बीजाक्षर – विवरणार्थ





बीजाक्षरविवारणार्थ:
वृक्ष का बीज जैसा बीजाक्षर भी मंत्र का बीज जैसा है! वह गाने से साधक को सकारात्मक शक्ति लभ्य होगा! जितना गाने से इतना अधिक सकारात्मक शक्ति लभ्य होगा! और वृक्ष जैसा वृद्धि होगा! बीजमंत्र जो है वे स्पंदनों है! आत्मा का पुकारो है! सृष्टि आरंभ का स्पंदनों बीजाक्षर मंत्र ही है! नौ शब्दों तक बीज मंत्र कहते है! नौ शब्दों से अधिक होने से मंत्र, और बीस शब्दों से अधिक होने से उस को महा मंत्र कहते है!  

असली में सृष्टि आरंभ का प्रथम स्पंदन ‘ॐ’ बीजाक्षर मंत्र ही है! उस ‘ॐ’ बीजाक्षर मंत्र ही क्रमशः योग बीज, तेजोबीज, शांतिबीज, और रक्षा बीज जैसा व्यक्तीकरण हुआ! ‘ऐं’ ‘ह्रीं’ ‘श्रीं’ ‘क्लीं’ ‘क्रीं’ ‘गं’ ‘ग्लौं’ ‘लं’ ‘वं’ ‘रं’ ‘यं’ ‘हं’ और ‘रां’  बीजाक्षरों ‘ॐ’ से ही उत्पन्न हुआ! संगीत में प्रथमाक्षर ‘ॐ’ ही है! वह क्रमशः ‘स’ ‘रि’ ‘ग’ ‘म’ ‘प’ ‘द’ ‘नि’ जैसा रूपांतर हुआ! बंसिरी वादन में निकलनेवाली प्रथम शब्द ‘ॐ’ ही है!
‘ॐ’      
 अकार उकार मकार संयुक्तं ‘ॐ’कार यानी अकार उकार मकार इति तीन शब्दों का सम्मिळित है! सृष्टि (ब्रह्म), स्थिति (विष्णु) और लाय (महेश्वर) तीन मूरतों का प्रतीक है ‘ॐ’कार! अकार ऋग्वेद को, उकार सामवेद को, और मकार यजुर्वेद को प्रतीक है!
क्रीम् अथवा थम्, अथवा क्षम् अथवा लम्:
सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! अब अनामिका अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें। इसप्रकार पृथ्वी मुद्रा में बैठना है! कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन का ध्यान मूलाधार चक्र मे रखिए और उस चक्र मे तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा ढीला रखीए!
यह मा काळी और कुबेर का बीजाक्षर है! इस का उच्चारण मूलाधार चक्र में करना चाहिए! मूलाधार चक्र पृथ्वी तत्व का प्रतीक है!  क्रीम् अथवा थम्, अथवा क्षम् अथवा लम् का उच्चारण से इच्छाशक्ति का वृद्धि होगा! आरोग्य, बल, सभी तरह का सफलता, और नकारात्मक शक्तियों से रक्षण लभ्य होता है!       
 श्रीं अथवा वं:
सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! अब कनिष्ठ अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें। इसप्रकार वरुण मुद्रा में बैठना है! कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन का  ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र मे रखिए और उस चक्र मे तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा ढीला रखीए!
श्रीं अथवा वं महालक्ष्मी का बीजाक्षर है! इस का उच्चारण स्वाधिष्ठान  चक्र में करना चाहिए! स्वाधिष्ठान चक्र वरुण तत्व का प्रतीक है! श्रीं अथवा वं का उच्चारण से क्रियाशक्ति का वृद्धि होगा! आरोग्य, अंगों में बल, सभी तरह का सफलता, गुर्दो(kidneys), और त्वचा (skin)का व्याधियों से उपशमन मिलेगा, और नकारात्मक शक्तियों से रक्षण लभ्य होता है! रोगनिरोधक शक्ति में बढ़ावा मिलेगा! सुंदर और अनुकूलवती भार्या का प्राप्ति, और सुख दांपत्य जीवन लभ्य होगा!       
ह्रौं अथवा दूं अथवा रं:
सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! अब अनामिका अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के मूलभाग से दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें। इसप्रकार अग्नि मुद्रा में बैठना है! कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन का  ध्यान मणिपुर चक्र मे रखिए और उस चक्र मे तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा ढीला रखीए!
ह्रौं अथवा दूं अथवा रं शिवजी का बीजाक्षर है! इस का उच्चारण मणिपुर चक्र में करना चाहिए! मणिपुर चक्र अग्नि तत्व का प्रतीक है! ह्रौं अथवा दूं अथवा रं का उच्चारण से ज्ञानशक्ति का वृद्धि होगा! आत्मनिग्रहशक्ति बढ़ेगी! अकालमरण प्राप्ति नहीं होगा! डयाबिटिस (diabetes) और उदर संबधित व्याधियों से उपशमन मिलेगा! मोक्ष का मार्ग मिलेगा! आरोग्य, अंगों में बल, सभी तरह का सफलता, व्यापार और वृत्ति में वृद्धि मिलेगा! शोक निर्मूलन, और नकारात्मक शक्तियों से रक्षण लभ्य होता है! सुंदर और अनुकूलवती भार्या का प्राप्ति, और सुख दांपत्य जीवन लभ्य होगा!       
