श्री रुद्रं नमकं 2nd part 9 to end


श्री रुद्रं 2nd part 9 to end 
अनुवाक  9 समाप्त  
ऋक् 1
द्रापे अंध सस्पते दरिद्रं नील लोहित एषां पुरुषाणां एषां पशूनां मा भेर्मा रोमो एषां किंचना ममत्  
तुम पापी लोगों को सजा देते हो! उन को दरिद्रता में गिराता हो! तुम सकारात्मक गुणों लोगों को आहार देते हो! तुम को स्थूल शरीर नहीं है! जो साधक तीव्र क्रियायोग साधना कराता है उस का कंठ नील रंग में बदलते है, और बाकी शरीर अपना मूल रंग में होता है! इस का कारण कुंडलिनी जागृति होकर ब्रह्मा और रूद्र ग्रंथि दोनों विच्छेद होना ही है! आप साधको को ढरावो मत, उन को रक्षा करो! हे शुद्ध ज्ञान रूपी रूद्र, तुम को नमस्कार करता हु!
रुक 2 .
याते रूद्र शिवा तनूश्शिवा विश्वाह भेषजी
शिवा रूद्रस्य भेषजी तयानो मृडजीवसे
हे शुद्ध ज्ञान रूद्र, तुंहारा शुद्ध मन शांतियुत है, और उस शुद्ध मन का माध्यम से हमारा जीवन सुखमाया करो ! 
ऋक 3
इमागं रुद्राय तवासे कपर्दिने क्षयाद्वीराय प्रभरामहेमतिं 
यथा नश्शमसद्द्विपदे चतुष्पदे विश्वं पुष्टं ग्रामे अस्मिन्ननातुरं
शुद्ध ज्ञान हमारा बच्चों, पोते, भेस जैसा चार टांगवाला पशु, इत्यादि को सुख करेगा ! हमारा सारे उपद्रवो का दूर करेगा! इसी हेतु हम शुद्ध ज्ञान रूपी रूद्र का उप्पर क्रियायोग ध्यान करेंगे! 
ऋक 4
मृडानो रुद्रो तानो मयस्कृधिक्षय द्वीराय नमसा विधीमते
यच्छंचयोश्च मनुरायजे पितातदश्याम तवा रूद्र प्राणीतौ  
हे शुद्ध ज्ञान रूद्र, हम को इह लोक में भी और परलोक में भी सुख देदो, हमारा पाप नाश होगया है! आप को नमस्कार से सेवा करेंगे ! शुद्ध ज्ञान रूद्र को नमस्कार करता हु!
ऋक 5
मनो महांत मुतमानो अर्भकं मान उक्षंत मुतमान उक्षितं
मानोवधीः पितरं मोत मातरं प्रिया मान स्तनुवो रूद्र रीरिषः
हे शुद्ध ज्ञान रूद्र, हमारा शुद्ध मन हमको कोईभी अवस्था में, बाल्य, यौवन, कौमार, और वार्धक्य, हम को कष्ट दे! शुद्ध ज्ञान रूद्र को नमस्कार करता हु!  
ऋक 6
मनस्तोकेतनयेमान आयुषि मानो गोषु मानो अश्वेषु रीरिषः
वीरान् मानो रूद्र भामितो वदीर्ह विष्मंतो नमसा विधेमते ! 
हे शुद्ध ज्ञान रूद्र, हमारा संतान को भी शुद्ध मन होने दो ताकि उन को कष्ट नहीं पहुंचेगा, हमारा शुद्ध मन अचिरकाल होने दो! हमारा इंद्रियो का लक्षण शुद्ध होने दो! हमारा सकारात्मक शक्तियों कभी क्षीण नहीं होने दो! हे शुद्ध ज्ञान रूद्र, तुम को नमस्कार करता हु!  
