ANUSHTAANA GAYATRI AND JATAKADOSHA NIVAARINEE KRIYAS IN HINDI
13) अनुष्ठान गायत्री:
गायंतं त्रायते इति गायत्री
इस मंत्र जितना समय गायेगा इतना
लाभदायक है और रक्षा करता है!
ॐ भूर्भुवस्वः तत्सवितर्वरेण्यं
भर्गो देवशय धीमहि धीयोयोंनः
प्रचोदयात
ॐ= परमात्मा, भूः= आप
प्रणव स्वरुप है, भुवः= दुःख नाशकारी है, स्वः=सुख स्वरुप है, तत्= ओ, सवितुः=
तेजस यानी प्रकाश रूपी, देवशय=भगवान का, वरेण्यं= श्रेष्ठमय, भर्गः=पापनाशक प्रकाश
को, धीमहि=ध्यान करेंगे, यः= जो, नः= हमारा, धियः=बुध्धों को, प्रचोदयात= प्रेरेपण
करेंगे!
तात्पर्य:-- परमात्मा, आप प्रणव स्वरुप है, दुःख नाशकारी है, सुख स्वरुप
है, ओ, तेजस यानी प्रकाश रूपी, भगवान का,
श्रेष्ठमय, पापनाशक प्रकाश को, ध्यान करेंगे, जो, हमारा, बुध्धों को, प्रेरेपण करेंगे!
पूरक=श्वास को अंदर लेना, अंतःकुम्भक= श्वास को कूटस्थ में रोख के रखना,
रेचक= श्वास को बाहर निकाल्देना, बाह्यकुम्भक= श्वास को शारीर के बाहर रोख के
रखना!
एक पूरक, अंतःकुम्भक , रेचक, और बाह्यकुम्भक, सब मिलाके एक हंसा कहते है!
मन में गायत्री मंत्र बोल्तेहुवे
एक दीर्घ हंस करना है!
पूरक, अंतःकुम्भक , रेचक, तीनोँ
समानाप्रतिपत्ति में होना चाहिए!
साधक का सामर्थ्य का मुताबिक़ बाह्यकुम्भक जितना समय तक रोख सखता उतना समय
तक रोख सखता है!
अब ‘ह ह’ करके 10 अथवा 12 बार रेचकं करना चाहिए! तत् पश्चात कूटस्थ
अथवा सहस्रार में मन और दृष्टि लगाके खेचरी मुद्रा में ध्यान करना चाहिए!
14) सो हम् क्रिया:
सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा
सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! अनामिका अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के
आग्रभाग से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें। कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन को
जिस चक्र मे ध्यान कर रहे है उसी चक्र मे रखिए और उस चक्र मे तनाव डालिए! पूरब
दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा ढीला रखीए!
श्वास मेरुदंड का मूलाधारचक्र से आज्ञा पाजिटिव (कूटस्थ) चक्र तक आता है,
और कूटस्थ से मूलाधारचक्र से शारीर का बाहर वापस जाताहै करके भावना करना
चाहिए!
मन में ‘सो’ कहते हुए पूरकं करना, कूटस्थ में श्वास को रोख के रख
के अंतःकुम्भक करना, मन और दृष्टि को कूटस्थ में ही रखना, रोखा हुआ श्वास को ‘हम’ कहते हुए छोड़णा यानी रेचक करना!
मन और दृष्टि आवक जावक श्वास का अनुसरण करना चाहिए!
प्रथम दफा ही कूटस्थ में श्वास को रोख के रख के अंतःकुम्भक करना, तत्
पश्चात श्वास अपने आप अंदर आना और अपने आप बाहर जाने देना! श्वास को प्रयत्नपूर्वक
कूटस्थ में श्वास को रोख के नहीं रखना! श्वास जो चक्र तक आएगा और जो चक्र तक जाके
रोखेगा सिर्फ देखना ही है!
ऐसा पूरक और रेचाकों में श्वास को अवलोकन का समय में अंतर्मुख होंकर समाधि
लभ्य होने से उस आनंद में बाहर आने तक बैठना चाहिए!
14) ॐकार सुनने क्रिया:
सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा
सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! अनामिका अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के
आग्रभाग से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें। कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन को
जिस चक्र मे ध्यान कर रहे है उसी चक्र मे रखिए और उस चक्र मे तनाव डालिए! पूरब
दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा ढीला रखीए! इस क्रिया
को खेचरी मुद्रा में कीजिए!
दोनों
आँखें, नाक, कानों, और मुह को दोनों हाथों का अंगुलियों से बंद कर के कूटस्थ में
मन और दृष्टि निमग्न करना! इसी को योनी मुद्रा कहते है!
