां पतये नमः
हे शुद्ध मन! तुम अंदर और बाहर का शत्रुवों का वध करने सक्षम है ! ये जीवन एक अरण्य जैसा है ! इस संसार जैसा अरण्य का पालक तुम है,  नमस्कार!
यजुस्सू 9
नमो रोहितायस्थ पतये वृक्षाणां पतये नमः
हे कुंकुम फूल जैसा रंग अहंकारसहित मन और परिपक्वतायुत वृक्षों  यानी अहंकाररहित मन, दोनों का पालक शुद्ध ज्ञान रूद्र, नमस्कार!  
यजुस्सू 10.
नमो मंत्रिणे वाणिजाय कक्षाणां पतये नमः
मन भौतिक और आध्यात्मिक विचारे दोनों का पालक, हे शुद्ध मन ! तुम विचार करने में और सलहा देने में दोनों में सक्षम है!   
यजुस्सू  11.
नमो भुवंतये वारि वस्क्रुता यौषधीनां पतये नमः
शुद्ध मन ही सारे भूमंडल में व्याप्त होता है! सर्व औषधियों का मूल मन ही है! सर्व रोगों  का मूल मन ही है! मन को नमस्कार!
नम उच्चैर्घोषाया क्रंदयते पत्तीनां पतये नमः
संसार को पार करने ऊंची ध्वनि का साथ आक्रंदनों से रोने संसारियों का प्रभु मन को नमस्कार करता हु!  
यजुस्सू 13.
नमः कृत्स्न वीताय धावते सत्वानां पतये नमः
चारों ओर घेरा हुआ विचारों जैसा सेना से गभरानेवाला संसारियों का मन को नमस्कार ! सात्विक और निश्चल मन को शराणागति हुआ लोगों का पालक शुद्ध ज्ञान मन को नमस्कार
यजुस्सू 1
नमः सहमानाय निव्याधिन अव्याधीनां पतये नमः
विरोधियों और साधकों दोनों को पालक शुद्ध ज्ञान रूपी रूद्र, इन को नमस्कार
यजुस्सू 2.
नमः ककुभाय निषंगिणे स्तेनानां पतये नमः
राग बेध रहित पालक शुद्ध ज्ञान रूपी रूद्र को नमस्कार
यजुस्सू  3
नमो निषंगिण इषुधिमते तस्कराणां पतये नमः
विचारों जैसा बाणों को संधान करने सक्षम, और अहंकारयुत विचारों का पालक शुद्ध ज्ञान रूपी रूद्र को नमस्कार !  
यजुस्सू 4.
नमो वंचते परि वंचते स्तायूनां पतये नमः
धोका देना पुनः पुनः धोका देनेवाले मन का पालक का मालिक को नमस्कार !  
यजुस्सू  5
नमो निचेरवे परिचरायारण्यानां पतये नमः
निरंतर अरण्य में रहनेवाले यानी भयभीत विचारों के साथ रहनेवाले संसारियों का प्रभु शुद्ध मन को नमस्कार!
यजुस्सू  6
नमः सृकाविभ्यो जिघागुं सद्भ्यो मुष्णतां पतये नमः
क्रियायोग साधना नाम का कवच से अपना शरीर को वज्र समान किया हुआ लोगों का नमस्कार! और क्रियायोग साधना ध्यान करने कृषि करने साधकों को भी नमस्कार !  
यजुस्सू  8
नमो सीमद्भ्यो नक्तं चरद्भ्यः प्रकृंतानां पतये नमः
मन के लिए रात और दिन परिमिति  नहीं है! वैसा शुद्ध मन को नमस्कार ! 
यजुस्सू 8.
नम उष्णीषिने गिरिचराय कुलुंचानां पतये नमः
देश का रक्षा के लिए सीमा में पर्वत का आवश्यक हैवैसा देह का रक्षा शिर है! व्यर्थ विचारों शिर और तद्वारा शरीर को रक्षा नहीं कर सकता है! वैसा शिर में उपस्थित शुद्ध मन को नमस्कार!
