मुद्राये बंधों
मुद्राये बंधों
1) खेचरी मुद्रा: कूटस्थ मे दृस्टि स्थिर कर के आँखें खोल
के या बंद कर के तालु मे जीभ को रख के प्राणायाम क्रिय करना।
2) भूचरी मुद्रा: अर्ध मीलित नेत्रों से दृस्टि को नाक के उपर
रखना।
3) मध्यम मुद्रा: कूटस्थ मे दृस्टि स्थिर कर के आँखो और कानों
को बंद कर के प्राण शक्ति को अंतः कुंभक करना।
4) शांभवि मुद्रा : पद्मासन या सुखासन मे बैठ कर कुंभक
करना और ध्यान करना।
सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! अनामिका अंगुलि के
आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें। कूटस्थ
मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे है उस चक्र मे रखिए और उस चक्र पर
तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा ढीला
रखीए! खेचरी मुद्रा में रहिये!
मूलाधार में 4 बार,
स्वाधिष्ठान में 6 बार, मणिपुर में 10 बार,
अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार,
आज्ञा नेगटिव में18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार,
अन्तः कुंभक (Fission) और बाह्य कुंभक(Fusion) कीजिए!
मुद्राये बंधों
अंगुली
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तत्व
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रुग्मता
निवारण
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अंगुष्ठ
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परमात्माका
प्रतीक है! अग्नि (रूप) तत्व
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दुर्बल
जीर्णशक्ति, मोटापन
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तर्जनी
|
आत्मा का
प्रतीक है! वायुतत्व (स्पर्श)
|
चर्मरोग,
पार्किन्सन (Parkinson)
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मध्यम
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आकाश तत्व(शब्दं)
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कान का
संबधित रोग निवारण
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अनामिक
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पृथ्वी तत्व
(गंध)
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व्याधि
निरोधाकशक्ति में बलहीनता का निवारण
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कनिष्ट
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जल(रस)
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रक्त हीनता,
अरुचि
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अभय मुद्रा छोडके बाकी मुद्राये कम से कम20 मिनट कीजिये!
ध्यानामुद्राए से मानसिक प्रशांति, शांति, मुख में कांति,
कुण्डलिनी जाग्रति करना होजायेगा!
प्राण मुद्रा:
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कनिष्ठा तथा अनामिका अंगुलियों के अग्रभाग
को अंगुठें के अग्रभाग से मिलाए। हर दिन प्रातः तथा सायम संध्या समाया में 25 मिनट करने से
शरीर की दुर्बलता दूर करना, मन की शांति, आंखों के दोषों को दूर करना, शरीर की
रोगनिरोधक शक्ति बढाना, विटमिनो की
कमी को दूर करना, थकान दूर करना
शरीर और आँखों की चमक बढती है।
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अपान मुद्रा:
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तर्जनी अंगुली को अंगुठें के मूल मे लगाऐ, मध्यमा और अनामिका अंगुलियों को अंगुठें के
अग्रभाग से मिलाऐ।
हृदय को ताकत मिलती है, दिल का दौरा पडते ही तुरंत यह मुद्रा करने से आराम मिलता है, सिरदर्द, दमे के शिकायत को ठीक
करना, उच्च रक्तचाप(high blood pressure)मे फायदा होना।
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लिंगमुद्रा
मुट्ठी बाँधे और अंदर के अंगुठें को खडा रखे, अन्य अंगुलियों को बंधी हुई रखे।
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सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! अनामिका अंगुलि के
आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें। कूटस्थ
मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे है उस चक्र मे रखिए और उस चक्र
पर तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा
ढीला रखीए! खेचरी मुद्रा में रहिये!
मूलाधार में 4 बार, स्वाधिष्ठान
में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव
में18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए!
