लाहरी महाशय ने दिया 50 उपवायुवो का विवरण


लाहरी महाशय ने दिया 50 उपवायुवो का विवरण
आकाश शब्द का मूल (source) है! वायु स्पर्श और शब्द दोनों का मूल है! अग्नि  शब्द स्पर्श और रूप तीनों का मूल है! जल शब्द स्पर्श रूप और रस यानी रूचि चारों का मूल है! पृथ्वी  शब्द स्पर्श रूप रस और गंध पांचवों तत्वों का का मूल है! शब्द स्पर्श रूप रस और गंध पांचवों स्पंदनों अथवा विविध फ्रीक्वेंसीस (frequencies) है! इन सब का मूल ॐकार ही है! इसी को मुख्य प्राणशक्ति कहते है!   
जिस को सूक्ष्म प्राणशक्ति कहते है वह ही ॐकार है! शरीर में प्रवेश करने का पश्चात यह ही प्राणशक्ति का नाम में व्यवहार किया जाता है! वह ही प्राण, अपान, समान, उदान, आयर व्यान वायुवो का नामो में अपना अपना कामों का अनुसार व्यवहरण किया जाता है! इन पंच प्राणों मुख्य प्राण का साथ जोडके अथवा मिलके 50 वायुवो/मरुतों जैसा व्यवहरण किया जाता है! असली में इन उपवायुवो/मरुतों का हेतु 50 विविध स्पंदनो शरीर में होता है! 
हम इन चक्रों में उस/उन चक्र संबंधित अक्षरों को उच्चारण करने से उन का नकारात्मक स्पंदनो को उपशमन मिलेगा! यह याद करना अत्यंत आवश्यक है!
इन 50 वायुवो/मरुतों ही 50 अक्षरों है! अक्षर = +क्षर (नित्य)
इन अक्षरों ही विविध चक्रों में व्यवहरण होता है!   
प्रथम में याद रखने का विषय: इन विविध प्रकार का अक्षरों को उन संबंधित चक्रों में उच्चारण करने से, उन चक्रों का नकारात्मक क्रियों को मुक्त करसकता है! एक मोबाईल ((mobile cell)) सेल का अंदर का बाटेरी का छार्ज ख़तम होने से रिछार्ज (recharge))नहीं करने से उस मोबाईल (mobile cell) सेल क्रमशः काम करना बंद करेगा! इन अक्षरों को उच्चारण करने का तात्पर्य भी वैसा ही है! लाहिरी महाशय महाराज ने हर एक चक्र का उपवायु का कामकाज(functioning) का बारे में प्रस्ताव किया था!  इन चक्रों सारे में नेगटिव अथवा पाजिटिव नहीं होता है! परंतु सिर्फ आज्ञा चक्र को ही इन नेगटिव अथवा पाजिटिव दोनों होता है! इस आज्ञा चक्र को ‘ह’ और ‘क्ष’ करके दो अक्षर होता है! वास्तव में इन दोनों अक्षरों को एक ही अक्षर में परिगणन करते है! इसी हेतु सारे अक्षर वास्तव में 49 समझना चाहिए! इस आज्ञा नेगटिव और पाजिटिव चक्र, दोनों को एक ही में गिनते है! इस आज्ञा चक्र एक खाली नल जैसा है! इसी हेतु इस कुल आज्ञा चक्र को दोई दळ होते और गिनते भी है! ‘ह’ नाम का आज्ञा नेगटिव चक्र यानी मेडुल्ला(medulla) केंद्र से परमात्मशक्ति/चेतना अन्दर प्रवेश करता है! इसी को सृष्टि का अन्दर का परमात्मा यानी श्रीकृष्णचैतन्य कहते है! ‘क्ष’ नाम का आज्ञा पाजिटिव चक्र यानी कूटस्थ का माध्यम से सहस्रारचक्र पहुंचजायेगा! इस सहस्रार चक्र को परमात्मशक्ति भांडार कहते है! इस सहस्रारचक्र से परमात्मशक्ति बाकी चक्रों में बांटाजाता है! इसी हेतु ॐकार को मुख्य प्राणशक्ति कहते है!  
महेश्वर सूत्रोँ
अइउण् ऋळुक् एओय्  ऐओच्  हयवराट् लण् ङ्यमण्णनम्
जबगाडदस् खपचठदव् कपय्
इन शब्दों का हेतु अच्, हल्, और संयुक्ताक्षर बने है! 
सूक्ष्म प्राणशक्ति में ज्ञान और शक्ति दोनों है! इस का मूल(source)सहस्रार में है! 49 मुख्य उपवायुवों का मूल सूक्ष्म प्राणशक्ति है!
हर एक उपवायु को अपना अपना विशेष विधियों है! आज्ञा चक्र द्वारा विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान और मूलाधार चक्रों में बांटा (distribute) हुआ है! इन चक्रों का माध्यम से नस केन्द्रों(nerve centres) और उन का माध्यम से विविध अवयवों(organs) को बांटा हुआ है!
क्रियायोग साधना में साधक वृधा रीति बाहर जानेवाली प्राणशक्ति को पुनः मेरुदंड का माध्यम से षट् चक्रों द्वारा कूटस्थ में भेजसकेगा! शिरस को एक प्रबल अयस्कांत(powerful magnet) रूप में बदलसकेगा!  प्राणशक्ति को पीनियल(pineal gland) ग्रंथि में, मेडुल्ला अब्लान्गेटा(Medulla oblongata), और बड़ाभेजा  (Cerebrum) में केन्द्रीकरण करसकेगा!
विविध अणुवों मिलके एक कीड़ा (worm), वृक्ष, पक्षी(bird), पशु(animal), और मनुष्य जैसा विविध प्रकार रूपों में व्यक्त होता है! इन सब जीवों और उस जीवो संबंधित अणुवों को अवसर का अनुसार व्यक्त होनेवाली चीज इस प्राणशक्ती ही है! इस प्रकार मनुष्य का अपेक्षा का अनुसार लभ्य होनेवाली प्राण को मुख्य प्राणशक्ति कहते है!  
मुख्यप्राणशक्ति गर्भधारण समय में जीवात्मा का साथ प्रवेश करेगा! उस जीव(living being) का कर्मानुसार रहेगा! जीव का जीवन आयु इस मुख्य प्राणशक्ति का उप्पर आधारित है! इस मुख्य प्राणशक्ति ब्रह्माण्ड (cosmos) से परमात्म चेतना(cosmic consciousness) का रूप में मेडुला (medulla) का (आज्ञा नेगटिव चक्र) माध्यम से भेजा(Cerebrum) में प्रवेश करके आज्ञा पॉजिटिव चक्र द्वारा सहस्रार में प्रवेश करेगा! उधर सारे चाक्रों, चक्रों से अंगों, अंगों से नस(all nerves) नस में बांटा जाएगा!
मुख्य प्राणशक्ति सारे देह में व्याप्ति होगा! परंतु विविध प्रदेशों में विविध प्रकार का काम करते विविध नामो से व्यक्त होता है!