यजुस्सू  9
नम इषुमद्भ्यो धन्वा विभ्यश्चवोनमः
बाण विचारों का मन को नमस्कार ! उन बाण विचारों का प्रयोग करने मन को नमस्कार
यजुस्सू 10
नम अतन्वानेभ्यः प्रति दधानेभ्यश्चवो नमः
धनु का सुता को स्पंदन करने तुम को नमस्कार ! विचारों/तीर का तरकश जिस से बाण को संधान करते मन उस को भी नमस्कार !
यजुस्सू 11.
नम अयच्छद्भ्यो विसृजद्भ्यश्चवो नमः
धनुष का सुता को आकर्षित होने तुम को नमस्कार है! धनुष से बाण छोड़नेवाले तुम को नमस्कार है 
नमोस्यद्भ्यो विध्यद्ब्यश्चवो नमः
यजुस्सू 12
लक्ष्य तक बाण अनुसंधान करने वाले, और लक्ष्य में बाण प्रवेश करने वाले, दोनों का नमस्कार है!  
यजुस्सू  13
नम आसीनेभ्यश्शयानेभ्यश्चवो नमः
बैठने, और सोने वाले दोनों का नमस्कार है! मन सभी परिस्थितियों में काम करते रहता है!  
यजुस्सू   14
नमस्स्वपद्भ्यो जाग्रद्भ्यश्चवो नमः
जाग्रतावस्था में मन को और निद्रावस्था में मन दोनों मन को नमस्कार करता हु! 
यजुस्सू  15
नमस्तिष्ठद्भ्यो धावद्भ्यश्चवो नमः
निश्चल मन को नमस्कार, और विचारों से भरा हुआ धौडनेवाला अथवा चंचल मन दोनों को नमस्कार करता हु!  
यजुस्सू16.
नमः सभाभ्यः सभापतिभ्यश्चवो नमः
संघटीकृत यानी कही विचारों से भरा हुआ मन को नमस्कार, और उन का प्रभु को नमस्कार !
यजुस्सू 17.
नमो अश्वेभ्यो अश्वपतिभ्यश्चवो नमः
मै इंद्रियो को और इंद्रियो का अध्यक्ष अधिपति मन दोनों का नमस्कार करता हु!  
अनुवाक  3 समाप्त  
अनुवाक  4  आरंभ  
यजुस्सू 1
नम अव्याधिनीभ्यो विविध्यंतीभ्यश्चवो नमः
चंचल और विशेष चंचल मन को नमस्कार !  
यजुस्सू 2
नम उगणाभ्यस्तृग् हतीभ्यश्चवो नमः  
उत्कृष्ट गुणरूपियों का मातृका स्त्री मूर्ति है! दुर्मार्गो का संहरण करने सक्षम देवता स्त्री का मातृका भी स्त्री मूर्ति है! दोनों का नमस्कार !
यजुस्सू 3
नमो ग्रुत्सेभ्यो गृत्सपतिभ्यश्चवो नमः
विषयासक्त लोगों को और उनका पालक दोनों को नमस्कार ! 
यजुस्सू 4.
नमो व्रातेभ्यो व्रात पतिभ्यश्चवो नमः
विचारों का समूह और उस का पालना करनेवाली शुद्ध मन दोनों का नमस्कार करता हु!
नमो गणेभ्यो गणपतिभ्यश्चवो नमः
सुविचारो और दुर्विचारो और उस का पालना करनेवाली शुद्ध मन दोनों का नमस्कार करता हु!
यजुस्सू 6.
नमो विरूपेभ्यो विश्वरूपेभ्योभ्यश्चवो नमः
व्यष्टि रूप मन और समिष्टि रूप मन दोनों का नमस्कार करता हु!
यजुस्सू 7.
नमो महद्भ्यः क्षुल्लकेभ्यश्चवो नमः
असली क्रियायोगी को अणिमादि अष्टैश्वर्य सिद्धि लभ्य होता है!
अणिमादि अष्टैश्वर्य सिद्धि लभ्य हुआ मन को और अणिमादि अष्टैश्वर्य सिद्धि लभ्य नहीं हुआ लोगों दोनों का नमस्कार करता हु!
यजुस्सू 8.