अब सहस्रार में लिंगामुद्रा में ‘राम् ‘ बीजाक्षर 108 बार उच्चारण
कीजिये! ए क्रिया सुबह और शाम खास करके प्रातः और सायं संध्याकाल दोनों समय में 41 दिन करनेसे
गर्मी बढाना, सर्दी, जुकाम, दमा, खाँसी, सायनस, और निम्न रक्तचाप (low Blood Pressure) मे फायदा होना।
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ज्ञान मुद्रा
अंगुठें को तर्जनी अंगुली के सिरे से लगा
दे। शेष तीन अंगुलिया सीधी रखें।
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सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके
बैठिए! अनामिका अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए। शेष
अंगुलिया सीधी रखें। कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे है
उस चक्र मे रखिए और उस चक्र पर तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और
मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा ढीला रखीए! खेचरी मुद्रा में रहिये!
मूलाधार में 4 बार, स्वाधिष्ठान
में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव
में18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए!
अब आज्ञा पाजिटिव चक्र में तनाव(Tense) डालना है! ज्ञान मुद्रा में ॐ ‘ बीजाक्षर 108 बार उच्चारण कीजिये! ए क्रिया सुबह और शाम खास करके प्रातः और सायं
संध्याकाल दोनों समय में 41 दिन
करनेसे
स्मरण शक्ति वृद्धि, ज्ञान की वृद्धि, पढने मे मन लगना, मस्तिष्क के स्नायु मजबूत होना, सिरदर्द दूर होना, अनिद्रा का नाश, स्वभाव परिवर्तन, अभ्यास शक्ति आना, क्रोध का नाश।
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शून्य मुद्रा
मध्यमा अंगुली को
मोडकर अंगुष्ठ के मूल मे लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें।
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सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन
मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! अनामिका अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग
से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें। कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र
मे ध्यान कर रहे है उस चक्र मे रखिए और उस चक्र पर तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा
उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा ढीला रखीए! खेचरी मुद्रा में
रहिये!
मूलाधार में 4 बार, स्वाधिष्ठान में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव में18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और
बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए! अब
विशुद्ध चक्र में तनाव(Tense) डालना है!
आकाश मुद्रा में ‘हम् ‘ बीजाक्षर 108 बार उच्चारण कीजिये! ए क्रिया सुबह और शाम खास करके प्रातः और सायं
संध्याकाल दोनों समय में 41 दिन करनेसे शुक्र दोष जरूर निवारण होगी!
कान नाक और गले के रोगों को
दूर करना (Removes all types of ENT
problems), मसूढे की पकड मजबूत करना और थाँयराईड रोग मे फायदा
होता है।
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वायुमुद्रा
तर्जनी अंगुली को मोडकर अंगुष्ठ
के मूल मे लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी
रखें।
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सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके
बैठिए! अनामिका अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए। शेष
अंगुलिया सीधी रखें। कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे है
उस चक्र मे रखिए और उस चक्र पर तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और
मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा ढीला रखीए! खेचरी मुद्रा में रहिये!
मूलाधार में मूलाधार में 4 बार, स्वाधिष्ठान में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव में18 बार, आज्ञा पाजिटिव
में 20 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और
बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए! अब अनाहत चक्र में तनाव(Tense) डालना है! वायु मुद्रा में ‘यम् ‘ बीजाक्षर 108 बार उच्चारण
कीजिये! ए क्रिया सुबह और शाम खास करके प्रातः और सायं संध्याकाल दोनों समय में 41 दिन करनेसे
वायु शाँति, लकवा, सयटिका, गठिया, संधिवात, घुटने के दर्द मे
फायदा, गर्दन के दर्द मे
फायदा., रीढ के दर्द मे फायदा, और पार्किसंस रोग मे
फायदा (Parkinson's disease) होता है।
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अग्निमुद्रा
अनामिका अंगुली को मोडकर अंगुष्ठ के मूल मे लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी
रखें।
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सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! अनामिका अंगुलि के
आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें। कूटस्थ
मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे है उस चक्र मे रखिए और उस चक्र पर
तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा
ढीला रखीए! खेचरी मुद्रा में रहिये!
