शरीर विज्ञानशास्त्र (Anatomy) —क्रियायोग Part5
विविध अणुवों मिलके एक कीड़ा (worm),
वृक्ष, पक्षी(bird),
पशु, और मनुष्य
रूपों में विविध प्रकार रूपों में व्यक्त होता है! इन सब जीवों और उस जीवो संबंधित अणुवों को
अवसर का मुताबिक़ व्यक्त होनेवाली चीज इस प्राणशक्ती ही है! इस प्रकार मनुष्य का
अपेक्षा का मुताबिक़ लभ्य होनेवाली प्राण को मुख्यप्राणशक्ति कहते है!
मुख्यप्राणशक्ति गर्भधारण समाया
में जीवात्मा का साथ प्रवेश करेगा! उस जीव का कर्मानुसार रहेगा! जीव का जीवन आयु
इस मुख्यप्राणशक्ति
का उप्पर आधारित है! इस मुख्यप्राणशक्ति ब्रह्माण्ड (cosmos) से परमात्मचेतना
रूप में मेडुला (medulla) का (आज्ञा नेगटिवचक्र) माध्यम से भेजा(Cerebrum) में प्रवेश करके आज्ञा पॉजिटिवचक्र
द्वारा सहस्रार में प्रवेश करेगा! उधर सारेचाक्रों, चक्रों से अंगों, अंगों से नस नस में बांटा जाएगा!
मुख्यप्राणशक्ति सारे देह में
व्याप्ति होगा! परंतु विविध प्रदेशों में विविध प्रकार का काम करते विविध नामो से
व्यक्त होता है!
प्राणवायु का रूप में स्फटिकीकरण (Crystallization)के लिए यानी सारे
कामों का व्यक्तीकरण के लिए सहायता करेगा!
अपानवायु का रूप में व्यर्थ पदार्थों का
विसर्जन(Elimination)के लिए सहायता करेगा!
व्यानवायु का रूप में प्रसारण (Circulation)के लिए सहायता
करेगा!
समानवायु का रूप में स्पांजीकरण (Assimilation)के लिए यानी पाचन
क्रिया (digestion) के लिए सहायता करेगा! इस का हेतु विविध प्रकार का कणों, अंगों (organs)को आवश्यक
प्रोभूजिन (proteins) का वितरण, और मरा हुआ कणों का स्थान में नूतन कणों का सृष्टि करने को सहायता
मिलेगा!
केशावृद्धि, त्वचा, मांस इत्यादियो के लिए विविध प्रकार का कणों का
आवश्यकता है! इस के लिए अनंत प्रकार का समीकरणों होता रहता है! इस पद्धति का
जीवाणुपाक कहते है! उदानवायु का रूप में जीवाणुपाक (Metabolizing) के लिए सहायता
करेगा!
प्राण, और अपान ये दोनों मनुष्य का शरीर
में दो प्रधान विद्युत् (electricities) है! अपान विद्युत् पहला विद्युत् है!
मनुष्य का दोनों आँखों का मध्य में उपस्थित प्रदेश को कूटस्थ कहते है! अपान
विद्युत् कूटस्थ से मूलाधारचक्र का नीचे
उपस्थित मलद्वार का माध्यम से बाहर जाएगा! अपान विद्युत् चंचल है! मनुष्य
इन्द्रियों का वष में रखेगा!
दूसरा प्राण विद्युत् है! यह मूलाधारचक्र
से कूटस्थ में जाएगा! यह शान्तियुत है! निद्रा, और ध्यान समय में मनुष्य का
एकाग्रता को परमात्मा का साथ अनुसंधान करके रखेगा! अपान विद्युत् मनुष्य का
एकाग्रता को नीचे खींचके विषयासक्ति में रूचि कराएगा, और प्राण विद्युत् मनुष्य का
एकाग्रता को अन्दर यानी अंतर्मुख करके परमात्मा में रूचि कराएगा! क्रियायोग साधना
का माध्यम से अंतर्मुख होना सुलभतर है!
