Srisooktam in Hindi श्रीसूक्तं

Srisooktam in Hindi श्रीसूक्तं



Srisooktam in Hindi--श्रीसूक्तं 

श्री सूक्तं
ॐ हिरण्यवर्णाम् हरिणीं सुवर्ण रजतस्रजाम्
चंद्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आव ह
तां म आव ह जातवेदो लक्स्मीमनपगामिनीम्
यश्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्

अश्वपूर्वाम् रथमध्यां हस्तिनाद प्रबोधिनीं 
श्रियं देवी मुपह्वये श्रीर्मा देवीर्जुषतां

कांसोस्मितां हिरण्यप्राकार मार्द्रां ज्वलंतीं त्रुप्तां तर्पयंतीं 
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्येव श्रियं  

चंद्रां प्रभासाम् यशसा ज्वलंतीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदारां
तां पद्मिनी मीं शरणमहं प्रपद्येलक्ष्मीर्ये नश्यतां त्वां वृणे

आदित्यवर्णे तपसोधिजतो वनस्पतिस्तव वृक्षोथ बिल्वः
तस्य फलानि तपसा नुदंतु मायांतरायाश्च बाह्या अ लक्ष्मीः
 
उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिनासह
प्रादुर्भूतोस्मि राष्ट्रेस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु में

क्षुत्पिपासामालाम ज्येष्ठाम लक्ष्मीं नाशयाम्यहं
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात्

गंधद्वाराम् दुराधर्षां नित्यपृष्टां करीषिणीं
ईश्वारीगुं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियं

मनसः काममा कूतिम् वाचः सत्यमशीमहि
पशूनां रूपमन्नस्य मयिश्रीः श्रयतां यशः

कर्दमेन प्रजाभूता मयि संभव कर्दम
श्रियं वासय में कुले मातरं पद्ममालिनीं

आपः श्रुजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वसमे गृहे
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीं
चंद्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जाता वेदो म आवह

तां म आवह जात वेदो लक्ष्मीमनपगामिनीं
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योश्वान विंदेयं पुरुषा नहं

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्य मन्वहं 
श्रियः पञ्चदशर्चचं श्रीकामः सततं जपेत्

श्री सूक्तं ऋगवेद में है!

ॐ हिरण्यवर्णाम् हरिणीं सुवर्ण रजतस्रजाम्
चंद्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आव ह
तां म आव ह जातवेदो लक्स्मीमनपगामिनीम्
यश्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्

, वेदाधिकारी, मुझे अनुग्रह करो! मुझको सुवर्ण रंग में,  सुवर्ण और रजत मिलित रंग में हुआ चन्द्र का चान्दिनी जैसा सुंदर रूपवाली उस चैतन्य का अनुग्रह करो! उस चेतना मुझे नहीं छोड़ने का अनुग्रह करो! उस चेतना का अधीन इन्द्रियों को मेरा अधीन में रखो! यानी कूटस्थ स्थित चेतना मुझे नहीं छोड़ने का अनुग्रह करो!

अश्वपूर्वाम् रथमध्यां हस्तिनाद प्रबोधिनीं 
श्रियं देवी मुपह्वये श्रीर्मा देवीर्जुषतां

इस रथ जैसा शरीर में इन्द्रियों उपस्थित है! हाथी का घीमकार ॐकार जैसा है! उस नादाब्र्ह्मा व उस तत् व उस माया को मेरा अधीन में होने अनुग्रह करो! उस शक्ती ही लक्ष्मी देवी है!

कांसोस्मितां हिरण्यप्राकार मार्द्रां ज्वलंतीं त्रुप्तां तर्पयंतीं 
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्येव श्रियं
  
हे परमात्मा, उस लक्ष्मी शक्ति सुंदर विकसित सुवर्ण वलय में, पानी में ही रहके भी नहीं सडनेवाली पद्म जैसा है! मुझे अनुग्रह करो! पानी जैसा संसार में रहने से भी मनुष्य को उसका उप्पर आसक्ती नहीं होना चाहीए!

चंद्रां प्रभासाम् यशसा ज्वलंतीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदारां
तां पद्मिनी मीं शरणमहं प्रपद्येलक्ष्मीर्ये नश्यतां त्वां वृणे

हे परमात्मा, वेदाधिकारी, चांदिनी जैसा  प्रकाश से विराजमान उस श्री लक्ष्मी व मया को नमस्कार करता हु! वो हमारा व्यर्थ विचारों को नाश करके हम को अनुग्रह करनेदो!