मूलाधार में 4 बार, स्वाधिष्ठान
में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव
में18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए!
अब मणिपुर चक्र में तनाव(Tense) डालना है! अग्नि मुद्रा में ‘राम् ‘ बीजाक्षर 108 बार उच्चारण
कीजिये! ए क्रिया सुबह और शाम खास करके प्रातः और सायं संध्याकाल दोनों समय में 41 दिन करनेसे
शरीर संतुलित होना, वजन घटना, मोटापा कम होना, उष्णता वृद्धि,
कोलोस्ट्रोल मे कमी (control bad Cholesterol), मधुमेह और लिवर रोग मे फायदा (Diabetes and Liver-related problems), तनाव मे कमी (body tension )
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पृथ्वीमुद्रा
अनामिका अंगुलि को अंगुष्ठ से लगायें और
दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें।
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सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! अनामिका अंगुलि के
आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें। कूटस्थ
मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे है उस चक्र मे रखिए और उस चक्र
पर तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा
ढीला रखीए! खेचरी मुद्रा में रहिये!
मूलाधार में 4 बार, स्वाधिष्ठान
में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव
में18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए! अब
मूलाधार चक्र में तनाव(Tense) डालना है! पृथ्वी मुद्रा में ‘लम् ‘ बीजाक्षर 108 बार उच्चारण
कीजिये! ए क्रिया सुबह और शाम खास करके प्रातः और सायं संध्याकाल दोनों समय में 41 दिन करनेसे
शरीर मे
स्फूर्ति , काँति और तेजस्विता आना, दुर्बल को मोटा बनाना, वजन बढाना, जीवनी शक्ति वृद्धि, दिमाग मे
शांति और विटमिनो की कमी को दूर करना।
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वरुणमुद्रा
कनिष्ठा अंगुलि को अंगुष्ठ से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया
सीधी रखें।
|
सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! अनामिका अंगुलि के
आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें। कूटस्थ
मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे है उस चक्र मे रखिए और उस चक्र
पर तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा
ढीला रखीए! खेचरी मुद्रा में रहिये!
मूलाधार में 4 बार, स्वाधिष्ठान
में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव
में18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए!
अब स्वाधिष्ठान चक्र में तनाव(Tense) डालना है! वरुणमुद्रा में ‘वम् ‘ बीजाक्षर 108 बार उच्चारण
कीजिये! ए क्रिया सुबह और शाम खास करके प्रातः और सायं संध्याकाल दोनों समय में 41 दिन करनेसे
रूखेपन की कमी और चिकनायी मे वृध्दि, चर्म मे मृदुत्व होना, मुँहासों को
नष्ट करना और चहरे मे सुंदरता का बढाना रक्त विकर और जलतत्व की कमी से उत्पन्न
रोगों को दूर करने मे लाभकारी है।
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अभय मुद्रा:
शांति और सौभाग्य से वर्धिल्ल होने के लिए
बड़े लोग अपना आशीस देते है इस मुद्रा का माध्यम से!
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मेरुदंड मुद्रा:
मेरुदंड को सीदा रखा के कमर का दर्द में
उपशमन देता है!
चारों अँगुली मोड़ के मुट्ठी बाँध के अंगुष्ट
को सीदा रखना चाहिए!
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आदिमुद्र!
फेफडों में श्वास भरके रक्त को शुद्दी करता
है!
अंगुष्ट को बाँधा के शेष चारों अँगुली उस का
उप्पर से मुट्ठी बाँध के रखना है!
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अंजली मुद्र:
गले का बाधा निवारण करता है!
कानो को दबाता हुआ दोनों हाथ सीदा रखना है!
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अंकुश मुद्र:
एकाग्रता और आँखों का बाधा निवारण के लिए
अच्छी है!
मध्यमा अँगुली को सीदा रखा के शेष अंगुलियाँ
दबाके मोड़ के रखना है!
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जलाधारानाशक मुद्र:
नाक से पानी अना (Running nose), अतिसार (diarrhea), मोटापन (Obesity) निवारण!