प्राणवायु का रूप में स्फटिकीकरण (Crystallization)के लिए यानी सारे कामों का व्यक्तीकरण के लिए सहायता करेगा!
अपानवायु का रूप में व्यर्थ पदार्थों का विसर्जन (Elimination)के लिए सहायता करेगा!
व्यानवायु का रूप में प्रसारण (Circulation)के लिए सहायता करेगा!
समानवायु का रूप में स्पांजीकरण (Assimilation) के लिए यानी पाचन क्रिया (digestion) के लिए सहायता करेगा! इस का हेतु विविध प्रकार का कणों, अंगों (organs) को आवश्यक प्रोभूजिन (proteins) का वितरण, और मरा हुआ कणों (dead cells) का स्थान में नूतन कणों का सृष्टि करने को सहायता मिलेगा!
केशावृद्धि, त्वचा, मांस इत्यादियो के लिए विविध प्रकार का कणों का आवश्यकता है! इस के लिए अनंत प्रकार का समीकरणों होता रहता है! इस पद्धति का जीवाणुपाक कहते है! उदानवायु का रूप में जीवाणुपाक (Metabolizm) के लिए सहायता करेगा!
प्राण, और अपान ये दोनों मनुष्य का शरीर में दो प्रधान विद्युत् (electricities) है! अपान विद्युत् पहला विद्युत् है! मनुष्य का दोनों आँखों का मध्य में उपस्थित प्रदेश को कूटस्थ कहते है! अपान विद्युत् कूटस्थ से मूलाधारचक्र का नीचे उपस्थित मलद्वार का माध्यम से बाहर जाएगा! अपान विद्युत् चंचल है! मनुष्य इन्द्रियों का वश में रखेगा!
दूसरा प्राण विद्युत् है! यह मूलाधारचक्र से कूटस्थ में जाएगा! यह शांतियुत है! निद्रा, और ध्यान समय में मनुष्य का एकाग्रता को परमात्मा का साथ अनुसंधान करके रखेगा! अपान विद्युत् मनुष्य का एकाग्रता को नीचे खींचके विषयासक्ति में(slave to senses) रूचि कराएगा, और प्राण विद्युत् मनुष्य का एकाग्रता को अंदर यानी अंतर्मुख करके परमात्मा में रूचि कराएगा! क्रियायोग साधना का माध्यम से अंतर्मुख होना सुलभतर है!
मुख्यप्राण कूटस्थ से अवरोहण में मलद्वार का माध्यम से बहिर्गत होनेको, कणों, झिल्ले(membranes), और अंगों का माध्यम से भेजा(cerebrum) को समाचार लेजाने के लिए, और भेजा से समाचार वापस ले आनेको, नाडीयों में, और मानसिक(mental business) व्यापारों के लिए, अधिकाधिक शक्ति खर्च होगा! उस समय अथवा इन कामों के लिए कार्बन डयाक्सैड(CO2) जैसा व्यर्थ अथवा कलुषितो को रक्त में छोड़देगा! उस कलुषित रक्त(impure blood) जल्दी जल्दी शुद्धीकरण करना अत्यंत आवश्यक है नहीं तो भौतिक मरण संभव होगा! उस खर्च हुआ शक्ती को पुनरुद्धारण के लिए श्वासक्रिया का माध्यम से आनेवाली इस मुख्यप्राण अत्यंत आवश्यक है!
मेरुदंड का अन्दर का प्राण, और अपान वायुवो का परस्पर विरुद्ध खिचाव का हेतु श्वास निश्वास प्रक्रिया होता है! प्राणशक्ति उप्पर जाने का समय में प्राणवायुसहित प्राणशक्ति को फेफडो (lungs) में लेजाके कार्बन डयाक्सैड(CO2) को तुरंत मुक्त कराएगा! इसी को श्वासक्रिया कहते है! उदर(stomach) का अंदर का द्रव और घन पदार्थोँ को शुद्धीकरण करने को अधिक समय लगेगा! वैसा शुद्धीकरण हुआ शक्ति को कणों में भेजनेवाला इस प्राणशक्ति ही है! शुद्धीकरण हुआ प्राणशक्ति मेरुदंड का सब चक्रों, कूटस्थ, और बड़ा भेजा (cerebrum) में शक्ति को पुनरुद्धारण करता ही रहेगा और श्वास का शेष शक्ति को रक्त सर्वशरीर में लेजाते रहेगा! पञ्चप्राणों उन का अवसर का अनुसार उपयोग करेगा!
½ स्थूल वायु =  समिष्टि स्थूल व्यान वायु

1/8 स्थूल वायु +1/8 स्थूल आकाश =  स्थूल समिष्टि सामान वायु
1/8 स्थूल वायु +1/8 स्थूल अग्नि =  स्थूल समिष्टि उदान वायु
1/8 स्थूल वायु +1/8 स्थूल जल  =  स्थूल समिष्टि प्राण वायु
1/8 स्थूल वायु +1/8 स्थूल पृथ्वी =  स्थूल समिष्टि अपान वायु

पञ्च प्राण
स्थान
प्राण (विशुद्ध)
गलेमें,
अपान(मूलाधार)
गुदस्थान
व्यान(आनाहत)
(हृदय) सर्वशारीर
उदान
कंठ
सामान (मणिपुर)
नाभि
उपवायु
स्थान
नागा
गलेमें(डकार आनेका हेतु)
कूर्म
पलकों को चलाने हेतु
कृकर
छींक आनेका हेतु
देवदत्त
उबासी हेतु
धनञ्जय
स्थूलशरीर पतनानंतर  10 मिनट तक शारीर को गरम रखने हेतु.




आज्ञा चक्र ---2 अक्षर & क्ष ॐ केंद्र शब्द मुख्य प्राणशक्ति
विशुद्ध चक्र 16 अक्षर , , , , , , , ऋू, अलु, अलू,  , , , , , अं, अः  -- हं केंद्र शब्द उदानवायु  
अनाहत चक्र--  12 अक्षर , , , , , , , , , , , प्राणवायु
मणिपुर चक्र—10 अक्षर, , , ,, , , , , समानवायु
स्वाधिष्ठानचक्र —6 अक्षर , , , , , व्यानवायु
मूलाधार चक्र—4 अक्षर , , , अपानवायु
आज्ञाचक्र में मुख्य प्राणशक्ति जैसा व्यक्तीकरण करेगा! इसी कारण हिन्दुस्तान में अक्षराभ्यास का समय में अक्षर को विद्यारंभ में बच्चों से  लिखवाते है!  
इन 50 वायु  50 स्पंदन का हेतु है! विशुद्ध चक्र का केंद्र संयुक्त अक्षर हं है! आज्ञाचक्र  और विशुद्ध चक्रों का केंद्र अक्षरों अथवा वायु अथवा स्पंदनों सर्व स्वतंत्र है! अनाहत (केंद्र संयुक्त अक्षर यं’), मणिपुर (रं), स्वाधिष्ठानचक्र (वं), और मूलाधार चक्र (लं) अक्षरों अथवा वायु अथवा स्पंदनों सर्व स्वतंत्र नहीं है! एक दूसरा का उप्पर आधार है!