ऋक 7
आरात्ते गोघ्न उत पूरुषघ्ने क्षयद्वीराय सुम्न मस्मिते अस्तु
रक्षाचनो अधिचदेव ब्रूह्यधाचनः शर्म यच्छद्वि बर्हाः
इंद्रियो को निर्वीर्य करो, पुत्र पौत्रादि विषय वासनाए हमसे दूर करो, हम को रक्षा करो! तुंहारा सुख देने शुद्ध मन रूप हमारे में होने दो, हम को सर्वविधों से रक्षा करो, हे शुद्ध ज्ञान रूपी रुद्रा, हम को इह लोक में भी और परलोक में भी, दोनों लोको में, रक्षा करो !   
ऋक 8
स्तुति श्रुतंगर्त सदं युवानं मृगन्न भीम मुपहत्नु मुग्रं 
मृडा जरित्रे रूद्र स्तवानो अन्यंते अस्मन् निवपंतु सेनाः 
हे शुद्ध मन, संसार पानी का सामान है! ह्रुदयपद्म को पानी नहीं लगता है!  हमारा हृदय में सदा रहो! नित्य युवक बन कर शक्तिपूरक रहो!  भयंकर सिंह जैसा सर्व विषय जगत को नाश करो! हे शुद्ध मन, तुंहारा स्तोत्र करेंगे! प्रतिदिन नाश होने हमारा शरीर का रक्षा करो! और हम को सुख देदो! हमारा अंदर का नकारात्मक शत्रुवों को नाश करो!
ऋक 9
परिणो रुद्रस्य हेतिर्वृणक्तु परित्वेषस्य दुर्मति रघोयोः 
अवस्थिरामघव द्भ्यस्तनुष्व मीढ्वस्तोकायतनयाय मृडय
चंचल मन को सजा देने शुद्ध मन शिव का आयुध हम को अनुग्रह करनेदो, हमारा पुत्रों और पौत्रो को यानी अंतःकरण को सुख देनेदो ! हम यज्ञों से तुम को तृप्ति करेंगे! जिस को जानने से मुक्ति मिलेगा उसको यज्ञं कहते है!
मीढुष्टम शिवतम शिवोनस्सुमनाभव परमे वृक्षि
आयुधं निधाय कृत्तिंवसान आचन पिनाकं बिभ्रदागहि !
शुभ काम प्रदान करानेवाला, अधिक शांति स्वरूपी, हे शुद्ध मन, हम को शांति देदो, हम को अच्छा स्नेह प्रदान करो, इस वृक्ष जैसा जगत में पिनाक जैसा धनुष मेरुदंड को आयुध जैसा धरो!
ऋक 11
विकिरिदविलोहित नमस्ते अस्तु भगवः यास्ते
सहस्रगुं हेतयो न्यमस्मन्निवपंतुताः !
हे धवल रंगी स्वच्छ मन, हे भगवान, तुमको नमस्कार करता हु! तुंहारापास हजारो सकारात्मक शक्तियाँ आयुधो है! उन का माध्यम से हमारा शत्रु चंचल मन को नाशा करो!
ऋक 12
सहस्राणि सहस्राधा बाहुवोस्तव हेतयः
तासा मीशानो भगवः पराचीना मुखाकृधि !
हे शुद्ध मन शिव, आप का पास कही हजारो आयुध है ! हे भगवन, तुम सक्षम है! उन आयुधो का मुख, विचारों नाम का बाणों, हम को कष्ट नहीं देनेदो! 
अनुवाक  10 समाप्त
अनुवाक 11 प्रारंभ 
ऋक 1
सहस्राणि सहस्रशो ये रुद्रा अधिभूम्यां  
तेष्हागुं सहस्र योजने अवहन्वानि तन्मसि !
साधना समय में साधक को स्थूल, सूक्ष्म, और कारण समस्याओं का सामना करना पड़ता है! हे स्वच्छ मन, वे सब हम को दूर रखो ! 
ऋक 2
अस्मिन महत्यर्णवे अंतरिक्षो भवा अधि
हे शुद्ध मन, महा समुद्र का समान इस अंतरिक्ष से जो विचारें आरहा है उन को हम से दूर रखो ! 
ऋक 3
नीलग्रीवा श्शिति कंठाः शर्वा अधः क्षमाचराः
क्रियायोग साधक का कंठ साधना से नील रंग में बदलेगा! साधना का हेतु सकारात्मक शक्तियाँ बलोपेत होकर साधना का व्यतिरेक शक्तियों को पाताळ में दबाएगा!