कनिष्ट से अंगुष्ट का
मूल का दबा के रखना,
शेष अंगुलियों सीदा रखना!
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मकरमुद्र:
गुर्दा (kidney), Jigar(लीवर) पीड़ित लोगों के लिए अच्छा है!
एक हथेली (palm) का अनामिका और कनिष्ट का बीच में दूसरा हाथ का हथेली (palm) का अंगुष्ट को रखना है! अब पहला हथेली (palm) का अंगुष्ट को दूसार हाथ का अनामिका साथ दबाके रखना है!
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शक्तिमुद्र:
नाभी का नीचे का नसों को बलोपेत करेगा! स्त्रीओं का ऋतुबाधायें(mesuration problems) को सुधारेगा!
दोनों हाथो का हथेली (palm) का कनिष्ट और अनामिका मिलाना है! नाखुनवाला अंगुष्ट मध्यम और तर्जनियों को मिलाके दबाके सीदा रखना है!
|
||
पृष्ठ मुद्र
|
कमर दर्द के लिए अच्छा मुद्रा है!
बाए हाथ अंगुष्ट का मध्यभाग में नाखूनवाला तर्जनी
का साथ दबाके रखना है! शेष अंगुलियाँ सीदा रखना है! दाए हाथ अंगुष्ट मध्यमा और नाखूनवाला कनिष्ट भागो को दबाके
रखना है! शेष अंगुलियाँ सीदा रखना है!
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चिन्मुद्र
|
ज्ञानमुद्र को उलटा
करके रखने से चिन्मुद्र होजायेगा! यह ध्यानमुद्रा है!
रक्तदाब(blood
pressure)निवारण, सकारात्मक विचारे लाने में सहायता करना, स्मृति शक्ति में बढ़ाव(improves memory power), पैरों में
पानी(edema) बीमारी को सुधारेगा, फेफड़ों में श्वास भरके रक्त को शुद्ध करना!
|
|
चिन्मय मुद्र
|
फेफड़ों में श्वास
भरके रक्त को शुद्धी करना! हृदय के लिए अच्छा है! यह ध्यानमुद्र है!
तर्जनी नाखूनवाला
भाग और अंगुष्ट नाखूनवाला भाग दोनों मिलाके दबाके रखना का चाहिए! शेष अंगुलियाँ
हथेली (palm) को दबाके रखना चाहिए! दोनों हथेलीं (palm) को दोनों पैर का घुटनों का उप्पर रखना चाहिए
|
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ब्रह्म मुद्र
|
फेफड़ों में श्वास
भरके रक्त को शुद्धी करना! हृदय के लिए अच्छा है! यह ध्यानमुद्र है!
अंगुष्ट को मोडके
शेष अंगुलियाँ का साथ मिलाके मुट्टी बनाना है! ऐसा दोनों हाथ नाभी का नीचे रख के
दबाके रखना चाहिए!
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भैरव मुद्र
|
मन को निश्चल करेगा! नाड़ियों को बलोपेट करता है! यह ध्यानमुद्र है!
बाए हथेलीं (palm) को दाए हथेलीं (palm) का उप्पर रखना है!
दाए हथेलीं (palm) का उप्पर बाए हथेलीं (palm) रखने से भैरवी मुद्र होगा!
|
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बुद्धि
मुद्र
|
यह ध्यानमुद्र है!
बाए हथेलीं (palm) का उप्पर दाए हथेलीं (palm) रखना है!
दोनों अंगुष्ठों
मिलाके उप्पर की ओररखना है!
|
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ध्यानमुद्र
|
बाए हथेलीं (palm) का उप्पर दाए हथेलीं (palm) रखना है!
दोनों अंगुष्ठों
मिलाके नाभी का नीचे दबाके रखना है!
|
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योनिमुद्र
|
यह ध्यानमुद्र है!
दोनों हथेलीं (palm) एक दूसरे का साथ जैसा दिखाया ऐसा दबाके रखना है!