मूलाधारचक्र, स्वाधिष्ठानचक्र, और मणिपुरचक्रोंब्रह्म ग्रंथी प्रांत है!
मणिपुरचक्र,अनाहत,और विशुद्धचक्र रूद्रग्रंथी प्रांत है!
विशुद्ध, आज्ञा, और सहस्रार चक्र-- विष्णुग्रंथी प्रांत है!
ब्रह्मग्रंथी, और रूद्रग्रंथी विच्छेदन होने से ही मुक्ति का अथवा परमात्मा का अनुसंधान मार्ग सुगम होगा! कुण्डलिनी जागृति होके विशुद्ध चक्र का स्पृशन(reach) होने से ही नीचे चक्रों का दिशा का खिंचाई से छुटकारा मिलेगा! इसी हेतु कुण्डलिनी अनाहतचक्र पार होने तक साधक जागरूकता से रहना और तीव्रध्यान करना आवश्यक है!  अपना ध्यान साधना में कोई भी रुकावट नहीं होना चाहिए! 
परमपूजनीय परमहंस श्री श्री योगानंद स्वामीजी का करचरणकृत श्रीमद्भगवद्गीता में योगीराज श्री श्री लाहिरी महाशय प्रसादित चक्रों का चित्रों में इन मरुतों का बारे में प्रास्तावन (referred) किया था! इस चित्र में लिपि बंगाली भाषा में है! उन को यथा तथा मैंने नीचे दिया हु! अगर इन में कुछ दोष होने से मुझे क्षमा कीजियेगा क्योंकि वों मेरा अवगाहन में कमी का ही हेतु है!
मरुतों प्रधान में साथ है, वे
1) आवह, 2) प्रवाह, 3) विवह, 4) परावह, 5)उद्वाह, 6)संवह और 7) परिवाह(मरीचि)  
49 उपवायुवों को ऐसा उप्पर दिया हुआ साथ प्रधान मरुतों में विभाजित किया है!
ये मरुतों मनुष्य का शारीर का अंदर और बाहर ब्रह्माण्ड(cosmos) में भी है! इसीलिए शारीर का  और  ब्रह्माण्ड का संबंध होता है! ऐसा ही मन और शारीर का भी संबंध होता है!  
ब्रह्मपदार्थ ही ऐसा 49 उपवायुवों का रूप में व्यक्त होगया! इस ज्ञान का कमी का हेतु ही वर्त्तमान अस्तव्यस्त और आयोमय स्थिति है! ए ज्ञान लभ्य होने से कोई भी व्याकुलता नहीं होगा !
                        
हर चक्र में विविध अक्षरों होते है! हर चक्रों में जो अक्षरों होते है ए सारे अक्षरों सहस्रार चक्र में होते है यानी सब अक्षरों का मूलस्थान(source) सहस्रारचक्र है!
इन चक्रों का संबंधित अक्षरों और वायु नीचे दिया है!
1)   प्रवह श्वासिनी टाना महाबल,
2)   परिवह विहग उड्डीयान ऋतवाह
3)   परिवह सप्तस्वर शब्दस्थिति
4)   परिवह प्राण निमीळन बहिर्गमन त्रिशक्र
5)   परावह मातरिश्वा अणु सत्यजित
6)   परावह जगत् प्राण ब्रह्मऋत
7)   परावह पवमानक्रियार् परावस्थ ऋतजित्
8)   परावह नवप्राण प्राणरूपो चित्वहित् धाता
9)   परावह हमि मोक्ष अस्तिमित्र
10)              परावह सारङ नित्यपतिवास
11)              परावह स्तंभन सर्वव्यापिमित
12)              प्रवह श्वसनश्वास प्रश्वासादि ईंद्र
13)              प्रवह सदागति गमनादौगति
14)              प्रवह प्रवदश्यस्पर्शशक्तिअद्रुश्यगति
15)              प्रवह गंधवाह अनुष्ण अशीत ईदृक्ष
16)              प्रवह वाह चलन वृतिन
17)              प्रवह वेगिकंतभोगकाम
18)              उद्वह व्या न जृंभण आकुंचन प्रसारण द्विशक्र
19)              आवह गंधवह गंधेर् अणुके आने त्रिशक्र
20)              आवह अशुग शैघ्रं अदृक्ष
21)              आवह मारुत भित्तरेर् वायु अपात्
22)              आवह पवन पवन अपराजित
23)              आवह फणिप्रिय ऊर्ध्वगति धृव
24)              आवह निश्वासक त्वगिन्द्रिय व्यापि युतिर्ग
25)              आवह उदान उद्गीरण सकृत्
26)              परिवह अनिल् अनुष्ण अशीत अक्षय
27)              परिवह समिरण पश्चिमेर् वायु सुसेन
28)              परिवह अनुष्ण शीतस्पर्श पसदीक्ष
29)              परिवह सुखास सुखदा देवदेव
30)              विवह वातव्यक् संभव
31)              विवह प्रणति धारणा अनमित्र
32)              विवह प्रकंपन कंपन भीम
33)              विवह समान पोषण एकज्योति
34)              उद्वह मरुत उत्तरदिगेर् वायुसेनाजित्
35)              उद्वह नाभस्थान अपंकज अभियुक्त
36)              उद्वह धुनिध्वज अदिमित
37)              उद्वह कंपना सेचना दर्ता
38)              उद्वह वासदेहव्यापि विधारण
39)              उद्वह  मृगवाहन विद्युत् वरण्
40)               संवह चंचल उत्क्षेपण द्विज्योति
41)              संवह पृषतांपति बलंमहाबल
42)              संवह अपान क्षुधाकर अधोगमन एकशक्र
43)              विवह स्पर्शन स्पर्श विराट्
44)              विवह वात तिर्यक् गमन पुराणह्य
45)              विवह प्रभंजन मन पृथक् सुमित
46)              संवह अजगत् प्राण जन्म मरण अदृश्य
47)              संवह आवक् फेला पुरिमित्र
48)              संवह समिर प्रातःकालेर्  वायुसङमित
   49) संवह प्रकंपन गंधेर अणुके आने मितासन
इन छे चक्रों का सारे अक्षरों मिलके सहस्रार में होंगे! उन चक्र संबंधित अक्षरों, वायुवो का कामकाज (functions) इस नीचे दिया है! इन का अर्थ यानी तात्पर्य नीचे देने का प्रयत्न किया हु! ये मेरा प्रयत्न को आशीर्वाद दीजिएगा!   
49 उपवायुवों को ऐसा उप्पर दिया हुआ साथ प्रधान मरुतों में विभाजित किया है!  
