मल विक्षेपण और् आवरण दोष
मल विक्षेपण और् आवरण
दोष
कारण शरीर को तमो गुण प्रभाव से मल और्
आवरण एवं रजो गुण प्रभाव से विक्षेपण दोष प्रभावित करते है। सत के यथार्थ रूप को
छिपा कर एकदम दूसरा रूप अभिव्यक्त करना तमो गुण प्रभाव का आवरण दोष है। रजोगुण
संभूत है विक्षेपण शक्ति। माया के विक्षेपण शक्ति की वजह से ही सकल सृष्टि मे सुख
और दुःख,
स्वार्थ, प्रेम, वात्सल्य, दया, संतोष, तृप्ति, असंतृप्ति, अरिषड्वर्ग यानि काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य इत्यादि
कारण शरीर को रजो गुण की प्रधानता से विक्षेपण दोष होता है।
सूक्ष्म तमो गुण प्रधान मल आवरण दोषों
और सूक्ष्म रजोगुण प्रधान विक्षेपण दोषों की वजह से ही इस कारण शरीर को 1) देह वासना यानि
कर्तृत्व और भोक्तृत्व,
ईषण
त्रयं यानि धनेषण,
धारेषण
और पुत्रेषण,
कीर्ति
वांछ, 2) शास्त्र वासना 3) लोक वासना यानि
कर्मफलों को अनुभव करने की प्रीति,
अविद्या, अस्मिता (भय, अहंकार) राग, द्वेष और अभिनिवेश (अपने शरीर से व्यामोह) उत्पन्न होता है।
ब्रह्मविद ब्रह्मैव
भवति
यानि
जो ब्रह्मज्ञानि है वो ब्रह्म ही हो जाते है। साधक निष्काम कर्म योग द्वारा मल
दोष को विसर्जित कर के ब्रह्मविद कहलाता है।
निरंतर ब्रह्मीस्थिति
मे रहकर तमोगुण प्रधान आवरण दोषों को विसर्जित कर के ब्रह्मविद्वर कहलाता है।
सविकल्प समाधि की
स्थिति मे रहकर रजोगुण प्रधान विक्षेपण दोषों को विसर्जित कर के ब्रह्मविद्वरीय
कहलाता है।
निर्विकल्प समाधि की
स्थिति मे रहकर सर्व गुण विसर्जित कर के ब्रह्मविद्वरिष्ठ कहलाता है।
गीता को उलट कर लिखने पर तागी
यानि त्याग बनता है। मतलब मल, विक्षेप, आवरण दोषों का त्याग
करो।
साधक अपना साधन में तीन प्रकार का अवरोध, आदिभौतिक, आदिदैविक,
और आध्यात्मिक, आते है!
आदिभौतिक अवरोध का अर्थ शारीरक रुग्मतायें, आदिदैविक अवरोध का
अर्थ मानसिक रुग्मतायें, और आध्यात्मिक का अर्थ ध्यानसम्बंधिता रुग्मतायें, है!
इन्ही को मल, आवरण और विक्षेपण दोषों कहते है!
शारीरक रुग्मतायें का मतलब ज्वर, शिरदर्द, बदन का दर्द
इत्यादि!
मानसिक रुग्मतायें, का मतलब मन का संबंधित विचारों इत्यादि!
ध्यानसम्बंधिता रुग्मतायें का मतलब निद्रा, तन्द्रा,
आलसीपन इत्यादि!
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