मुख्यप्राण कूटस्थ से अवरोहण में मलद्वार
का माध्यम से बहिर्गत होनेको, कणों,झिल्ले(membranes), और अंगों का माध्यम से भेजा समाचार लेजाने के लिए, और भेजा से समाचार
वापस ले आनेको, नाडीयों में, और मानसिक व्यापारो के लिए, अधिकाधिक शक्ति खर्च होगा! उस समय अथवा इन कामों
के लिए कार्बन डयाक्सैड(CO2) जैसा व्यर्थ अथवा कलुषितो को रक्त में छोड़देगा!
उस कलुषित रक्त जल्दी जल्दी शुद्धीकरण करना अत्यंत आवश्यक है नहीं तो भौतिक मरण
संभव होगा! उस खर्च हुआ शक्ती को पुनरुद्धन के लिए श्वासक्रिया का माध्यम से
आनेवाली इस मुख्यप्राण अत्यंत आवश्यक है!
मेरुदंड का अन्दर का प्राण, और अपान
वायुवो का परस्पर विरुद्ध खिचाव का हेतु श्वास निश्वास प्रक्रिया होता है!
प्राणशक्ति उप्पर जाने का समय में प्राणवायुसहित प्राणशक्ति को फेफडो (lungs) में लेजाके कार्बन
डयाक्सैड(CO2) को तुरंत मुक्त कराएगा! इसी को श्वासक्रिया कहते है! उदर का अन्दर का
द्रव और घन पदार्थोँ को शुद्धीकरण करने को अधिक समाया लगेगा! वैसा शुद्धीकरण हुआ
शक्ति को कणों में भेजनेवाला इस प्राणशक्ति ही है! शुद्धीकरण हुआ प्राणशक्ति
मेरुदंड का सब चक्रों, कूटस्थ, और बड़ा भेजा (cerebrum) में शक्ति को पुनरुद्धारण करता ही रहेगा और श्वास का शेष शक्ति को
रक्त सर्वशरीर में लेजाते रहेगा! पञ्चप्राणों उन का अवसर का अनुसार उपयोग करेगा!
भौतिक शरीर को भौतिक मेरुदंड, भेजा, और भौतिक
चक्रस्थानों होता है!
सूक्ष्मशरीर को सूक्ष्ममेरुदंड, सहस्रदळों का
सूक्ष्मभेजा, प्रकाशयुत, और शक्तियुत सूक्ष्म चक्रस्थानों, और सूक्ष्मनाडी व्यवस्था(system) होता है! भौतिक में नर ही सूक्ष्म में नाडी करके कहते है!
भौतिकशरीर,
भौतिकशरीर का अन्दर का पञ्चकर्मेन्द्रियो, पञ्चज्ञानेन्द्रियो, इन का आवश्यक
शक्तियों का मूल आधार इस सूक्ष्मशारीर है! सूक्ष्मनाडीयों का माध्यम से पञ्चप्राणों का आवश्यक
शक्ति प्रदान करेगा इस सूक्ष्मशारीर! सुषुम्ना सूक्ष्मनाडी का बाहर तरफ का
प्रकाशमान कवर (outer cover), प्राणाणुवो, सप्त चक्रों, और पञ्चभूतों का
सूक्ष्मनाडीयों का नियंत्रण करेगा!
सुषुम्ना सूक्ष्मनाडि मूलाधारचक्र से लेकर
बड़ा भेजा (cerebrum) का अन्दर का
पीनियल ग्रंथि का समीप में रहा ब्रह्मरंध्र का साथ जोड़ा हुआ सहस्रारचक्र तक
व्याप्ति हुआ होता है! भौतिक मेरुदंड का दोनों तरफ पंक्तियां(rows) में होने सिंपथटिक
नाडी व्यवस्था (sympathetic nervous system) सूक्ष्मशरीर मेरुदंड का प्रतीक है! इडा, पिंगळा, और सुषुम्ना तीनों
मिलके एक, सुषुम्ना सूक्ष्मनाडी का अन्दर वज्र दूसरा, और वज्र
सूक्ष्मनाडी का अन्दर चित्रि सूक्ष्मनाडी तीसरा है, चित्रि सूक्ष्मनाडी का अन्दर ब्रह्मनाडी होता है!