विभाजन 
अ)
1) प्रवह श्वासिनी टाना महाबल,
12) प्रवह श्वसनश्वास प्रश्वासादि ईंद्र
13)प्रवह सदागति गमनादौगति
14) प्रवह पृवदश्यस्पर्शशक्तिअद्रुश्यगति
15)प्रवह गंधवाह अनुष्ण अशीत ईदृक्ष
16) प्रवह वाह चलन वृतिन
17) प्रवह वेगिकंतभोगकाम
आ)
2) परिवह विहग उड्डीयान ऋतवाह
3) परिवह सप्तस्वर शब्दस्थिति
4)परिवह प्राण निमीळन बहिर्गमन त्रिशक्र
26) परिवह अनिल् अनुष्ण अशीत अक्षय
27) परिवह समिरणपश्चिमेर् वायु सुसेन
28) परिवह अनुष्ण शीतस्पर्श पसदीक्ष
29)परिवह सुखास सुखदा देवदेव
इ)
5) परावह मातरिश्वा अणु सत्यजित
6) परावह जगत् प्राण ब्रह्मऋत
7) परावह पवमानक्रियार् परावस्थ ऋतजित्
8) परावह नवप्राण प्राणरूपो चित्वहित् धाता
9) परावह हमि मोक्ष अस्तिमित्र
10)परावह सारङ नित्यपतिवास
11) परावह स्तंभन सर्वव्यापिमित
ई)
18) उद्वह व्या न जृंभण आकुंचन प्रसारण द्विशक्र
34) उद्वह मरुत उत्तरदिगेर् वायुसेनाजित्
35) उद्वह नभस्थान अपंकज अभियुक्त
36) उद्वह धुनिध्वज अदिमित
37) उद्वह कंपना सेचना दर्ता
38) उद्वह वासदेहव्यापि विधारण
39) उद्वह  मृगवाहन विद्युत् वरण्
उ)
19)आवह गंधवह गंधेर् अणुके आने त्रिशक्र
20)आवह अशुग शैघ्रं अदृक्ष
21) आवह मारुत भित्तरेर् वायु अपात्
22) आवह पवन पवन अपराजित
23)आवह फणिप्रिय ऊर्ध्वगति धृव
24) आवह निश्वासक त्वगिन्द्रिय व्यापि युतिर्ग
25)आवह उदान उद्गीरण सकृत्
ऊ)
30) विवह वातिव्यक् संभव
31) विवह प्रणति धारणा अनमित्र
32) विवह प्रकंपन  कंपन भीम
33)  विवह समान पोषण एकज्योति
43)  विवह स्पर्शन स्पर्श विराट्
44)  विवह वात तिर्यक् गमन पुराणह्य
45)   विवह प्रभंजन मन पृथक् सुमित
ऋ)   
40) संवह चंचल उत्क्षेपण द्विज्योति
41)संवह पृषतांपति बलंमहाबल
42)संवह अपान क्षुधाकर अधोगमन एकशक्र
46)संवह अजगत् प्राण जन्म मरण अदृश्य
47) संवह आवक् फेला पुरिमित्र
48) संवह समिर प्रातःकालेर्  वायुसङमित
49) संवह प्रकंपन गंधेर अणुके आने मितासन
इन चक्रों का संबंधित अक्षरों और वायु नीचे दिया है!
A) आज्ञा (सूक्ष्म प्राणशक्ति) 
आज्ञा चक्र (प्रवाह प्राण) श्रीकृष्णतत्व अथवा सृष्टि का अंदर परमात्मा का प्रतीक है! इस का पुत्रिका विशुद्ध चक्र है! विशुद्धचक्र आकाशतत्व(परिवह प्राण) को यानी शब्द का प्रतीक है! विशुद्धचक्र का पुत्रिका अनाहतचक्र है! अनाहतचक्र वायुतत्व का यानी स्पर्श (आवह प्राण) का प्रतीक है! अनाहतचक्र का पुत्रिका मणिपुरचक्र है! मणिपुरचक्र अग्नितत्व का यानी रूप (उद्वह प्राण) का प्रतीक है! है! मणिपुरचक्र का पुत्रिका स्वाधिष्ठानचक्र है! स्वाधिष्ठानचक्र जलतत्व का यानी रस(रूचि) (विवह प्राण) का प्रतीक है! स्वाधिष्ठानचक्र का पुत्रिका मूलाधारचक्र है! मूलाधारचक्र पृथ्वीतत्व का यानी गंध (संवह प्राण) का प्रतीक है!
1) प्रवह श्वासिनी टाना महाबल (ॐ) : ॐ अक्षर ही सूक्ष्म प्राणशक्ति जो सर्व प्राणशक्तियों का मूलहेतु है! इसी को प्रवह श्वासिनी कहते है!
इस आज्ञाचक्र केंद्र को स्पंदन करने अक्षर ॐ है! इस आज्ञाचक्र को दो दळ है! इसी दो अक्षर ह & क्ष को जोर से उच्चारण करने से उस को दोनों दिशा में स्पंदन करासकता है! इस का वजह से विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मूलाधारचक्र, इन सब को मुख्य प्राणशक्ति मिलजाएगा!     
B) विशुद्धचक्र (परिवह प्राण): विशुद्धचक्र उदानवायु का है! केशावृद्धि, त्वचा, मांस इत्यादियो के लिए विविध प्रकार का कणों का आवश्यकता है! इस के लिए अनंत प्रकार का समीकरणों होता रहता है! इस पद्धति का जीवाणुपाक कहते है! उदानवायु का रूप में जीवाणुपाक (Metabolism) के लिए सहायता करेगा! 
आज्ञा चक्र (प्रवाह प्राण) श्रीकृष्णतत्व अथवा सृष्टि का अंदर परमात्मा का प्रतीक है! इस का पुत्रिका विशुद्ध चक्र है! विशुद्धचक्र आकाशतत्व(परिवह प्राण) को यानी शब्द का प्रतीक है! विशुद्धचक्र का पुत्रिका अनाहतचक्र है! अनाहतचक्र वायुतत्व का यानी स्पर्श (आवह प्राण) का प्रतीक है! अनाहतचक्र का पुत्रिका मणिपुरचक्र है! मणिपुरचक्र अग्नितत्व का यानी रूप (उद्वह प्राण) का प्रतीक है! है! मणिपुरचक्र का पुत्रिका स्वाधिष्ठानचक्र है! स्वाधिष्ठानचक्र जलतत्व का यानी रस(रूचि) (विवह प्राण) का प्रतीक है! स्वाधिष्ठानचक्र का पुत्रिका मूलाधार चक्र है! मूलाधारचक्र पृथ्वीतत्व का यानी गंध (संवह प्राण) का प्रतीक है!
‘हं’ संयुक्ताक्षर विशुद्धचक्र केंद्र को स्पंदित करेगा! इस विशुद्धचक्र का स्पंदनों उदानवायु का स्पंदनों है! इसी को(परिवह प्राण) यानी उदानवायु मार्ग कहते है!
स्थूलदेहा पतानानंतर, सूक्ष्म कारण और कर्मो को वायुमंडल में उड़नेवाले पक्षी जैसा लेजानेवाला वायु उदानवायु ही है! परिवह प्राण और प्रवाह श्वासिनी दोनों परस्पर प्रभावित (interact) होगा! कंप्यूटर में सी पि यु  (CPU) में सारे विद्युतो प्रवेश करके तत पश्चात अपना अपना कार्यक्रमों (programmes) करने रीति सारे प्राणों यानी प्राण, अपान, व्यान, समान, और उदान, सब वायुवो प्रवाह श्वासिनी का साथ यानी मुख्य प्राणशक्ति का साथ परस्पर प्रभावित (interact) होगा!