अब मन ही मन लंबा से ‘ॐ’ अपना सामर्थ्य के अनुसार कहिए! अन्तःकुम्भक करके कूटस्थ में मन और
दृष्टि निमग्न करना! अपना सामर्थ्य के अनुसार श्वास को रोक के रखना, अब श्वास को ‘ॐ’ बोल्तेहुवे रेचक करके बाह्यकुम्भक करके कूटस्थ में मन और दृष्टि निमग्न
करना! अपना सामर्थ्य के अनुसार श्वास को रोक के रखना!
शिर में अन्तःकुम्भक और
बाह्यकुम्भक करने समय में ॐकार सुनने को प्रयत्न करना! ॐकार सुनाई देनेसे उसी
पवित्र शब्द में ममैक होना चाहिए!
जातक दोष निवारिणी क्रियाये:
सहस्रार(रवि)
कुम्भ
|
आज्ञा(बुध)
|
मीन
|
धनुष
|
विशुद्ध(शुक्र)
|
मकर
|
तुल
|
अनाहत (चंद्र)
|
वृश्चिक
|
सिंह
|
मणिपुर(कुजा)
|
कन्या
|
मिथुन
|
स्वाधिष्ठान(गुरु)
|
कर्काटक
|
मेष
|
मूलाधार(शनि)
|
वृषभ
|
1)
कालसर्पदोष:--
इस दोष का कारण
मनुष्य को विद्या, आर्थिक और विद्यादि
विषयों में समस्यों आता है!
सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! अनामिका
अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी
रखें। कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे है उस चक्र मे रखिए
और उस चक्र पर तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर
को थोडा ढीला रखीए! इस क्रिया खेचरी मुद्रा में कीजिए!
मूलाधार में 4 बार, स्वाधिष्ठान में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव में
18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए!
अब सहस्रार में
लिंगामुद्रा में ‘राम् ‘ बीजाक्षर 108 बार उच्चारण कीजिये! ए क्रिया सुबह और शाम खास करके प्रातः और सायं
संध्याकाल दोनों समय में 41 दिन करनेसे कालसर्पदोष जरूर निवारण होगी!
इस दोष का कारण
मनुष्य को विद्या, आर्थिक और विद्यादि
विषयों में समस्यों आता है!
सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! अनामिका
अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी
रखें। कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे है उस चक्र मे रखिए
और उस चक्र पर तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर
को थोडा ढीला रखीए! इस क्रिया खेचरी मुद्रा में कीजिए!
मूलाधार में 4 बार, स्वाधिष्ठान में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव में
18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए!
अब सहस्रार में
लिंगामुद्रा में ‘राम् ‘ बीजाक्षर 108 बार उच्चारण कीजिये! ए क्रिया सुबह और शाम खास करके प्रातः और सायं
संध्याकाल दोनों समय में 41 दिन करनेसे कालसर्पदोष जरूर निवारण होगी!
2)
गुरुदोष:
इस दोष का कारण
मनुष्य को विद्या और विवाहादि विषयों में समस्यों आता है!
सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! अनामिका
अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी
रखें। कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे है उस चक्र मे रखिए
और उस चक्र पर तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर
को थोडा ढीला रखीए! इस क्रिया खेचरी मुद्रा में कीजिए!
मूलाधार में 4 बार, स्वाधिष्ठान में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव में
18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार, सहस्रार में 21 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और
बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए!
अब स्वाधिष्ठान
चक्र में तनाव(Tense) डालना है! वरुणमुद्रा में ‘लम् ‘ बीजाक्षर 108 बार उच्चारण कीजिये! ए क्रिया सुबह और शाम खास करके प्रातः और सायं
संध्याकाल दोनों समय में 41 दिन करनेसे गुरु दोष जरूर निवारण होगी!
3)
शुक्र दोष:
इस दोष का कारण
मनुष्य को संतान, कुटुम्ब में कलहों और वीर्यक्षीणता इत्यादि विषयों में समस्यों
आता है!
सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! अनामिका
अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी
रखें। कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे है उस चक्र मे रखिए
और उस चक्र पर तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर
को थोडा ढीला रखीए! इस क्रिया खेचरी मुद्रा में कीजिए!
मूलाधार में 4 बार, स्वाधिष्ठान में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव में
18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार, सहस्रार में 21 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और
बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए!