ऋक 4
नीलग्रीवा श्शिति कंठाः दिवगुम रुद्रा उपश्रिताः 
क्रियायोग साधक का कंठ साधना से नील रंग में बदलेगा! वे शुद्ध बुद्धि प्राप्ति करके मुक्ति पाते है!
ऋक 5
ये वृक्षेशु सस्पिंजरा नीलग्रीवा विलोहिताः 
क्रियायोग साधक का कंठ साधना से नील रंग में बदलेगा!  जैसा कोई वृक्ष का रंग नील और रक्तवर्ण है!
ऋक 6
ये भूतानां अधिपतियो विशिखासः कपर्दिनः
इंद्रिय लक्ष्य और चंचल मन दोनों मनुष्यों का व्याकुलता का उपद्रवों का हेतु है! कुछ इन्द्रियों अपना इंद्रिय लक्ष्यॉं का माध्यम से साधक को बाह्य से बाधा करता है! कुछ इंद्रिय लक्ष्यॉं का माध्यम से साधक को अंदर से बाधा करता है! दोनों का नायक मन हम को दूर रहनेदो! 
 ऋक 7 
ये अन्नेषु विविद्यंति पात्रेषु पिबतो जनान् 
हे शुद्ध ज्ञान रूपी रुद्रा, हम को चंचल मन देकर मनो व्याधि में मत डालो जिस का हेतु हम दूध नहीं पी पायेंगे, और खाना नहीं खा सकते, हम को बीमार नहीं पढ़नेदो!  
ऋक 8
ये पथां पथी रक्षय ऐलब्रृदा यव्युधः
रूद्र, शुद्ध ज्ञान रूपी, हमको भौतिक, और आध्यात्मिक मार्गो से रक्षा करो, हमको आहार देदो, हमारा शत्रुवों नकारात्मक शक्तियों से युद्ध करो!
नौवां
यजुस्सु 1
ये तीर्थानि प्रचरंति स्रुकावंतो निषंगिणः
जो रूद्र, शुद्ध ज्ञान मन, पवित्र प्रदेशों को रक्षा करने संचारण करते है, वह नकारात्मक शक्तियों का साथ युद्ध करने के लिए तीव्र आयुध जैसा क्रियायोग साधना पद्धतिया नियुक्त करने सक्षम है! 
दस 
यजुस्सु 2
या एता वंतश्च भूयाग् सश्च दिशो रुद्रा वितस्थिरे
तेषागुं सहस्र योजनेव धन्वानि तन्मसि   !
हे रूद्र, शुद्ध ज्ञान रूपी मन, जो चंचल मनस्क हजारो में है, और सारे दिशावों से हम को कष्ट देने प्रयत्न कर रहे  है, उन का चंचल मन नाम का धनुष हजारो मैल दूर हमारा निश्चल मन से रखियेगा!   
एकादश
यजुस्सू 3
नमो रुद्रेभ्यो पृथिव्यां  अंतरिक्षो 
दिवि येषामंन्नं वातो वर्षमिषव स्तेभ्योदश
प्राचीर्दश दज्ञिणादश प्रतीचीर्दशोदीचीर्दाशोर्ध्वास्तेनो मृडयंतु
तीयं द्विष्मोयश्चनोद्वेष्टि तंवो जंभे ददामि !
जब साधक साधना आरंभ करता है तब उस का मन स्थूल आहार के लिए बाधा देगा! हे रूद्र, शुद्ध ज्ञान रूपी, हमारा साधना के बीच में नहीं आनेके लिए तुम को नमस्कार करता हु!  जब साधक साधना में आगे बड़ता है तब उस का मन सूक्ष्म आहार वायु यानी विचारों के लिए बाधा देगा!  हे रूद्र, शुद्ध ज्ञान रूपी, हमारा साधना के बीच में नहीं आनेके लिए तुम को नमस्कार करता हु! जब साधक साधना में और भी आगे बड़ता है तब उस का मन को कारण आहार जल बाधा देगा!  हे रूद्र, शुद्ध ज्ञान रूपी, हमारा साधना के बीच में नहीं आनेके लिए तुम को नमस्कार करता हु!