विशुद्धचक्र को 16 दळ है! वे है--अ, , , , , , ऋू, अलु, अलू, , ,  , , अं, अः! इन 16 दळ ही 16 अक्षरों है!  इन 16 अक्षरों  को जोर से 16 बार केंद्र संयुक्ताक्षर हंका साथ उच्चारण करने से केंद्र और 16 दिशामे स्पंदित करासकता है! इस का हेतु मुख्य प्राणशक्ति बाकी अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, और मूलाधारचक्रों को मिलेगा! कुण्डलिनी जागृति होजायेगा! आरोग्य भी सुगम होगा, और परमात्मा का साथ अनुसंधान सुलभतर होजायेगा!     
2)परिवह विहग उड्डीयान ऋतवाह (अ):= विशुद्धचक्र का चारों ओर उदानवायु का स्पंदनों 16 प्रकार का होता है! कभी कभी अपने आप, और कुछ समयों में इतर वायुवो का साथ मिलके स्पंदन करता है! परिवह का अर्थ मार्ग अथवा स्पंदन है! परिवह  प्राण का अर्थ उदानवायु है! परंतु इन 16 प्रकार का उदानवायु का स्पंदनों भी उस प्रवाह श्वासिनी का साथ यानी मुख्य प्राणशक्ति का साथ प्रभावित (interact) होंगे! इधर अक्षर का उच्चारण उड़ने पक्षी जैसा परमात्मा का साथ अनुसंधान होने का मार्ग दिखानेवाली स्पंदन है!
3)परिवह सप्तस्वर शब्दस्थिति(आ) = इधर (आ) अक्षर का उच्चारण सप्तस्वर का साथ रचना किया हुआ संगीत जैसा उदानवायु का शब्दस्थिति स्पंदन है!
4)परिवह प्राण निमीळन बहिर्गमन त्रिशक्र(इ): इधर (इ) अक्षर का उच्चारण बाहर की ओर जानेवाली त्रिगुणात्मक मन को नियत्रित करसकनेवाली उदानवायु का स्पंदन है! 
5)परावह मातरिश्वा अणु सत्यजित(ई): = इधर (ई) अक्षर का उच्चारण क्रमशः सत्यको जितसकनेवाली उदानवायु का स्पंदन है!
6)परावह जगत् प्राण ब्रह्मऋत(उ): इधर (उ) अक्षर का उच्चारण क्रमशः ब्रह्मा को लभ्य करानेवाली उदानवायु का स्पंदन है!
7)परावह पवमानक्रियार् परावस्थ ऋतजित्(ऊ):= इधर (ऊ) अक्षर का उच्चारण  क्रियापरावस्था को लभ्य करानेवाली उदानवायु का स्पंदन है!
8)परावह नवप्राण प्राणरूपो चित्वहित् धाता(ऋ): इधर (ऋ) अक्षर का उच्चारण  नवप्राणों का प्राण यानी परब्रह्मण की दिशा में मार्ग टर्न(turn) करानेवाली दानवायु का स्पंदन है!
9)परावह हमि मोक्ष अस्तिमित्र(ऋू): इधर(ऋू) अक्षर का उच्चारण साधक को मोक्ष मार्ग का तरफ टर्न(turn) करानेवाली उदानवायु का स्पंदन है!  
10)परावह सारङ नित्यपतिवास(अलु) =इधर (अलु) अक्षर का उच्चारण साधक को शिवाजी को भी वश करसकनेवाली उदानवायु का स्पंदन है!
11) परावह स्तंभन सर्वव्यापिमित (अलू): इधर (अलू) अक्षर का उच्चारण साधक को सर्वव्याप्ति दिलासकनेवाली उदानवायु का स्पंदन है!
12)प्रवह श्वसनश्वास प्रश्वासादि ईंद्र(ए): इधर (ए) अक्षर का उच्चारण श्वास और निश्वासों को वश होनेवाली यानी मन को चंचल की ओर लेनेवाली उदानवायु का स्पंदन है! इधर उदानवायु  प्रवाह प्राण यानी मुख्य प्राणशक्ति का साथ interact  होता है!  
13)प्रवह सदागति गमनादौगति(ऐ): इधर (ऐ) अक्षर का उच्चारण सदागति का तरफ लेजानेवाली उदानवायु का स्पंदन है!
14)प्रवह प्रवदश्यस्पर्शशक्तिअद्रुश्यगति (ओ): इधर (ओ) अक्षर का उच्चारण परमात्मा को स्पृशन् करासकनेवाली उदानवायु का स्पंदन है!
15)प्रवह गंधवाह अनुष्ण अशीत ईदृक्ष (औ): इधर (औ) अक्षर का उच्चारण शीतोष्णस्थितिरहित भावना करासकनेवाली उदानवायु का स्पंदन है!
16)प्रवह वाह चलनवृतिन(अं): इधर (अं) अक्षर का उच्चारण मनोनिश्चलत भावना करासकनेवाली उदानवायु का स्पंदन है!
17)प्रवह वेगिकंतभोगकाम(अः) = इधर (अः) अक्षर का उच्चारण शुभेच्छ भावना करासकनेवाली उदानवायु का स्पंदन है!
C) आनाहत:
आनाहत चक्र प्राणवायु का है! प्राणवायु का रूप में स्फटिकीकरण (Crystallization)के लिए यानी सारे कामों का व्यक्तीकरण के लिए सहायता करेगा!
आज्ञा चक्र (प्रवाह प्राण) श्रीकृष्णतत्व अथवा सृष्टि का अन्दर परमात्मा का प्रतीक है! इस का पुत्रिका विशुद्ध चक्र है! विशुद्धचक्र आकाशतत्व (परिवह प्राण) को यानी शब्द का प्रतीक है! विशुद्धचक्र का पुत्रिका अनाहतचक्र है! अनाहतचक्र वायुतत्व का यानी स्पर्श (आवह प्राण) का प्रतीक है! अनाहतचक्र का पुत्रिका मणिपुरचक्र है! मणिपुरचक्र अग्नितत्व का यानी रूप (उद्वह प्राण) का प्रतीक है! है! मणिपुरचक्र का पुत्रिका स्वाधिष्ठानचक्र है! स्वाधिष्ठानचक्र जलतत्व का यानी रस(रूचि) (विवह प्राण) का प्रतीक है! स्वाधिष्ठानचक्र का पुत्रिका मूलाधारचक्र है! मूलाधारचक्र पृथ्वीतत्व का यानी गंध (संवह प्राण) का प्रतीक है!
‘यं’ संयुक्ताक्षर अनाहतचक्र केंद्र को स्पंदित करेगा! इस अनाहतचक्र का स्पंदनों प्राणवायु का स्पंदनों है! इसी को(आवह प्राण) यानी प्राणवायु मार्ग कहते है!   