अब विशुद्ध चक्र
में तनाव(Tense) डालना है! आकाश मुद्रा में ‘हम् ‘ बीजाक्षर 108 बार उच्चारण कीजिये! ए क्रिया सुबह और शाम खास करके प्रातः और सायं
संध्याकाल दोनों समय में 41 दिन करनेसे शुक्र दोष जरूर निवारण होगी!
4)
चंद्र दोष
इस दोष का कारण
मनुष्य को मानसिक, व्यापार और उद्योग
इत्यादि विषयों में समस्यों आता है!
सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! अनामिका
अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी
रखें। कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे है उस चक्र मे रखिए
और उस चक्र पर तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर
को थोडा ढीला रखीए! इस क्रिया खेचरी मुद्रा में कीजिए!
मूलाधार में 4 बार, स्वाधिष्ठान में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव में
18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार, सहस्रार में 21 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और
बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए!
अब अनाहत चक्र
में तनाव(Tense) डालना है! वायु मुद्रा में ‘यम् ‘ बीजाक्षर 108 बार उच्चारण कीजिये! ए क्रिया सुबह और शाम खास करके प्रातः और सायं
संध्याकाल दोनों समय में 41 दिन करनेसे चंद्र दोष जरूर निवारण होगी!
5) शनि दोष
इस दोष का कारण
मनुष्य को दरिद्रता, कुटुंब में कलहों, विविध रूप में कष्टों, मानहानि, और व्यवहार
विषयों में समस्यों आता है!
सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! अनामिका
अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी
रखें। कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे है उस चक्र मे रखिए
और उस चक्र पर तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर
को थोडा ढीला रखीए! इस क्रिया खेचरी मुद्रा में कीजिए!
मूलाधार में 4 बार, स्वाधिष्ठान में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव में
18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए!
अब मूलाधार चक्र
में तनाव(Tense) डालना है! पृथ्वी मुद्रा में ‘लम् ‘ बीजाक्षर 108 बार उच्चारण कीजिये! ए
क्रिया सुबह और शाम खास करके प्रातः और सायं संध्याकाल दोनों समय में 41 दिन करनेसे शनि दोष
जरूर निवारण होगी!
6)कुज दोष:
इस दोष का कारण
मनुष्य को शत्रुहानी, स्वयंकृतापराथ समस्यों आता है!
सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! अनामिका
अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें।
कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे है उस चक्र मे रखिए और उस
चक्र पर तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर को
थोडा ढीला रखीए! इस क्रिया खेचरी मुद्रा में कीजिए!
मूलाधार में 4 बार, स्वाधिष्ठान में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव में
18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए!
अब मणिपुर चक्र
में तनाव(Tense) डालना है! अग्नि मुद्रा में ‘राम् ‘ बीजाक्षर 108 बार उच्चारण कीजिये! ए
क्रिया सुबह और शाम खास करके प्रातः और सायं संध्याकाल दोनों समय में 41 दिन करनेसे कुज दोष
जरूर निवारण होगी!
7) रवि दोष
इस दोष का कारण
मनुष्य को विद्या, आध्यात्मिक्शून्यता अथवा न्यूनता और आर्थिक इत्यादि विषयों में
समस्यों आता है!
सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! अनामिका
अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी
रखें। कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे है उस चक्र मे रखिए
और उस चक्र पर तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर
को थोडा ढीला रखीए! इस क्रिया खेचरी मुद्रा में कीजिए!
मूलाधार में 4 बार, स्वाधिष्ठान में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव में
18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए!
अब सहस्रार चक्र
में तनाव(Tense) डालना है! लिंग मुद्रा में ‘राम् ‘ बीजाक्षर 108 बार उच्चारण कीजिये! ए
क्रिया सुबह और शाम खास करके प्रातः और सायं संध्याकाल दोनों समय में 41 दिन करनेसे रवि दोष
जरूर निवारण होगी!
8) बुध दोष
इस दोष का कारण
मनुष्य को विद्या, वाचालता का वजह से और
व्यापार इत्यादि विषयों में समस्यों आता है!
सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! अनामिका
अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी
रखें। कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे है उस चक्र मे रखिए
और उस चक्र पर तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर
को थोडा ढीला रखीए! इस क्रिया खेचरी मुद्रा में कीजिए!
मूलाधार में 4 बार, स्वाधिष्ठान में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव में
18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए!
अब आज्ञा
पाजिटिव चक्र में तनाव(Tense)
डालना है! ज्ञान मुद्रा में ॐ ‘ बीजाक्षर 108 बार उच्चारण कीजिये! ए
क्रिया सुबह और शाम खास करके प्रातः और सायं संध्याकाल दोनों समय में 41 दिन करनेसे बुध दोष
जरूर निवारण होगी!
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