नमो रथिभ्यो रथेभ्यश्चवो नमः
इस शरीर एक रथ जिस का अंदर परमात्मा है! परमात्मा और रथ दोनों को  नमस्कार करता हु
यजुस्सू 9.
नमो रथेभ्यो रथपतिभ्यश्चवो नमः
शरीर रूपी परमात्मा और शरीर का अंदर परमात्मा दोनों को  नमस्कार करता हु!   
यजुस्सू 10.
नमः सेनाभ्यः सेनानिभ्यश्चवो नमः
शरीर का अंदर कणों, और अंगो का नायक  परमात्मा  को  नमस्कार करता हु
यजुस्सू 11.
नमः क्षतृभ्यः संग्रहीतृभ्यश्चवो नमः
क्रियायोग साधक योद्धाओं को, और क्रियायोग साधक योद्धाओं का नायक  परमात्मा  को  नमस्कार करता हु!  
यजुस्सू 12.
नमःस्तक्षभ्यो रथकारेभ्यश्चवो नमः
इस शरीर रथ को निर्माण किया और सारे शरीरों का रथों को निर्माणकरनेवाला परमात्मा  को  नमस्कार करता हु
यजुस्सू 13.
नमःकुलालेभ्यः कर्मारेभ्यश्चवो नमः
इस शरीर को निर्माण करनेवाले को, और निर्माण किया शरीरों को कर्म निर्धारित करनेवाले  परमात्मा  दोनों को  नमस्कार करता हु
यजुस्सू 14.
नमःपुंजष्टेभ्यो निषादेभ्यश्चवो नमः
विचारों को संहारण करनेवाले  परमात्मा  को  नमस्कार करता हु
यजुस्सू 15.
नमःइषुकृभ्यो धन्वकृद्भ्यश्चवो नमः
विचारों को और विचारों का हेतु परमात्मा  को  नमस्कार करता हु!  यजुस्सू 16.
नमो मृगयुभ्यश्शवनिभ्यश्चवो नमः
क्रियायोग साधकों को नमस्कार करता हु! क्रियायोग साधकों को श्वास को निश्चल करनेवाले परमात्मा को नमस्कार करता हु
यजुस्सू 17.
नमश्श्वभ्य अश्वपतिभ्यश्चवो नमः
इंद्रियो को नमस्कार, और इंद्रियो को अधिपति शुद्ध मन को नमस्कार !
अनुवाक  4 समाप्त
अनुवाक 5 प्रारंभ
यजुस्सू 1
नमो भवायच रुद्रायच
प्राणों का उत्पत्ति हेतु और शुद्ध ज्ञान स्वरुप रूद्र को नमस्कार करता हु
यजुस्सू 2
नमश्शर्वायच पशुपतयेच
पुण्यात्मों को पापात्मों को दोनों को पालन करनेवाला परमात्मा को नमस्कार करता हु !  
यजुस्सू 3
नमो नीलगीवायच शितिकंठायच
जब साधक तीव्र साधन करने समय इस का कंठ नील रंग में बदलते है! ऐसा साधक को  नमस्कार करता हु
यजुस्सू 4
नमो कपर्दिनेच व्युप्तकेशायच
विचारसहित और विचारारहिता लोगों दोनों को  नमस्कार करता हु !  
यजुस्सू 5
नमस्सहस्राक्षायच शतधन्वनेच
सहस्र नेत्र और शतभुज वाला शुद्ध मन को नमस्कार करता हु !
यजुस्सू 6
नमो गिरिशायच शिपिविष्टायच
कूटस्थस्थित और सर्वव्यापी शुद्ध मन को नमस्कार करता हु
यजुस्सू 7
नमो मीडुष्टमायचेषु मतेच
कूटस्थस्थित और सर्वव्यापी शुद्ध मन को नमस्कार करता हु !
मन मेघो जैसा विचार बाणो का वर्षेगा ! जैसा शुद्ध मन शिव को नमस्कार करता हु !  
यजुस्सू 8
नमो ह्रस्वायच वामनायच
वरिष्ट मन (वा मन) अंगुष्ट प्रमाण में  क्रियायोग साधक को कूटस्थ में दिखाई देता है! वैसा शुद्ध मन  शिव को नमस्कार करता हु !  