अनाहतचक्र का चारों ओर प्राणवायु का स्पंदनों 12 प्रकार का होता है! कभी कभी अपने आप और कुछ समयों में दूसरा वायुवो का साथ इस प्राणवायु मिलके स्पंदन करेगा! इन 12 प्रकार का प्राणवायु का स्पंदनों भी उस प्रवाह श्वासिनी का साथ यानी मुख्या प्राणशक्ति का साथ interact होंगे!   
अनाहतचक्र को 12 दळ है! वे है, , , , , , , , , , , ठ! इन 12 दळ ही 12 अक्षरों है!  इन 12 अक्षरों  को जोर से 12 बार केंद्र संयुक्ताक्षर यंका साथ उच्चारण करने से केंद्र और 12 दिशामे स्पंदित करासकता है! इस का हेतु मुख्य प्राणशक्ति बाकी  मणिपुर, स्वाधिष्ठान, और मूलाधारचक्रों को मिलेगा! कुण्डलिनी जागृति होजायेगा! आरोग्य भी सुगम होगा, और परमात्मा का साथ अनुसंधान सुलभतर होजायेगा!  
18) उद्वह व्यान जृंभण आकुंचन प्रसारण द्विशक्र ():  उद्वह का अर्थ पुत्रिका है! जो कम हुआ वायु को बढ़ाके चिकुडा हुआ हृदय स्पंदन पुनः ठीक करने का स्पंदन इधर का() अक्षर का उच्चारण है! समान और प्राणवायुवो का मिश्रित(mixed) स्पंदना यहा का स्पंदना है!
19) आवह गंधवह गंधेर् अणुके आने त्रिशक्र (ख) = इधर(ख) अक्षर का उच्चारण गंध अणुवों को लानेवाली प्राणवायु का हृदय का स्पंदना है!
20) आवह अशुग शैघ्रं अदृक्ष (ग)= इधर (ग) अक्षर का उच्चारण अमितगति में होनेवाली प्राणवायु का स्पंदना है!  
21) आवह मारुत भित्तरेर् वायु अपात् (घ)= इधर (घ) अक्षर का उच्चारण अन्दर अन्दर अमित प्रकंपनों को उत्पन्न करनेवाली प्राणवायु का अद्भुत स्पंदना है!
22)आवह पवन पवन अपराजित (ङ)= इधर (ङ) अक्षर का उच्चारण  अमित शीघ्रगति प्राणवायु का अद्भुत स्पंदना है!
23) आवह फणिप्रिय ऊर्ध्वगति धृव(च) = इधर (च) अक्षर का उच्चारण आरोही सर्प का फणि जैसा प्राणवायु का स्पंदना है!
24) आवह निश्वासक त्वगिन्द्रिय व्यापि युतिर्ग (छ) = इधर (छ) अक्षर का उच्चारण त्वचा को उत्तेजित करनेवाली प्राणवायु का स्पंदना है!
25) आवह उदान उद्गीरण सकृत् (ज) = इधर (ज) अक्षर का उच्चारण डकार लानेवाला (belchings)  प्राणवायु और उदानवायुवो का मिश्रम स्पंदना है!
26)परिवह अनिल् अनुष्ण अशीत अक्षय (झ)= इधर (झ) अक्षर का उच्चारण शीतलरहित और उष्णरहित प्राणवायु और उदानवायुवो का मिश्रम स्पंदना है!  
27) परिवह समिरण पश्चिमेर् वायु सुसेन(ञ) = इधर ) अक्षर का उच्चारण पश्चिम दिशा का तरफ जानेवाला प्राणवायु और उदानवायुवो का मिश्रम स्पंदना है!
28)परिवह अनुष्ण शीतस्पर्श पसदीक्ष (ट) = इधर (ट) अक्षर का उच्चारण उष्णरहित शीतालास्पर्श सामर्थ्ययुत प्राणवायु और उदानवायुवो का मिश्रम स्पंदना है!
29) परिवह सुखास सुखदा देवदेव (ठ) = इधर (ठ) अक्षर का उच्चारण आनंद लानेवाला प्राणवायु और उदान वायुवो का मिश्रम स्पंदना है! 
D) मणिपुर: मणिपुरचक्र समानवायु का स्थान है! समानवायु का रूप में स्पांजीकरण (Assimilation)के लिए यानी पाचन क्रिया (digestion) के लिए सहायता करेगा! इस का हेतु विविध प्रकार का कणों, अंगों (organs)को आवश्यक प्रोभूजिन (proteins) का वितरण, और मरा हुआ कणों का स्थान में नूतन कणों का सृष्टि करने को सहायता मिलेगा!
आज्ञा चक्र (प्रवाह प्राण) श्रीकृष्णतत्व अथवा सृष्टि का अन्दर परमात्मा का प्रतीक है! इस का पुत्रिका विशुद्ध चक्र है! विशुद्धचक्र आकाशतत्व(परिवह प्राण) को यानी शब्द का प्रतीक है! विशुद्धचक्र का पुत्रिका अनाहतचक्र है! अनाहतचक्र वायुतत्व का यानी स्पर्श (आवह प्राण) का प्रतीक है! अनाहतचक्र का पुत्रिका मणिपुरचक्र है! मणिपुरचक्र अग्नितत्व का यानी रूप (उद्वह प्राण) का प्रतीक है! है! मणिपुरचक्र का पुत्रिका स्वाधिष्ठानचक्र है! स्वाधिष्ठानचक्र जलतत्व का यानी रस(रूचि) (विवह प्राण) का प्रतीक है! स्वाधिष्ठानचक्र का पुत्रिका मूलाधारचक्र है! मूलाधारचक्र पृथ्वीतत्व का यानी गंध (संवह प्राण) का प्रतीक है!
रं संयुक्ताक्षर मणिपुरचक्र केंद्र को स्पंदित करेगा! इस मणिपुरचक्र का स्पंदनों समानवायु का स्पंदनों है! इसी को(उद्वह प्राण) यानी समानवायु मार्ग कहते है!
मणिपुरचक्र का चारों ओर समानवायु का स्पंदनों का स्पंदनों 10 प्रकार का होंगे! कभी कभी अपने आप और कुछ समयों में दूसरा वायुवो का साथ इस समानवायु मिलके स्पंदन करेगा! इन 10 प्रकार का समानवायु का स्पंदनों भी उस प्रवाह श्वासिनी का साथ यानी मुख्य प्राणशक्ति का साथ interact होंगे!
मणिपुरचक्र को 10 दळ है! वे है,,,,,,,,,फ इन 10 दळ ही 10 अक्षरों है!  इन 10 अक्षरों  को जोर से 10 बार केंद्र संयुक्ताक्षर रंका साथ उच्चारण करने से केंद्र और 10 दिशामे स्पन्दित करासकता है! इस का हेतु मुख्य प्राणशक्ति बाकी  स्वाधिष्ठान, और मूलाधारचक्रों को मिलेगा! कुण्डलिनी जागृति होजायेगा! आरोग्य भी सुगम होगा, और परमात्मा का साथ अनुसंधान सुलभतर होजायेगा!     