ब्रह्मनाडी का बाहर भाग सूक्ष्म मेरुदंड का चौथा पंक्ति है! इस ब्रह्मनाडी
कारणशारीर का मेरुदंड है!
भौतिक मेरुदंड में एक का अन्दर एक चार
पंक्तियों में सिंपथटिक नाडी व्यवस्था(sympathetic nervous system) भौतिक मेरुदंड में
उपस्थित हुआ है! इसका रक्षण के लिए कशोरुक (vertebra) यानी 33 रीड का जोड़ परमात्मा ने दिया है!
सबसे बाह्यमे उपस्थित नरों(nerves) में लिम्फ/लसीका (lymph) से भरा हुआ ड्यूरा
पदार्थ (Dura matter membrane) झिल्ली होता है! इस ड्यूरा पदार्थ झिल्ली का अंदर का
नाड़ियों में मुलायम अरक नायड(Arachnoid
membrane) झिल्ली होता है! यह भेजा से आनेवाला द्रव
को रक्षा करेगा! इस का अन्दर पाया पदार्थ (pia
matter)झिल्ली होता है! ये सफ़ेद और ग्रे (white & gray matter) पदार्थो है! ये वास्क्युलर (Vascular membrane) झिल्ली से कवर (cover)
किया होता है! अफ्फरेंट और एफ्फेरेंट (Afferent
& efferent) नाम का कोमल(delicate) नाडियो का माध्यम से बडाभेजा साथ झिल्ले(membranes), कर्मेन्द्रियो, ज्ञानेंद्रियों, और
मुख्या अंगों(organs) और संबंधित नरों का साथ जोड़ा हुआ होता है! सफ़ेद और ग्रे (white
& gray matter) का अन्दर एक अत्यंत कोमल नहर(canal) होता है! सफ़ेद (white matter)पदार्थ समाचार को
भेजा को लेजानेवाला मुख्यवाहिका है! ग्रे (gray matter) पदार्थ
प्रेरकों को समन्वय करेगा! (The grey matter integrates reflexes to
stimuli).
भौतिक नेत्र में सफ़ेद(White), आँख की पुतली (Iris), और पूपिल (Pupil) होता है! उस का पीछे सूक्ष्मज्ञाननेत्र
में सफ़ेद(White)का अनुसार सुवर्ण रंग चक्र, उस का अन्दर आँख की पुतली (Iris) का अनुसार
इन्द्रनीलचक्र, और उस का अन्दर पूपिल (Pupil) का अनुसार पांचभुजावाली रजत नक्षत्र, होता है! मनुष्य का आगे बड़ा
हुआ हाथो, शिर, पैरों, इन सब मिलके पांचभुजावाली रजत
नक्षत्र है! शिर आकाश को, दोनों हाथ वायु, और अग्नि को, दोनों पैरों जल, और पृथ्वी का प्रतीके है!
मनुष्य का शरीर में 72,000 सूक्ष्मनाडियां
है! उन में इडा, पिंगळा, और सुषुम्ना अतिमुख्य है! प्रकाश का बाहर कवर (cover) सुषुम्ना
सूक्ष्मनाडि है! यह सूक्ष्म शरीर का प्राणायुवो का स्थूल कामों को नियंत्रित
करेगा! सुषुम्ना सूक्ष्मनाडि का बाए तरफ प्राणवायु का अनुसार रहा इडा सूक्ष्मनाडि
होता है! सुषुम्ना सूक्ष्मनाडि का दाहिने तरफ अपानवायु का अनुसार रहा पिंगळ
सूक्ष्मनाडि होता है! ये दोनों स्थूला शरीर का नाडी व्यवस्था(nervous
system) नियंत्रित
करेगा!
