क्रियायोगसाधना--रोगानिवारिणी मुद्राये
सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा
लगाके बैठिए! अनामिका अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए।
शेष अंगुलिया सीधी रखें। कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे है
उस चक्र मे रखिए और उस चक्र पर तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह
करके बैठिए! शरीर को थोडा ढीला रखीए! खेचरी मुद्रा में रहिये!
मूलाधार
में 4 बार, स्वाधिष्ठान में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव में18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए!
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कनिष्ठा तथा अनामिका अंगुलियों के अग्रभाग को अंगुठें के
अग्रभाग से मिलाए। हर दिन प्रातः तथा सायम संध्या समाया में 25 मिनट
करने से
शरीर की दुर्बलता दूर करना, मन की शांति,
आंखों के दोषों को
दूर करना, शरीर की रोगनिरोधक शक्ति बढाना, विटमिनो की कमी को दूर करना, थकान
दूर करना शरीर और आँखों की चमक बढती है।
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अपान मुद्रा: तर्जनी अंगुली को अंगुठें के मूल मे
लगाऐ, मध्यमा
और अनामिका अंगुलियों को अंगुठें के अग्रभाग से मिलाऐ।
हृदय को ताकत
मिलती है, दिल का दौरा
पडते ही तुरंत यह मुद्रा करने से आराम मिलता है, सिरदर्द, दमे के शिकायत को ठीक करना, उच्च रक्तचाप(high blood
pressure)मे फायदा होना।
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लिंगमुद्रा
मुट्ठी बाँधे और अंदर के अंगुठें को खडा रखे, अन्य
अंगुलियों को बंधी हुई रखे।
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सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा
लगाके बैठिए! अनामिका अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए।
शेष अंगुलिया सीधी रखें। कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे
है उस चक्र मे रखिए और उस चक्र पर तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और
मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा ढीला रखीए! खेचरी मुद्रा में रहिये!
मूलाधार
में 4 बार, स्वाधिष्ठान में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव में18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए!
अब
सहस्रार में लिंगामुद्रा में ‘राम् ‘ बीजाक्षर 108 बार उच्चारण कीजिये! ए क्रिया सुबह और शाम खास
करके प्रातः और सायं संध्याकाल दोनों समय में 41 दिन करनेसे
गर्मी बढाना, सर्दी, जुकाम, दमा, खाँसी, सायनस, और निम्न
रक्तचाप (low Blood Pressure)
मे फायदा होना।
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ज्ञान मुद्रा
अंगुठें को तर्जनी अंगुली के सिरे से लगा दे। शेष तीन
अंगुलिया सीधी रखें।
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सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा
लगाके बैठिए! अनामिका अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए।
शेष अंगुलिया सीधी रखें। कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे
है उस चक्र मे रखिए और उस चक्र पर तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और
मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा ढीला रखीए! खेचरी मुद्रा में रहिये!
मूलाधार
में 4 बार, स्वाधिष्ठान में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव में18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए!
अब
आज्ञा पाजिटिव चक्र में तनाव(Tense) डालना है! ज्ञान मुद्रा में ॐ ‘ बीजाक्षर 108
बार उच्चारण कीजिये! ए क्रिया सुबह और शाम
खास करके प्रातः और सायं संध्याकाल दोनों समय में 41 दिन करनेसे
स्मरण शक्ति
वृद्धि, ज्ञान की वृद्धि, पढने मे मन लगना, मस्तिष्क के
स्नायु मजबूत होना,
सिरदर्द दूर होना,
अनिद्रा का नाश,
स्वभाव परिवर्तन,
अभ्यास शक्ति आना,
क्रोध का नाश।
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शून्य मुद्रा
मध्यमा अंगुली को मोडकर अंगुष्ठ के मूल मे लगाए और दबाए। शेष
अंगुलिया सीधी रखें।
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सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा
लगाके बैठिए! अनामिका अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए।
शेष अंगुलिया सीधी रखें। कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे
है उस चक्र मे रखिए और उस चक्र पर तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और
मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा ढीला रखीए! खेचरी मुद्रा में रहिये!
मूलाधार
में 4 बार, स्वाधिष्ठान में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव में18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए! अब विशुद्ध
चक्र में तनाव(Tense)
डालना है! आकाश मुद्रा में ‘हम् ‘ बीजाक्षर 108 बार
उच्चारण कीजिये! ए क्रिया सुबह और शाम खास करके प्रातः और सायं संध्याकाल दोनों
समय में 41 दिन करनेसे शुक्र दोष
जरूर निवारण होगी!