दोनों अंगुष्ठों का
नाखूनवाला भाग मिलाके नाभी का नीचे दबाके रखना है!
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कुंडलिनी मुद्र है!
यह ध्यानमुद्र है!
दोनों हाथों को
मुट्ठीभर के रखना है! एक दूसरे का नीचे नाभी का नीचे रखना है!
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गरुड मुद्र
श्वास रोगों और पक्षवात का निवारण करता है!
दोनों हथेलीं (palm) खोल के रखना है! दोनों अंगुष्ठों एक दूसरे का साथ पकड के रखना है!
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गोमुख मुद्र यह ध्यानमुद्र है!
पागलपन, हिस्टीरिया (hysteria), आलसीपन, क्रोध, डिप्रेशन (dippression) इत्यदि रोगों में शांति, और प्राणशक्ति में बढ़ाव!
दोनों हथेलीं (palm) एक का उप्पर एक रखना है! दोनों अंगुष्ठों एक दूसरे का साथ पकड के रखना
है!
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कैलास मुद्र
यह ध्यानमुद्र है!
नमस्कार स्थिति में
दोनों हाथो को शिर का उप्पर रखना है!
|
||
.
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खेचरी मुद्र
यह ध्यानमुद्र है!
यह क्रियायोग साधक
के लिए अति मुख्य मुद्र है!
साधना में निद्रा
भूक और प्यास नहीं लगेगा!
जीब को मोड़ के पीछे
ताळु में रखना है!
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कुंभमुद्र यह ध्यानमुद्र है!
दोनों हथेलीं (palm) का अंगुलियाँ एक दूसरे में बाँध के रखना है! दोनों अंगुष्ठों खडा कर
रखना है!
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नागमुद्र यह ध्यानमुद्र है!
दोनों हथेलीं (palm) एक का उप्पर एक रखना है! दोनों अंगुष्ठों कैची (scissors) जैसा रखना है!
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वायन/ वातकारक मुद्र
पेचिश(dysentery), sunstroke, मोटापन(obesity) के लिए अच्छा मुद्र है!
तर्जनी मध्यम और
अंगुष्ठ तीनों का नाखूनवाला भाग दबाके रखना है, शेष अंगुलियाँ खडा करके रखना है!
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पूषुणी मुद्र
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ए सर्वरोग निवारिणी
मुद्र है!
अपान मुद्र वायन
मुद्र और प्राणमुद्र तीनों मिलाके पूषुणी
मुद्र कहते है!
ये तीनों
मुद्राये दस दस मिनट के लिए एक का बाद एक डालने से बहुत फायदा है!
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शांभवी मुद्र, यह ध्यानमुद्र है!
कूटस्थ में मन और
दृष्टि लगा के ध्यान करना है!
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मांडूक मुद्र
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यह ध्यानमुद्र है!
पागलपन, हिस्टीरिया (hysteria), आलसीपन, क्रोध, डिप्रेशन (dippression) इत्यदि रोगों में शांति, और प्राणशक्ति में बढ़ाव!
दोनों हथेलीं (palm)का अंगुलियाँ एक का उप्पर एक रखना है! दोनों अंगुष्ठों एक दूसरे का उप्पर
रखना है!
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भूचरी मुद्र
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यह ध्यानमुद्र है!
एकाग्रता में बढ़ाव, नाक का उप्पर मन और दृष्टि रखना है!
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मूलबंध
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मलद्वार को बाँध व
तनाव डाल के रखना है!
मलबंध (constipation),
बवाशिर(piles), दमा (asthma), श्वास नाली में सूजन (bronchitis), जोड़ों में क्लेश (joint pains) इन व्याधियों में शांति!
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अश्वनी मुद्र
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मलबंध (constipation),
बवाशिर(piles), दमा (asthma), श्वास नाली में सूजन (bronchitis), जोड़ों में क्लेश (joint pains) इन व्याधियों में शांति! प्रसव में शांति!
मलद्वार को बाँधना
व तनाव डाल के रखना और छोडना कम से कम100 दफा करना है!
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