हे रूद्र, शुद्ध ज्ञान रूपी, तुम को पूरब दिशा में नमस्कार करता हु! तुम को पूरब दिशा में नमस्कार करता हु! तुम को पश्चिम दिशा में नमस्कार करता हु! तुम को दक्षिण दिशा में नमस्कार करता हु! तुम को उत्तर दिशा में नमस्कार करता हु! तुम को मेरे से उप्पर दिशा में नमस्कार करता हु! तुम को मेरे से नीचे दिशा में नमस्कार करता हु! तुम को मेरे चारों दिशाओं में नमस्कार करता हु! हे रूद्र, शुद्ध ज्ञान रूपी, हम को सुख देदो ! हमको शुद्ध मन देदो!  हमारा शत्रुवो यानी चंचल मन, चंचल इंद्रियो, और नाकारात्मक शक्तियों तुंहारा मुह में रखता हु! हमको इन से रक्षा करो! 
अनुवाक 11 समाप्त  
  त्रयंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनं 
उरुवारुक मिव बंधनात मृत्योर्मुख् क्षीयमाम्रुतात् 
यों रुद्रो अग्नौ यों अप्सुय ओषधीषु यों रुद्रो
विश्वा भुवना विवेश तस्मै रुद्राय नमो अस्तु ! 
हे रूद्र, शुद्ध ज्ञान रूपी, कालस्वरूप, अखंड आनंद स्वरुप, क्रियायोग साधना का माध्यम से हम पवित्र होनेदो ! जो पका हुआ खीरा अपने आप लता से निकल आजाता है वैसा ही मुझे मृत्युत्व से अम्रुतत्व लभ्य होने दो!
अग्नि, पानी, औषधियां, और विश्व भुवनो में जो रूद्र, शुद्ध ज्ञान रूप, लींन हुआ है, वैसा रूद्र को नमस्कार करता हु! 
 तमुष्टुहि यस्विषुसु धन्वायो विश्वस्य क्षयति भेषजस्य
यक्ष्वामहे सौ मनसाय रुद्रं नमो भिर्देव मसुरंदुवस्व
उत्तम अस्त्र शस्त्रों का साथ वैद्य होकर हमारा रोगों को निर्मूलन करने, और अहंकार पूरित मनस को को संहरण करनेवाला रूद्र, शुद्ध ज्ञान स्वरूपी, हमारा मनो को पवित्र करता है! उस रूद्र को नमस्कार करता हु!   
अयं में हस्तो भगवानयं में भगवत्तरः 
अयं में विश्वभेषजोयं शिवभिमर्शनः !
शुद्ध मन शिव को स्पर्श किया हुआ इस हाथ हम को भगवान का समान है! इस हस्त हमारा सर्व रोगों का निवारणकारी है! 
येते सहस्रमयुतं पाशा मृत्योमार्त्याय हंतवे
तान् यज्ञस्य मायया सर्वानव यजामहे
मृत्यवे स्वाहा मृत्यवे स्वाहा
प्राणानां ग्रंथिरासि रुद्रोमा विशांतकः तेनान्नेनाप्यायस्व
नमो रुद्राय विष्णवे मृत्युर्मे पाहि
मम सर्वाप मृत्युर्नस्यतु आयुर्वर्धतां  
हे रूद्र, शुद्ध ज्ञानरूपी, तुम नकारात्मक शक्तियोको संहरण करते हो ! उस हस्त हम जैसा शुद्ध मनस्को से दूर रखो ! उस के लिए मणिपुर चक्र का माध्यम से अग्निहोत्र समर्पित करता हु! रुद्रा तुम को नमस्कार, मृत्यु देवता हमारा पास नहीं आनेदो ! ब्रह्मा, रूद्र, और विष्णु ग्रंथियों में इन्द्रियों, और प्राणशक्ति का साथ रहते हो! हमारा क्रियायोग साधना फल लेलो ! मृत्यु देवता को हम से दूर रखो !
  शांतिःॐ  शांतिःॐ  शांतिः

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