कान नाक और गले के रोगों को दूर
करना (Removes all
types of ENT problems), मसूढे की पकड मजबूत करना और थाँयराईड
रोग मे फायदा होता है।
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वायुमुद्रा
तर्जनी अंगुली
को मोडकर अंगुष्ठ
के मूल मे लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें।
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सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा
लगाके बैठिए! अनामिका अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए।
शेष अंगुलिया सीधी रखें। कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे
है उस चक्र मे रखिए और उस चक्र पर तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और
मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा ढीला रखीए! खेचरी मुद्रा में रहिये!
मूलाधार
में मूलाधार में 4 बार, स्वाधिष्ठान में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव में18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए! अब
अनाहत चक्र में तनाव(Tense)
डालना है! वायु मुद्रा में ‘यम् ‘ बीजाक्षर 108 बार
उच्चारण कीजिये! ए क्रिया सुबह और शाम खास करके प्रातः और सायं संध्याकाल दोनों
समय में 41 दिन करनेसे
वायु शाँति, लकवा, सयटिका, गठिया, संधिवात, घुटने के दर्द
मे फायदा, गर्दन के दर्द
मे फायदा., रीढ के दर्द मे
फायदा, और पार्किसंस
रोग मे फायदा ( Parkinson's disease)
होता है।
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अग्निमुद्रा
अनामिका अंगुली को मोडकर अंगुष्ठ के मूल मे लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी
रखें।
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सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा
लगाके बैठिए! अनामिका अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए।
शेष अंगुलिया सीधी रखें। कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे
है उस चक्र मे रखिए और उस चक्र पर तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और
मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा ढीला रखीए! खेचरी मुद्रा में रहिये!
मूलाधार
में 4 बार, स्वाधिष्ठान में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव में18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए!
अब
मणिपुर चक्र में तनाव(Tense)
डालना है! अग्नि मुद्रा में ‘राम् ‘ बीजाक्षर 108 बार
उच्चारण कीजिये! ए क्रिया सुबह और शाम खास करके प्रातः और सायं संध्याकाल दोनों
समय में 41 दिन करनेसे
शरीर संतुलित होना, वजन घटना, मोटापा कम होना, उष्णता
वृद्धि, कोलोस्ट्रोल मे कमी (control bad Cholesterol), मधुमेह और लिवर रोग मे फायदा (Diabetes and Liver-related problems) , तनाव मे कमी (body tension
)
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पृथ्वीमुद्रा
अनामिका अंगुलि को अंगुष्ठ से लगायें और दबाए। शेष अंगुलिया
सीधी रखें।
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सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा
लगाके बैठिए! अनामिका अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए।
शेष अंगुलिया सीधी रखें। कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे
है उस चक्र मे रखिए और उस चक्र पर तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और
मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा ढीला रखीए! खेचरी मुद्रा में रहिये!
मूलाधार
में 4 बार, स्वाधिष्ठान में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव में18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए! अब
मूलाधार चक्र में तनाव(Tense) डालना है! पृथ्वी मुद्रा में ‘लम् ‘ बीजाक्षर 108 बार
उच्चारण कीजिये! ए क्रिया सुबह और शाम खास करके प्रातः और सायं संध्याकाल दोनों
समय में 41 दिन करनेसे
शरीर मे स्फूर्ति , काँति और तेजस्विता आना, दुर्बल
को मोटा बनाना, वजन बढाना, जीवनी शक्ति वृद्धि,
दिमाग मे शांति और विटमिनो की कमी को दूर करना।
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वरुणमुद्रा
कनिष्ठा अंगुलि को अंगुष्ठ से लगाए और दबाए।
शेष अंगुलिया
सीधी रखें।
|
सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा
लगाके बैठिए! अनामिका अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए।
शेष अंगुलिया सीधी रखें। कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे
है उस चक्र मे रखिए और उस चक्र पर तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और
मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा ढीला रखीए! खेचरी मुद्रा में रहिये!
मूलाधार
में 4 बार, स्वाधिष्ठान में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहता में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव में18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए!
अब
स्वाधिष्ठान चक्र में तनाव(Tense) डालना है! वरुणमुद्रा में ‘वम् ‘ बीजाक्षर 108 बार
उच्चारण कीजिये! ए क्रिया सुबह और शाम खास करके प्रातः और सायं संध्याकाल दोनों
समय में 41 दिन करनेसे रूखेपन की कमी और चिकनायी मे वृध्दि, चर्म
मे मृदुत्व होना, मुँहासों को नष्ट करना और चहरे मे
सुंदरता का बढाना रक्त विकर और जलतत्व की कमी से उत्पन्न रोगों को दूर करने मे
लाभकारी है।
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