सुषुम्ना सूक्ष्मनाडि मूलाधाराचक्र से
सहस्रारचक्र पर्याप्त व्याप्ति किया होता है!
सुषुम्ना सूक्ष्मनाडि का अन्दर वज्र सूक्ष्मनाडि
है१ यह स्वाधिष्ठान चक्र से सहस्रारचक्र पर्याप्त व्याप्ति किया होता है! यह सूक्ष्मशरीर
का संकोच, व्याकोच, और समस्त गतियो यानी स्पंदनों का अवसर का अनुसार शक्ति लभ्य
करेगा!
वज्र सूक्ष्मनाडि का अन्दर चित्रि सूक्ष्मनाडि
है१ यह मणिपुर चक्र से सहस्रारचक्र पर्याप्त व्याप्ति किया होता है! यह सूक्ष्मशरीर
का आध्यात्मिक और चेतना संबंधित काम्यकर्म करेगा!
सुषुम्ना, वज्र, और चित्रि सूक्ष्मनाडियों
का काम्यकर्म सहस्रारचक्र करेगा!
सुषुम्ना, वज्र, और चित्रि सूक्ष्मनाडियों का काम्यकर्म
सहस्रारचक्र करेगा!
सहस्रारचक्र सूक्ष्मशरीर का(Brain)भेजा है!
सहस्रारचक्र का प्रकाशकिरणों सप्त चक्रों को अपना अपना काम्यकर्म, और चेतना अवसर का
अनुसार शक्ति प्रदान करेगा! भौतिक भेजा, और स्थूलाचक्र स्थानों, नाडी केन्द्रों, नाड़ियों, इन सबका माध्यम से
उन चीजों/अंगों का काम्यकर्म का अनुसार इस शक्ति लभ्य होगा!
स्थूलशरीर मांसमय है!
सूक्ष्मशरीर प्राणशक्ति, प्राणअणुवों अथवा
ज्ञानप्रकाश का साथ विराजमान है! कारणशरीर केवल चेतना अथवा विचार अणुवों का साथ
विराजमान है! मानवचेतन, और स्थितिवंतता का हेतु इस कारणशरीर ही है! कारणशरीर को ज्ञानग्राही भेजा(Brain), आध्यात्मिकता सहित ब्रह्मनाडी नाम का
मेरुदंड होता है! यह चित्रि सूक्ष्मनाडि में उपस्थित है! यह केवल चेतना का साथ
विराजमान है!
स्थूलशरीर को स्थूलचक्र स्थानों है!
स्थूलचक्र स्थानों का अनुसार सूक्ष्मशरीर चक्रों है! वैसा ही सूक्ष्मचक्र स्थानों
का अनुसार कारणशरीर चक्रों होता है!
स्थूलचक्र स्थानों स्थूलभेजा(Brain), सूक्ष्मचक्र स्थानों सूक्ष्मभेजा(Brain), और कारणचक्र स्थानों कारणभेजा(Brain) इन सब साथ मिलके
काम्यकर्म करेगा! स्थूलशरीर, सूक्ष्मशरीर, और कारणशरीर तीन मिलके कामकाज एक ही
यन्त्र (machine) जैसा काम करेगा! स्थूलशरीर, और सूक्ष्मशरीर, इन दोनों इस कारणशरीर
का साथ यानी सहायता से ही पहचानना, सोचना, और चाहना, और अनुभव करना, इन सब करने को
संभव/सक्षम होगा! कारणशरीर का भेजा (Brain) नित्य शक्तिवंत, नित्य चैतन्यम, नित्य नूतन आनंद
सहित परमात्मा चेतन का भांडागार है!
परमात्मचेतन का व्यक्तीकरण ही व्यष्टात्म
है! परमात्मचेतन कारणशरीर में प्रवेश करने समय, कारण सेरेब्रम यानी बड़ा भेजा में शुद्धज्ञान का
रूप में, कारण मेडुल्ला में आत्मबोध (intuition)का रूप में, कारण विशुद्ध में शांति का रूप में, कारण अनाहत में
प्राणशक्ति नियंत्रण का रूप में, कारण मणिपुर में आत्मनिग्रहशक्ति का रूप में, कारण स्वाधिष्ठान
में जिद्दी का रूप में, कारण मूलाधार में निग्रहशक्ति और नित्यनिरंतर विचारों का चेतना का रूप
में,
व्यक्तीकरण
होता है!