यजुस्सू 9
नमो ब्रुहतेच वर्षीयसेच
सुगुणों से भर पूर शुद्ध मन को नमस्कार करता हु !  
यजुस्सू 10
नमो वृद्धायच संवृध्वनेच
वृद्ध होने पर भी निरंतर क्रियायोग साधना से वृद्धि होने शुद्ध मन को नमस्कार करता हु !  
यजुस्सू 11
नमो अग्रियायच प्रथमायच
आविर्भाव का हेतु और मुख्य शुद्ध मन को नमस्कार करता हु
यजुस्सू 12
नम आशवे चाजिरायच
सभी तरह व्याप्ति किया हुआ और शीघ्र वाप्ति हुआ शुद्ध मन को नमस्कार करता हु !
यजुस्सू 13
नमः शीघ्रियायच शीभ्यायच
विचारों स्वयं ही मन है! शीघ्र एक का बाद एक आने विचारों का शुद्ध प्रतिरूप मन को नमस्कार करता हु!   
यजुस्सू 14
नम उर्म्यायचा वस्वन्यायच
विचारों से भरा अस्थिर मन, विचारों रहित स्थिर मन दोनों को नमस्कार करता हु!
यजुस्सू 15
नम स्श्रोतस्यायच द्वीप्यायच
छोटा विचारों और बड़ा विचारों के साथ भरा हुआ मन को दोनों को नमस्कार करता हु!  
अनुवाक 5 समाप्त 
अनुवाक 6 आरंभ 
यजुस्सू 1
नमो ज्येष्ठायच कनिष्ठायच
शुद्ध ज्ञानी और अज्ञानी दोनों को नमस्कार करता हु
यजुस्सू 2
नमो पूर्वजायच अपरजायच
जगत् आरंभ में हिरण्यगर्भ रूप में अवतार लिया, और जगत् अंत में अग्नि रूप में अवतार लिया, महा मनस् दोनों को नमस्कार करता हु
यजुस्सू 3
नमो मध्यमायच अपगल्भायच
इंद्रियो और उन का नायक महा मनस् दोनों को नमस्कार करता हु!  
यजुस्सू 4
नमो जघन्यायच बुध्नियायच
गो का बछडा जैसा, और वृक्ष का शाखाये जैसा सब का छोटा रूप में हुआ इंद्रियो और उन का नायक महा मनस् दोनों को नमस्कार करता हु!  
यजुस्सू 5
नमः सोभ्यायच प्रतिसर्यायच
पुण्य और पापों का साथ हुआ मनस्, और मुक्त को अर्ह क्रियायोग साधक का मन, दोनों को नमस्कार करता हु
यजुस्सू6
नमः याम्यायच क्षेम्यायच
अज्ञान से भरा चंचल मन, और शुद्ध ज्ञान से भरा हुआ मोक्ष का अर्ह क्रियायोग साधक का मन, दोनों को नमस्कार करता हु!
यजुस्सू 7
नमः उर्वर्यायच खल्यायच
इस शरीर का माध्यम से ही हम प्रगतिशील होना है! उस का मार्ग केवल कियायोगा ही है! जैसा शुद्ध मन को नमस्कार करता हु!
यजुस्सू 8
नमः श्लोक्यायच अवसान्यायच
वेद = पवित्र शब्द ॐकार को सुनना/सुनाईदेना
वेदांतं = ॐकार का अंत यानी शुद्ध ज्ञान
पवित्र शब्द ॐकार से  सुनाईदेनेवाला महिमान्वित शिव, और केवल शुद्ध ज्ञान से पहचानने  महिमान्वित शिव को नमस्कार करता हु!
यजुस्सू 9
नमो वन्यायच कक्ष्यायच
वृक्ष =समिष्टि  कक्ष्य = व्यष्टि,
समिष्टि और व्यष्टि दोनों मन को नमस्कार करता हु
यजुस्सू 10 
नमः श्रवायच  प्रतिश्रवायच
ध्वनिरूपी मन और प्रतिध्वनिरूपी मन,  दोनों मन को नमस्कार करता हु
यजुस्सू 11 
नमः अशुषेणायच  अशुरथायच
चंचल इंद्रियों धरने मनको और उस शरीर को दोनों मन को नमस्कार करता हु
यजुस्सू 12  
नमः शूरायच अवभिंदते
नकारात्मक शक्तियों को संहरण करने और निरोध करने शुद्ध मन दोनों को नमस्कार करता हु!  