30)विवह वातिव्यक् संभव (ड)= इधर (ड) अक्षर का उच्चारण स्पष्टरीती में रूचि हेतु व्यानवायु स्पंदना है! 

31)विवह प्रणति धारणा अनमित्र(ढ) = इधर(ढ)अक्षर का उच्चारण धारण लभ्य करनेवाला व्यानवायु स्पंदना है!
32)विवह प्रकंपन कंपन भीम(ण)= इधर(ण)अक्षर का उच्चारण भयंकर स्पंदनों करनेवाला व्यानवायु स्पंदना है!
33)विवह समान पोषण एकज्योति(त) = इधर(त)अक्षर का उच्चारण पोषक पदार्थो का पाचनशक्ति के हेतु समान और व्यानवायुवो का मिश्रम स्पंदना है!
34)उद्वह मरुत उत्तरदिगेर् वायुसेनाजित्(थ) = इधर(थ)अक्षर का उच्चारण उत्तरदिशा का तरफ जानेवाली समानवायु स्पंदना है!
35)उद्वह नभस्थान अपंकज अभियुक्त (द)= इधर (द) अक्षर का उच्चारण नाभिप्रदेश का समानवायु स्पंदना है!
36)उद्वह धुनिध्वज अदिमित(ध)= इधर (ध) अक्षर का उच्चारण शब्द उत्पादित करनेवाली समानवायु स्पंदना है! 
37)उद्वह कंपना सेचना दर्ता (न)= इधर (न) अक्षर का उच्चारण आर्द्रत उत्पादित करनेवाली समानवायु स्पंदना है!
38)उद्वह वासदेहव्यापि विधारण(प)= इधर (प) अक्षर का उच्चारण सारा शरीर व्याप्ति होनेवाली समानवायु स्पंदना है! 
39)उद्वह मृगवाहन विद्युत् वरण्(फ)= इधर (फ) अक्षर का उच्चारण विद्युत् उत्पादित समानवायु स्पंदना है!
E) स्वाधिष्ठान: व्यानवायु का स्थान स्वाधिष्ठानचक्र है! व्यानवायु का रूप में प्रसारण (Circulation) के लिए सहायता करेगा!
आज्ञा चक्र (प्रवाह प्राण) श्रीकृष्णतत्व अथवा सृष्टि का अन्दर परमात्मा का प्रतीक है! इस का पुत्रिका विशुद्ध चक्र है! विशुद्धचक्र आकाशतत्व(परिवह प्राण) को यानी शब्द का प्रतीक है! विशुद्धचक्र का पुत्रिका अनाहतचक्र है! अनाहतचक्र वायुतत्व का यानी स्पर्श (आवह प्राण) का प्रतीक है! अनाहतचक्र का पुत्रिका मणिपुरचक्र है! मणिपुरचक्र अग्नितत्व का यानी रूप (उद्वह प्राण) का प्रतीक है! है! मणिपुरचक्र का पुत्रिका स्वाधिष्ठानचक्र है! स्वाधिष्ठानचक्र जलतत्व का यानी रस(रूचि) (विवह प्राण) का प्रतीक है! स्वाधिष्ठानचक्र का पुत्रिका मूलाधारचक्र है! मूलाधारचक्र पृथ्वीतत्व का यानी गंध (संवह प्राण) का प्रतीक है! 
वं संयुक्ताक्षर स्वाधिष्ठानचक्र केंद्र को स्पंदित करेगा! इस स्वाधिष्ठानचक्र का स्पंदनों व्यानवायु का स्पंदनों है! इसी को(विवाह प्राण) यानी व्यानवायु मार्ग कहते है!
स्वाधिष्ठानचक्र का चारों ओर व्यानवायु का स्पंदनों का स्पंदनों  6 प्रकार का होंगे! कभी कभी अपने आप और कुछ समयों में दूसरा वायुवो का साथ इस व्यानवायु मिलके स्पंदन करेगा! इन  6 प्रकार का व्यानवायु का स्पंदनों भी उस प्रवह श्वासिनी का साथ यानी मुख्य प्राणशक्ति का साथ interact होंगे!
स्वाधिष्ठानचक्र को 6 दळ है! वे है, , ,, , ल! इन 6 दळ ही 6 अक्षरों है!  इन 6 अक्षरों  को जोर से 6 बार केंद्र संयुक्ताक्षर वंका साथ उच्चारण करने से केंद्र और 6 दिशा मे स्पंदित करासकता है! इस का हेतु मुख्य प्राणशक्ति बाकी  मूलाधारचक्र को मिलेगा! कुण्डलिनी जागृति होजायेगा! आरोग्य भी सुगम होगा, और परमात्मा का साथ अनुसंधान सुलभतर होजायेगा! 
 40)संवह चंचल उत्क्षेपण द्विज्योति(ब)=इधर (ब) अक्षर का उच्चारण अधिकतर चंचल अपानवायु का स्पंदना है! 
41) संवह पृषतांपति बलंमहाबल(भ)= इधर (भ) अक्षर का उच्चारण बलायुत यानी अधिकतर नमी मिलाहुआ व्यान और अपानवायु का मिश्रम स्पंदना है!

42)संवह अपान क्षुधाकर अधोगमन एकशक्र(म)= इधर (म) अक्षर का उच्चारण   भूखा मन को स्थूलजगत यानी माया की तरफ खींचनेवाली व्यान और अपानवायु का मिश्रम स्पंदना है! 
43) विवह स्पर्शन स्पर्श विराट्(य)=  इधर (य) अक्षर का उच्चारण  कामातुर मन को कामस्पर्शन की तरफ खींचनेवाली व्यानवायु का  स्पंदना है! 
44) विवह वात तिर्यक् गमन पुराणह्य(र)= इधर (र) अक्षर का उच्चारण  मन को भौतिक अनंद के लिए माया की तरफ खींचनेवाली व्यानवायु का  स्पंदना है!
45)विवह प्रभंजन मन पृथक् सुमित(ल)= इधर (ल) अक्षर का उच्चारण मन को भौतिक अनंद के लिए माया की तरफ खींचनेवाली व्यानवायु का  स्पंदना है!
 F) मूलाधार:
मूलाधारचक्र अपानवायु का स्थान है! अपानवायु का रूप में व्यर्थ पदार्थों का विसर्जन(Elimination)के लिए सहायता करेगा! 
आज्ञा चक्र (प्रवाह प्राण) श्रीकृष्णतत्व अथवा सृष्टि का अन्दर परमात्मा का प्रतीक है! इस का पुत्रिका विशुद्ध चक्र है! विशुद्धचक्र आकाशतत्व(परिवह प्राण) को यानी शब्द का प्रतीक है! विशुद्धचक्र का पुत्रिका अनाहतचक्र है! अनाहतचक्र वायुतत्व का यानी स्पर्श (आवह प्राण) का प्रतीक है! अनाहतचक्र का पुत्रिका मणिपुरचक्र है! मणिपुरचक्र अग्नितत्व का यानी रूप (उद्वह प्राण) का प्रतीक है! है! मणिपुरचक्र का पुत्रिका स्वाधिष्ठानचक्र है! स्वाधिष्ठानचक्र जलतत्व का यानी रस(रूचि) (विवह प्राण) का प्रतीक है! स्वाधिष्ठानचक्र का पुत्रिका मूलाधारचक्र है! मूलाधारचक्र पृथ्वीतत्व का यानी गंध (संवह प्राण) का प्रतीक है!