प्राणशक्ति, अहंकार, चेतना, मेरुदंड में
साधक उपसंहरण करेगा! सूक्ष्म मेरुदंड में उपस्थित सुषुम्ना, सुषुम्ना का अन्दर का
वज्री, वज्री का अन्दर का चित्री, इन सब में विद्युत् एक धारा जैसा भेजेगा! उस
धारा चित्री का अन्दर का ब्रह्मनाडी का माध्यम से आरोहणाक्रम में परमात्मा को
लेजाएगा! इस ब्रह्मनाडी द्वारा ही क्रमशः आत्मा, प्राण, और चेतना का रूप में
अवरोहणक्रम में इस जड़ शरीर में प्रवेश करके उसको चैतन्यवंत करता है!
अग्निर्ज्योतिरहश्शुक्लः षण्मासा
उत्तरायणं
तत्र प्रयाता गच्छंति ब्रह्मा ब्रह्मा
विदोजनाः गीता
8—24
अग्नि, प्रकाश, दिन, शुल्क पक्ष, छे मासों का उत्तरायण, ये सब जिस मार्ग
में है,
उस मार्ग
में भौतिक देह पतानानंतर, ब्रह्मज्ञानी लोग जाते है! वे ब्रहम प्राप्ती ही करते है!
धूमो रात्रिस्तथा कृष्ण षण्मासा
दक्षिणायणं
तत्र चान्द्रमसं ज्योतिः योगी प्राप्य
निवर्तते गीता 8—25
धुंआ, रात्री, कृष्ण पक्ष, छे मासों का दक्षिणायणं, ये सब जिस मार्ग
में है,
उस मार्ग
में भौतिक देह पतानानंतर, सकामकर्मयोगी लोग जाते है! चंद्रसंबंध प्रकाश प्राप्ति करते है! पुनः
वापस आके जन्म लेता है!
शुक्ल कृष्ण गतीह्येते जगतः शाश्वते मते
एकयायात्यना वृत्ति मन्यया वर्तते
पुनः गीता 8—26
ये शुक्ल कृष्ण पक्ष मार्ग दोनों, जगत में शाश्वत
रीति में होने का संभावना इति मानते है!
शुक्ल मार्ग जन्मराहित्य, और कृष्ण मार्ग पुनर्जन्म प्राप्ति लभ्य करते है!
उप्पर का श्लोको का विवारणार्था इस प्रकार
है:--
अग्नि का अर्थ इधर कुण्डलिनी प्राणशक्ति,
यानी साधक कुण्डलिनी प्राणशक्ति का नियंत्रण साध्य करना है! ऐसा योगी का भौतिक देह
पतानानंतर का मार्ग प्रकाश यानी परमात्मचैतन्य यानी सहस्रारचक्र का तरफ होता है! इस
मार्ग को शुक्ल यानी सफ़ेद मार्ग कहाजाता है! यहाँ दिन का अर्थ साधक को कूटस्थ में
दिखाईदेनेवाली तीसरा ऑख है! छे मासों का उत्तरायण का अर्थ आरोहणक्रम में मूलाधार,
स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, और आज्ञा नामो का छे चक्रों है! उत्तर दिशा
का अर्थ सहस्रार चक्र है! इन छे चक्रों में साधक छे प्रकार का परमात्म चेतना का
अनुभूति प्राप्त करेगा! इस प्रकार प्राणशक्ति, और चेतना उत्तर दिशा में सफ़र करके
सुषुम्ना, वज्री, और चित्री, नाड़ियों का पार करके, स्थूला, सूक्ष्म, और आखरी में
कारण शरीर का अन्दर का अत्यंत सूक्ष्म ब्रह्मनाडी को पार करके उस का माध्यम से
परमात्मा में ऐक्य होजायेगा! जानना मरणों से मुक्ति पायेगा!
