Mudras, Beejaksharas in Chakras(Hindi)






नाम
कैसे करना
पद्धति
तंदुरुस्ती पर प्रभाव्
 प्राणमुद्रा

कनिष्ठा तथा अनामिका अंगुलियों के अग्रभाग को अंगुठें के अग्रभाग से मिलाए।
शरीर की दुर्बलता दूर करना, मन की शांति, आंखों के दोषों को दूर करना, शरीर की रोगनिरोधक शक्ति बढाना, विटमिनो की कमी को दूर करना, थकान दूर करना शरीर और आँखों की चमक बढती है।
अपान मुद्रा

तर्जनी अंगुली को अंगुठें के मूल मे लगाऐ, मध्यमा और अनामिका अंगुलियों को अंगुठें के अग्रभाग से मिलाऐ।
हृदय को ताकत मिलती है, दिल का दौरा पडते ही तुरंत यह मुद्रा करने से आराम मिलता है, सिरदर्द, दमे के शिकायत को ठीक करना, उच्च रक्तचाप(high blood pressure)मे फायदा होना।


लिंग मुद्रा

  मुट्ठी बाँधे और अंदर के अंगुठें को खडा रखे, अन्य अंगुलियों को बंधी हुई रखे। 
गर्मी बढाना, सर्दी, जुकाम, दमा, खाँसी, सायनस, और निम्न रक्तचाप (low Blood Pressure) मे फायदा होना।

ज्ञान मुद्रा

 अंगुठें को तर्जनी अंगुली के सिरे से लगा दे। शेष तीन अंगुलिया सीधी रखें।
 स्मरण शक्ति वृद्धि,  ज्ञान की वृद्धि, पढने मे मन लगना, मस्तिष्क के स्नायु मजबूत होना, सिरदर्द दूर होना, अनिद्रा का नाश, स्वभाव परिवर्तन, अभ्यास शक्ति आना, क्रोध का नाश।
शून्य मुद्रा

मध्यमा अंगुली को मोडकर अंगुष्ठ के मूल मे लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें।
कान नाक और गले के रोगों को दूर करना  (Removes all types of  ENT problems), मसूढे की पकड मजबूत करना और थाँयराईड रोग मे फायदा होता है।

वायु मुद्रा

तर्जनी अंगुली को मोडकर अंगुष्ठ
के मूल मे लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें।
वायु शाँति, लकवा, सयटिका, गठिया, संधिवात, घुटने के दर्द मे फायदा, गर्दन के दर्द मे फायदा., रीढ के दर्द मे फायदा, और पार्किसंस रोग मे फायदा ( Parkinson's disease) होता है।

सूर्य मुद्रा

 अनामिका अंगुली को मोडकर अंगुष्ठ के मूल मे लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें।

शरीर संतुलित होना, वजन घटना, मोटापा कम होना, उष्णता वृद्धि,   कोलोस्ट्रोल मे कमी   (control bad Cholesterol), मधुमेह और लिवर रोग मे फायदा (Diabetes and Liver-related problems) , तनाव मे कमी (body tension )  

पृथ्वी मुद्रा

अनामिका अंगुलि को अंगुष्ठ से लगायें और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें।
शरीर मे स्फूर्ति , काँति और तेजस्विता आना, दुर्बल को मोटा बनाना, वजन बढाना, जीवनी शक्ति वृद्धि, दिमाग मे शांति और विटमिनो की कमी को दूर करना।
वरुण मुद्रा

कनिष्ठा  अंगुलि को अंगुष्ठ से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया
सीधी रखें।
 
रूखेपन की कमी और चिकनायी मे वृध्दि, चर्म मे मृदुत्व होना, मुँहासों को नष्ट करना और चहरे मे सुंदरता का बढाना रक्त विकर और जलतत्व की कमी से उत्पन्न रोगों को दूर करने मे लाभकारी है।

 