लं संयुक्ताक्षर मूलाधारचक्र केंद्र को स्पंदित करेगा! इस मूलाधारचक्र का स्पंदनों अपानवायु का स्पंदनों है! इसी को(संवह प्राण) यानी अपानवायु मार्ग कहते है!
मूलाधारचक्र का चारों ओर समानवायु का स्पंदनों का स्पंदनों  4 प्रकार का होंगे! कभी कभी अपने आप और कुछ समयों में दूसरा वायुवो का साथ इस अपानवायु मिलके स्पंदन करेगा! इन 4 प्रकार का अपानवायु का स्पंदनों भी उस प्रवह श्वासिनी का साथ यानी मुख्य प्राणशक्ति का साथ interact होंगे!
मूलाधारचक्र को 4 दळ है! वे है, , , स! इन 4 दळ ही 4 अक्षरों है!  इन 4 अक्षरों  को जोर से 4 बार केंद्र संयुक्ताक्षर लंका साथ उच्चारण करने से केंद्र और 4 दिशा मे स्पन्दित करासकता है! इस का हेतु  कुण्डलिनी जागृति होजायेगा! आरोग्य भी सुगम होगा, और परमात्मा का साथ अनुसंधान सुलभतर होजायेगा!
46)संवह अजगत् प्राण जन्म मरण अदृश्य(व)= इधर (व) अक्षर का उच्चारण जनन- मरणों से जोड़ा हुआ इस जीवन चक्र गतिविधि का माया प्रपंच का तरफ खींचने वाली अपानवायु का स्पंदना है!  
47)संवह आवक् फेला पुरिमित्र(श)= इधर (श) अक्षर का उच्चारण चंचलायुत अपानवायु का स्पंदना है!
48)संवह समिर प्रातःकालेर् वायुसङमित(ष)= इधर (ष) अक्षर का उच्चारण प्रातःकाल में शौतघर(toilet) जाने के लिए आनेवाले अपानवायु का  स्पंदना है! 
49)संवह प्रकंपन गंधेर अणुके आने मितासन(स)= इधर (स) अक्षर का उच्चारण प्रातःकाल में शौतघर(toilet) जाने के लिए दुर्गंध का साथ आनेवाले अपानवायु का स्पंदना है!
ध्यान देने का विषयों:
मूलाधाराचक्र केंद्र को स्पन्दित करनेका अक्षर ‘लं’! स्वाधिष्ठानचक्र केंद्र को स्पन्दित करनेका अक्षर ‘वं’!
व, श, ष, स मूलाधाराचक्र को चारों ओर इन अक्षरों स्पंदित करता है! इन अक्षरों में ‘व’ अक्षर का साथ ‘अं’ अक्षर मिलके ‘वं’ संयुक्ताक्षर बनता है! इस ‘वं’ संयुक्ताक्षर स्वाधिष्ठानचक्र का केंद्र बनता है! अपानवायु का स्थान मूलाधाराचक्र है! अपानवायु का रूप में व्यर्थ पदार्थों का विसर्जन(Elimination)के लिए सहायता करेगा! स्वाधिष्ठानचक्र संबंधित यानी लिंग  संबंधित अंगों/अवयवों को व्यर्थ पदार्थों का विसर्जन (Elimination)के लिए सहायता करने के लिए अपानवायु का प्रमेय (Inter action)आवश्यक है! इस प्रबंध (arrangement) परमात्मा ने मानवाली(mankind) को दिया हुआ देन है!
मणिपुरचक्र केंद्र को स्पन्दित करने का अक्षर ‘रं’! स्वाधिष्ठानचक्र का चारों ओर स्पंदन करनेवाला अक्षरों (ब, भ, म, य, र, ल) है! इन में ‘र’ अक्षर का साथ ‘अं’ अक्षर मिलाके, ‘रं’ संयुक्ताक्षर बनेगा! यह ‘रं’ संयुक्ताक्षर मणिपुरचक्र का केंद्र बनता है! समानवायु का स्थान मणिपुरचक्र है! समानवायु का रूप में स्पांजीकरण (Assimilation)के लिए यानी पाचन क्रिया (digestion) के लिए सहायता करेगा! इस का हेतु विविध प्रकार का कणों, अंगों (organs)को आवश्यक प्रोभूजिन (proteins) का वितरण, और मरा हुआ कणों का स्थान में नूतन कणों का सृष्टि करने को सहायता मिलेगा!
मणिपुरचक्र संबंधित यानी उदर संबंधित अंगों/अवयवों को व्यानवायु का प्रसरण (Circulation) के लिए सहायता करने के लिए अपानवायु का प्रमेय (Inter action) आवश्यक है! इस प्रबंध (arrangement) परमात्मा ने मानवाली(mankind) को दिया हुआ देन है!  
अनाहतचक्र केंद्र को स्पंदित करने का अक्षर ‘यं’! स्वाधिष्ठानचक्र का चारों ओर स्पंदन करनेवाला अक्षरों (ब, भ, म, य, र, ल) है! इन में ‘य’ अक्षर का साथ ‘अं’ अक्षर मिलाके, ‘यं’ संयुक्ताक्षर बनेगा! यह ‘यं’ संयुक्ताक्षर अनाहतचक्र का केंद्र बनाता है! प्राणवायु का स्थान अनाहतचक्र है! प्राणवायु का रूप में स्फटिकीकरण (Crystallization)के लिए यानी सारे कामों का व्यक्तीकरण के लिए सहायता करेगा! इसी हेतु हृदय संबंधित अंगों/अवयवों का व्यानवायु का प्रसरण (Circulation) का प्रमेय (Inter action) आवश्यक है! इस प्रबंध (arrangement) परमात्मा ने मानवाली (mankind) को दिया हुआ देन है!
विशुद्ध केंद्र को स्पन्दित करने का अक्षर ‘हं’! आज्ञाचक्र का चारों ओर स्पंदन करनेवाला अक्षरों (ह, क्ष) है! इन में ‘ह’ अक्षर का साथ ‘अं’ अक्षर मिलाके, ‘हं’ संयुक्ताक्षर बनेगा! यह ‘हं’ संयुक्ताक्षर विशुद्धचक्र का केंद्र बनता है!
उदानवायु का स्थान विशुद्धचक्र है! केशवृद्धि, त्वचा, मांस इत्यादियो के लिए विविध प्रकार का कणों का आवश्यकता है! इस के लिए अनंत प्रकार का समीकरणों (equations) होता रहता है! इस पद्धति का जीवाणुपाक कहते है! इसी हेतु कंठ संबंधित अंगों/अवयवों का मुख्यप्राण का प्रमेय (Inter action) आवश्यक है! इस प्रबंध (arrangement) परमात्मा ने मानवाली(mankind) को दिया हुआ देन है!

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