यजुस्सू 13 
नमः वर्मिणेच  वरूधिनेच
नकारात्मक शक्तियों को संहरण करने और निरोध करने शुद्ध मन दोनों को नमस्कार करता हु
यजुस्सू 14
नमः बिल्मिनेच  कवचिनेच
कूटस्थ नाम का बिल शुद्ध मन को, क्रियायोग साधना नामका कवच धारण करने शुद्ध मन दोनों को नमस्कार करता हु!  
यजुस्सू 15
नमः श्रुतायच  श्रुतसेनायच
क्रियायोग साधक जो ॐकार शब्द सुनाने को स्थिर निश्चय किया है, और उस के अपना इंद्रिय सेना को निश्चल करने समायुक्त किया है, वैसा शुद्ध मन दोनों को नमस्कार करता हु!
अनुवाक 6 समाप्त 
अनुवाक 7 प्रारंभ
यजुस्सू 1
नमो दुंदुभ्यायच अहन्यायच
ब्रह्म (सृष्टि), विष्णु (स्थिति), और महेश्वर (लय) तीनों को मिलके त्रिमूर्ति स्वरुप कहते है! इस त्रिमूर्ति स्वरुप ही माया है! इस माया परब्रह्मण का एक भाग है! सृष्टि का मूल ॐकार नाद है! नाद स्वरुप ही ॐकार है! वाचकं और वाच्यं दोनों ॐकार ही है! वैसा शुद्ध ॐकार ही शुद्ध मन शिव है! उन दोनों को नमस्कार करता हु
यजुस्सू 2
नमो धृष्णवेच प्रमृशायच
क्रियायोग साधना एक आध्यात्मिक संग्राम है! वैसा संग्राम में नकारात्मक शक्तियों का सामना करने और पलायनरहित शुद्ध मन शिव दोनों को नमस्कार करता हु!
यजुस्सू 3
नमो दूतायच प्रहितायच  नमो धृष्णवेच प्रमृशायच
शुद्ध मन सकारात्मक शक्तियों को दूत और हित भी है! वैसा शुद्ध मन शिव को नमस्कार करता हु
यजुस्सू
नमो निषङगिणेच इषुधिमतेच
ज्ञानखड्ग धारी और विचारों का बाणों का तरकश धरनेवाला शुद्ध मन शिव दोनों को नमस्कार करता हु!
यजुस्सू 5 
नमः तीक्ष्णेषवेच आयुधिनेच
तीव्र क्रियायोग साधना से प्रकाशित होने, उस के लिए विविध प्राणायाम पद्धतिया आयुध जैसा उपयोग करनेवाला, उस शुद्ध मन शिव दोनों को नमस्कार करता हु
यजुस्सू 6  
नमः स्वायुधायच सुधन्वनेच
क्रियायोग साधका का आयुध उस का श्वास, मेरुदंड उस का धनुष है,  उस शुद्ध मन शिव दोनों को नमस्कार करता हु
यजुस्सू 7   
नमः श्रुत्यायच पथ्यायाच
क्रियायोग साधका का मार्ग परिमित और अपरिमित है, उस क्रियायोग साधना करने शुद्ध मन शिव दोनों को नमस्कार करता हु!
यजुस्सू 8    
नमः काट्यायच नीप्यायच
संसार पानी जैसा है! मन अल्प जल कटम में भी फस सकता है, बड़ा संसार संकट में भी फस सकता है, दोनों से भी अपना युक्ती से बाहर निकलनेवाली शुद्ध मन शिव को नमस्कार करता हु!
अनुवाक  7 समाप्त

अनुवाक 8 प्रारंभ

यजुस्सू 1

नमः सोमायच रुद्रायच
शुद्ध ज्ञान रूपी रूद्र को नमस्कार करता हु!