साधारण मनुष्यों में प्राणशक्ति का मार्ग
नीचे यानी अन्धेरा यानी कृष्ण मार्ग, धूम्र याने अज्ञान, रात्री का अर्थ
अज्ञानस्थिति, इति अर्थ है! परमात्मचेतन सहस्रारचक्र से छे मासों का दक्षिणायन का
अर्थ आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, और मूलाधार नामों का छे चक्रों
है! इस रास्ता से पुनः द्वंद्व प्रवृत्ति में आयेगा, और संसार में प्रवेश करके जनन
मरण चक्र में फँस जाएगा! मूलाधारचक्र दक्षिण दिशा है! इन छे चक्रों में
मनुष्य अपना परमात्मचेतना का अनुभूति क्रमशः भूल जाएगा!
जीव प्रयाण करने समय में अविद्या अथवा
कारणशरीर का सहित सूक्ष्मशरीर, कामं, कर्मा, पंच महाभूतों ये सब जीव का साथ ही चलेगा! कारणशरीर में चित्रगुप्त का
किताब होता है! यह मोबैल (Mobile cell)में चिप(chip) जैसा है! इस चित्रगुप्त का चिप(chip) में मनुष्य का
पूर्वजन्मों का वासनाए, कर्मफलो निक्षिप्त होता है!
जीव कारण, और सूक्ष्म शरीरों का साथ आकाश, वायु, धूम्र, वर्ष करनेवाला मेघ
द्वारा प्रयाण करेगा! धान्यो (व्रीह्यादियो) का माध्यम से अन्न स्वरुप में
परिवर्तन होगा! उस अन्न का पुरुष खायेगा! उस पुरुष का शरीर में जीव प्रवेश करेगा!
पुरष का शुक्ल का माध्यम से प्रयाण करेगा! स्त्री शरीर योनी में प्रवेश करेगा!
स्त्री शरीर का शोणित से मिलेगा! सूक्ष्मशरीर, मरणानंतर स्थूलशरीर पचीक्रुत महाभूता सूक्ष्माशों, पुन्यपापा कर्मफलो, वासनारूप में
निक्षिप्त हुआ असंतुष्ट असम्पूर्ति इच्छावों, त्रिगुणात्मक स्वरूपी कारणशरीरसंयुक्त जीव, ये सब जन्मराहित्य
नहीं होने तक सहयात्री है!
सुषुम्ना नाडी गुदास्थान का समीम में
उपस्थित मूलाधार से ब्रह्मरंध्र में उपस्थित सहस्रार तक मेरुदंड पर्याप्त व्याप्ति
हुआ है! ज्ञानी लोग, और योगी लोग इत्यादि जीवन्मुक्त लोगों इस मार्ग में निष्क्रमण
करते है!
इडा सूक्ष्मनाडि मूलाधार से नथुना
(nostrils) तक, और सुषुम्ना नाड़ी का बाए तरफ मेरुदंड पर्याप्त व्याप्ति हुआ होता
है! इसी को चंद्रनाडी, पित्रुयाननाडी, अथवा कृष्णायाननाडी कहते है! आत्मज्ञान
शून्यलोगो, कर्मफलो चाहनेवाला इस मार्ग में निष्क्रमण करते है!
इमूलाधार से नथुना (nostrils) तक, और
सुषुम्ना नाड़ी का दाहिने तरफ मेरुदंड पर्याप्त व्याप्ति हुआ पिंगळा सूक्ष्मनाडि होता
है! इसी को सूर्यनाडी, देवयाननाडी, अथवा शुक्लायाननाडी कहते है! निष्काम का साथ कर्मफलो
नहीं चाहते हुआ सकाम काम्यकर्मो करने लोग इस मार्ग में निष्क्रमण करते है!