आदित्यवर्णे तपसोधिजतो वनस्पतिस्तव वृक्षोथ बिल्वः
तस्य फलानि तपसा नुदंतु मायांतरायाश्च बाह्या अ लक्ष्मीः

हे परमात्मा, हमारा तपस का प्रतिफल हमें सूर्यकांति से विराजमान वो श्री लक्ष्मी को प्रसादित करो! हमें बिळ्व जैसा आयुर्वेद वृक्षों को प्रसादित करो! वे हमें नीरोगी काया के लिए देदो ताकि वे हमें साधना के सहकार करे !
 
उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिनासह
प्रादुर्भूतोस्मि राष्ट्रेस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु में

हे परमात्मा, श्री लक्ष्मी को हमको अनुग्रह करो! वो श्री और देवातावों हमको सहायता करे! वे हमारा अंतः सौंदर्य और बाह्य सौंदर्य द्विगुणीकृत करें!
 
क्षुत्पिपासामालाम ज्येष्ठाम लक्ष्मीं नाशयाम्यहं
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात्

हे परमात्मा, श्री लक्ष्मी को हमको अनुग्रह करो! वो श्री हमारा क्षुद्बाधा को नाश करे! और अलक्ष्मीं यानी प्यास और अपवित्रता दोनों को नाश करे!

गंधद्वाराम् दुराधर्षां नित्यपृष्टां करीषिणीं
ईश्वारीगुं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियं

हे परमात्मा, श्री लक्ष्मी को हमको अनुग्रह करो! वो साधानापरोम् को सुगंधापूरित और पुष्टिवान् करनेदो!

मनसः काममा कूतिम् वाचः सत्यमशीमहि
पशूनां रूपमन्नस्य मयिश्रीः श्रयतां यशः

हे परमात्मा, श्री लक्ष्मी को हमको अनुग्रह करो! मेरा मन उन को प्राप्त करने के लिए अत्यंत व्याकुलत् है! उन का अनुग्रह से इस साधनापर को साधना पुष्टि और प्रसन्नता मिलके किसी को भी नहीं होगा!

कर्दमेन प्रजाभूता मयि संभव कर्दम
श्रियं वासय में कुले मातरं पद्ममालिनीं

कर्दम का अर्थ कीचड़,  ओ भूदेवी, तुंहारा मिट्टी हमारा निवासयोग्य होनेदो! हे श्री लक्ष्मी, सदा मेरा ह्रदय में निवास करो! पानी में पद्मा जैसा, मुझे पानी जैसा संसार में रहते हुवे भी संसार से कोई भी रूचि नहीं होनेदो!

आपः श्रुजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वसमे गृहे
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले

ओ भूदेवी, तुंहारा पानी मानवनिवास को अनुकूल होनेदो! हे श्री लक्ष्मी, सदा मेरा ह्रदय में निवास करो! मुझे पानी जैसा संसार में रहते हुवे भी संसार से कोई भी रूचि नहीं होनेदो!

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीं
चंद्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जाता वेदो म आवह

सुवर्ण पद्मो से आवृति हुआ प्रकाशमान पुष्टिमान सरस जैसा, हे श्री लक्ष्मी, हमें अनुग्रह करो! हमें शक्तिमान करो!

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीं 
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जात वेदो म आवह

हे जातवेद, सुवर्ण पद्मों से आवृति हुआ प्रकाश से हमें शक्तिमान करो! हमें सुवर्ण पद्मों से आवृति हुआ प्रकाशमान श्रीलक्ष्मी को अनुग्रह करो!

तां म आवह जात वेदो लक्ष्मीमनपगामिनीं
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योश्वान विंदेयं पुरुषा नहं

सुवर्ण कांतियों से विराजामान श्रीलक्ष्मी को अनुग्रह करो! मुझे इंद्रियों का वश से मुक्त करो!

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्य मन्वहं 
श्रियः पञ्चदशर्चचं श्रीकामः सततं जपेत्

मन शुद्धि करके लगातार साधनामार्ग में हमेशा निमग्न होने साधक को श्री लक्ष्मी अवश्य प्राप्त होगा!



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