यजुस्सू 2
नमः ताम्रायच अरुणायच
कूटस्थ में ताम्र रंग में और थोडा लाल रंग में प्रकाश दिखायीदेगा ! वैसा शुद्ध मन शिव को नमस्कार करता हु! 
यजुस्सू 3
नमः श्रुंगायच पशुपतयेच
जो प्राणियों को सुख देनेवाला शुद्ध मन शिव को नमस्कार करता हु!
यजुस्सू 4 
नमः उग्रायच भीमायच
नकारात्मक शक्तियों को क्रोध करनेवाली और भयभीत करनेवाली शुद्ध मन शिव को नमस्कार करता हु!  
यजुस्सू 5 
नमः अग्रेवधायच दूरे वधायच
नकारात्मक शक्तियों को प्रारंभ से अंत तक वध करनेवाली शुद्ध मन शिव दोनों को नमस्कार करता हु! 
यजुस्सू 6  
नमो हम्त्रेच हनीयसेच  
नकारात्मक शक्तियों को प्रारंभ से अंत तक ध्वंस करनेवाली शुद्ध मन शिव को नमस्कार करता हु! 
यजुस्सू 7   
नमो वृक्षेभ्यो हरिकेशेभ्यः    
शुद्ध मन शिव कल्पवृक्ष स्वरुप है! उस का पत्तों सकारात्मक शक्तियों है! वैसा शुद्ध मन शिव को नमस्कार करता हु!  
यजुस्सू 8   
नमः तारायच 
कूटस्थ स्थित तीसरा आंख शुद्ध मन शिव को नमस्कार करता हु!  
यजुस्सू 9   
नमः शांभवेच मयोभवेच 
शुद्ध मन सुख उत्पादन करता है! माया से बाहर ले आता है! वैसा  शुद्ध मन शिव को नमस्कार करता हु!   
यजुस्सू 10    
नमः शंकरायच मयस्करायच
शं करोति इति शंकरः ! मंगळ करनेवाला और मोक्ष प्राप्ति करनेवाला  शुद्ध मन दोनों शिव को नमस्कार करता हु! 
यजुस्सू 11    
नमः शिवयच शिवतरायच
शुद्ध मनवाला शिव और मोक्ष प्राप्ति करनेवाला शुद्ध मन शिव दोनों को नमस्कार करता हु!
यजुस्सू 12     
नमः तीर्थ्यायच कूल्यायच
शुद्ध मन ही तीर्थ प्रदेश है, वह ही तीर्थ प्रदेशों में प्रतिष्ठापन किया हुआ लिंग क्षेत्र है! वैसा शुद्ध मन शिव दोनों को नमस्कार करता हु! 
यजुस्सू 13     
नमः पार्यायच वार्यायच
शुद्ध मन ही संसार नाम का नदी और समुद्र को पार कराता है!  वैसा शुद्ध मन शिव को नमस्कार करता हु! 
यजुस्सू 14     
नमः प्रतरणायच उत्तरणायच
शुद्ध मन ही माया से पार कराता है!  वैसा शुद्ध मन शिव को नमस्कार करता हु!  
यजुस्सू 15     
नमः आतार्यायच अलद्यायच
जीवरूप में संसार में आने अर्ह, और संपूर्ण कर्मफल अनुभव करनेवाला  शुद्ध मन शिव को नमस्कार करता हु! 
यजुस्सू 16     
नमः शष्यायच फेन्यायच
कर्मबद्ध मन अपना कर्मफल अनुभव करने के लिए कुशांकुर और समुद्र का लहर का रूपों भी लेना पड़ता है! दोनों शिव ही है!  दोनों शिव को नमस्कार करता हु!  .
यजुस्सू 17     
नमः सिकत्याच प्रवाह्यायच
कर्मबद्ध मन अपना कर्मफल अनुभव करने के लिए रेत, और प्रवाह का  रूपों भी लेना पड़ता है! दोनों शिव ही है!  दोनों शिव को नमस्कार करता हु!  
अनुवाक 8 समाप्त  

नमकं संपूर्ण तात्पर्य

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