सृष्टि:
परामात्मा को ही ब्रह्मण कहते है! ब्रह्मण
अविद्या में अपना चैतन्य को व्याप्त किया है! इस का परिणामं ही सृष्टि है!
ब्रह्मम् चार पाद अथवा भाग समझने से, उन में एक भाग नामरूपसहित जगत जैसा
व्यक्तीकरण किया है! इसी को व्यक्तब्रह्म अथवा व्याकृत ब्रह्म कहते है! यह
इन्द्रियगोचर है!
बाकी शेष अव्यक्त अथवा अव्याकृत तीन पादों/भागों
का निराकार ब्रह्मण सत, चित, और आनंद स्वरूपी है!
अतीत:
आप एक दरी का उप्पर बैठा है समझो! आप का बैठने का प्रदेश पर्याप्त उस दरी
आप में है! आप का बैठने का प्रदेश का अधिक भी है! इसी को अतीत कहते है! वैसा ही परमात्मा
हम में भी है, और हम से अतीत भी है!
एक विद्युत् उपकरण काम करने को उस का अंदर
का विद्युत् शक्ती ही हेतु है! वैसा ही इस शरीर चेतनात्मक होनेका हेतु अन्तरीय
परमात्मा चेतना शिवा और कोईभी नहीं है!
उदजनी(hydrogen), और प्राणवायु (oxygen) इन दोनों आँखों को
नहीं दिखाईदेने पर भी दोनों मिलके आँखों को दिखाईदेनेवाली पानी जैसा परिवर्तन
होगा! सूर्या का अन्दर तेजस जैसा माया का हेतु इस सकल चराचर दृश्य जगत यावत् भी
निराकारानिर्गुना परब्रह्म का ही अंतर्भाग है! इस जड़(inert) माया जगत का आधार
परमात्म चेतना ही है!
सर्वव्यापकब्रह्मा
को पहचानलिया योगी को माया नहीं दिखाईदेगा! वैसा ही माया में डूबाहुआ(merged) साधारण मनुष्य को
ब्रह्मण दिखायी नहीदेगादेगा! जड़ माया सृष्टि का हेतु है! निश्चलब्रह्म सृष्टि का
नहीं हेतु है! इस माया को योगमाया कहते है! सत्व रजः तमोगुण संयुक्त इस योगमायको
चित्शक्ति, महामाया, मूलप्रकृति, कहते है!
कारणस्रुष्टि:
त्रिगुणात्मक
अविद्य ब्रह्मचैतन्य का प्रभाव से सृजनात्मकशक्ति लभ्य किया! ब्रह्मचैतन्यसंयुक्त
अविद्या से प्रारंभ में आकाश(शब्द) उत्पन्न हुआ! आकाश से वायु (स्पर्श), वायु से
अग्नि (रूप), अग्नि से वरुण (रस), और वरुण से पृथ्वी (गंध), उत्पन्न हुआ! इन्ही को
पंच महाभूतों कहते है! ये स्वयं प्रकाशायुत नहीं है! ब्रह्मचैतन्य क्रमशः प्रारंभ
में आकाश, तत पश्चात वायु, अग्नि, वरुण, और पृथ्वी इन सब में व्याप्त हुआ!
अयस्कांतक्षेत्र में लोहा का कील रखने/डालने से अयस्कांतीकरण होजायेगा! वैसा ही
ब्रह्मचैतन्य का प्रवेश का हेतु चैतन्यवंत हुआ है!
शब्द, स्पर्श, रूप,
रस, और गन्धो को पंच तन्मात्राएँ कहते है! अविद्या अथवा मूलप्रकृति से उत्पादन हुआ
पहले शब्द ॐ ही है! इस सारे जगत ॐकार से ही उत्पन्न हुआ! इन सूक्ष्म पंचमहाभूतों त्रिगुणात्मक
(सत्व, रजः, और तमो) है! इस त्रिगुणात्मक मूल अज्ञान अथवा अविद्या को कारणस्रुष्टि
कहते है!