ध्यान नही करनेवाला व्यक्ति शूद्र(परिचारक)कहलाता है, वह कलियुग का व्यक्ति गीना जायेगा,उस का हृदय अंधकारमय होगा, वह ध्यान करने के बाद क्षत्रिय वर्ग यानि योद्धा के वर्ग मे आ जाता है !
चक्रों स्थान्
तत्व तन्मात्र
लिंगं हंस हृदयं
फलित
बीजाक्षर, शक्ति , अधिदेवत
रंग रुचि शब्द दल  
प्रातिनिध्य्
समाधि का नाम्
महाभारत्
श्री तिरुपति बालाजि चरित्र
मूलाधार
गुदा के 2 इंच उपर
सृष्टि
क्षत्रिय वर्ग्
आधार लिंग, 96 मिनट मे 600 हंस, स्पंदना हृदय
सूक्ष्म दृष्टि
 .लं, इच्छा शक्ति, विनायक  (साधक कलियुग मे ही गिना जायेगा)
 पीला , मीठा फल रुचि, भ्रमर शब्द, 4 दल
सहदेव (मणिपुष्पक शंख)
शेषाद्रि (कुंडलिनि (सांप) के उपर बैठा है)  
सवितर्क संप्रज्ञात (संदेहास्पद)
स्वाधिष्टान(शिश्न के  4उपर)
जल, रस, रुचि, द्विज, (दूसरा जन्म्)
गुरुलिंग, 144 मिनट मे 6000 हंस स्थिर हृदय
इंद्रिय निग्रह,  अनिग्रह, 
वं  क्रिया शक्ति, ब्रह्म, (द्वापरयुग )
सफेद्, थोडा कडवा,  बासुरी वादशब्द, 6 दल
नकुल, सुघोष,  (परमात्मा मेरे साथ है ऐसी भावना)
वेदाद्रि (पवित्र बासुरी  वादन सुनाई दिया)
सविचार   संप्रज्ञात या सालोक्य
मणिपुर (नाभि के पीछे)
अग्नि, रूप, विप्र वर्ग्
शिवलिंग  240 मिनट मे  6000 हंस, अंकित हृदय
रोग निरोधक शक्ति दुष्ट शक्तियो से मुक्ति   
रं ज्ञान शक्ति ,  श्री विष्णु  (त्रॆतायुग)
लाल, कडवा, वीण शब्द, 10 दल
अर्जुन, देवदत्त, (परमात्मा के पास हुँ ऐसी अनुभूति)
गरुडाद्रि (उपर उठने की अनुभूति)
सानंद संप्रज्ञात
  या सालोक्य
अन्नहत( हृदय के पीछे)
वायु, स्पर्श, ब्राह्मण्
चरलिंग, 288मिनट् मे 6000 हंस, शुद्ध हृदय्
पवित्र प्रेम   
यं बीज शक्ति, रुद्र, (सतयुग)
नीला, खट्टापन  घण्टी का शब्द्,   12  दल
 भीम ,पौंड्र,(परमात्मा के सन्निधि की अनुभूति).
अंजनाद्रि(हवा मे उडने की अनुभूति
सस्मित संप्रज्ञात या सायुध्य
विशुद्ध (गले मे)
आकाश
शब्द
प्रसाद लिंग, 384मिनट मे 1000 हंस  
 शांति  
  हं,
  आदि शक्ति,
  आत्म(जीव)
सफेद मेघ, बहुत कडवा, प्रवाह शब्द, 16 दल
युधिष्ठिर, अनंतविजय (मै परमात्मा के साथ हुं अनुभूति)
वृषभाद्रि  
असंप्रज्ञात या सारूप्य
आज्ञा (कूटस्थ)

महालिंग 48 मिनट् मे 1000 हंस
दिव्यदृष्टि
ओं पराशक्ति, ईश्वर
असिमित प्रकाश
श्रीकृष्ण, पांचजन्य (मै और परमात्मा एक है)
वेंकटाद्रि
सविकल्प
या
स्रष्टा
सहस्रार (ब्रह्म रंध्रं) मे

ओंकारलिंग् 240 मिनट मे 1000 हंस   
जगत संसार से विमुक्ति
रांपरमात्मा, सत गुरु

परमात्मा के साथ ऐक्य
नारायणाद्रि
निर्विकल्प



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