ह्रीं अथवा ऐं अथवा यं:
सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! अब तर्जनी अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के मूलभाग से दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें। इसप्रकार वायुमुद्रा में बैठना है! कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन का  ध्यान अनाहत चक्र मे रखिए और उस चक्र मे तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा ढीला रखीए!
ह्रीं अथवा ऐं अथवा यं महामाया यानी भुवनेस्वरी का बीजाक्षर है! इस का उच्चारण अनाहत चक्र में करना चाहिए! अनाहत चक्र वायुतत्व का प्रतीक है! ह्रीं अथवा ऐं अथवा यं का उच्चारण से बीजशक्ति का वृद्धि होगा! प्राणशक्ति नियंत्रण का वृद्धि होगा! वायु संबंधित(gastric disturbances) व्याधियों से उपशमन मिलेगा! अकालमरण प्राप्ति नहीं होगा! मोक्ष का मार्ग सुगम बनेगा! आरोग्य,  सभी तरह का सफलता, व्यापार और वृत्ति में वृद्धि मिलेगा! शोक निर्मूलन, और नकारात्मक शक्तियों से रक्षण लभ्य होता है! सुंदर और अनुकूलवती भार्या का प्राप्ति, सुख दांपत्य जीवन  और सुसंतान लभ्य होगा! नायक का लक्षण यानी समाज (recognition in society) में ख्याति मिलेगा!
गं अथवा फ्रौं अथवा हं:
सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! अब मध्यमा अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के मूलभाग से दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें। इसप्रकार आकाश व शून्य मुद्रा में बैठना है! कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन का  ध्यान विशुद्ध चक्र मे रखिए और उस चक्र मे तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा ढीला रखीए!
गं अथवा फ्रौं अथवा हं गणपति, कुण्डलिनी, और हनुमान का बीजाक्षर है! इस का उच्चारण विशुद्ध चक्र में करना चाहिए! विशुद्ध चक्र आकाश तत्व का प्रतीक है! गं अथवा फ्रौं अथवा हं का उच्चारण से आदिशक्ति का प्राप्ति होगा! रुद्रग्रंथी का विच्छेदन होगा! शुद्ध ज्ञान, रक्षण, ऐश्वर्य, सुख, सौभाग्य, आरोग्य, समस्त हृदय बाधों से उपशमन, और नकारात्मक शक्तियों से रक्षण लभ्य होता है!
दम अथवा ॐ:
सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! तर्जनी अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से दबाए। इसी को ज्ञानमुद्रा कहते है! कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मन का  ध्यान आज्ञा चक्र मे रखिए और उस चक्र मे तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा ढीला रखीए!
दम अथवा ॐ विष्णु का बीजाक्षर है! इस का उच्चारण आज्ञा चक्र में यानी कूटस्थ में करना चाहिए! आज्ञा चक्र कृष्ण चैतन्य का प्रतीक है! दम अथवा ॐ का उच्चारण से पराशक्ति का प्राप्ति होगा!  शुद्ध ज्ञान, रक्षण, ऐश्वर्य, सुख, सौभाग्य, आरोग्य, समस्त हृदय बाधों से उपशमन, और नकारात्मक शक्तियों से रक्षण लभ्य होता है!
क्ष्रौं अथवा राम्:
सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे सहजमुद्रा व ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए!  इसी को ज्ञानमुद्रा कहते है! सहस्रार मे दृष्टि रखे! मन का  ध्यान सहस्रार चक्र मे रखिए और उस चक्र मे तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा ढीला रखीए!
क्ष्रौं अथवा राम् विष्णु का बीजाक्षर है! इस का उच्चारण सहस्रार चक्र में करना चाहिए! सहस्रार चक्र परमात्मा चैतन्य का प्रतीक है! क्ष्रौं अथवा राम् का उच्चारण से विष्णु ग्रंथी का विच्छेदन होगा! साधक स्वयम् ही भगवान बनेगा!  












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