अब तक किसी का साथ
नहीं मिला हुआ सूक्ष्मपञ्चमहाभूतों को अपञ्चीकरण कहते है!
अपञ्चीकृत समिष्टि सत्वगुण सूक्ष्मपञ्चमहाभूतों का अर्थ भागो से पञ्च ज्ञानेंद्रियाँ व्यक्तीकरण हुआ है! इस का तात्पर्य:- आकाश से श्रोत्रं(कान), वायु से त्वचा (चर्म) स्पर्श, अग्नि से चक्षु (नेत्र), जल से रस (जीब) रूचि, पृथ्वी से घ्राण
(नाक) गंध व्यक्तीकरण हुआ! ये कर्ण, चर्म, नेत्र, जीब, और नाक इन सब भौतिक नेत्र को दिखाईदेनेवाले माम्समई अवयवों नहीं है!
इन सब केवल सुनने, स्पर्शन के, देखनेवास्ते, रूचि, और गंध के उपयोगी शक्तियाँ है! इन पंच सूक्ष्मशक्तियो को पंच
तन्मात्राएँ अथवा पञ्च सूक्ष्मज्ञानेंद्रियाँ
कहते है!
बाकी शेष अपञ्चीकृत सत्वगुण सूक्ष्मपञ्चमहाभूतों का अर्थ भागो से अंतःकरण
व्यक्तीकरण हुआ है!
सत्वगुण सूक्ष्म
अर्थभाग आकाश मे ब्रह्मचैतन्य स्वयं विराजमान हुआ है!
सत्वगुण सूक्ष्म अर्थभाग वायु मे संशयात्मक मन का
व्यक्तीकरण हुआ
है! सत्वगुण सूक्ष्म
अर्थभाग अग्नि मे निश्चयात्मक बुद्धि का व्यक्तीकरण हुआ है! सत्वगुण सूक्ष्म
अर्थभाग जल मे चंचल चित्त का व्यक्तीकरण हुआ है!
सत्वगुण सूक्ष्म
अर्थभाग पृथ्वी मे कर्तृत्व भावात्मक अहंकार का व्यक्तीकरण हुआ है!
शेष अपञ्चीकृत रजोगुण सूक्ष्मपञ्चमहाभूतों का अर्थ भागो से मुख्यप्राण
व्यक्तीकरण हुआ है! क्रमश उस मुख्यप्राण
का काम्यकर्मों का अनुसार पाँच प्राणों में विभाजित कियागया है!
अपञ्चीकृत समिष्टि रजोगुण सूक्ष्म
आकाश से प्राणवायु(स्थान-हृदय),
अपञ्चीकृत समिष्टि रजोगुण सूक्ष्म
वायु से अपानवायु(स्थान-गुदस्थान),
अपञ्चीकृत समिष्टि रजोगुण सूक्ष्म
अग्नि से व्यानवायु(स्थान- सर्वशरीर), अपञ्चीकृत समिष्टि रजोगुण सूक्ष्म जल
से उदानवायु(स्थान-कंठ),
अपञ्चीकृत समिष्टि रजोगुण सूक्ष्म
पृथ्वी से समानवायु(स्थान-नाभि), व्यक्तीकरण हुवे है!
सूक्ष्म सृष्टि तत्वों को अधिदेवाताये होते है! वे सुलभ रीति में समझने के
लिए नीचे पट्टी(table) दिया है!
परमात्मा
श्रीकृष्ण
चैतन्य( सृष्टि
का अन्दर का परमात्मा)
|
अविद्या अथवा तीन गुणों
सत्व
|
रजो
|
तमो
|
कारणशरीर
आकाश
(शब्द)
|
वायु
(स्पर्श)
|
अग्नि
(रूप)
|
जल
(रस)
|
पृथ्वी
(गंध)
|
अविद्या, सत्व, रजो, और तमो इन तीन गुणों का साथ है! आकाश, वायु,
अग्नि, जल, और पृथ्वी नाम का सूक्ष्म पंचमहाभूतों इन सब को मिलके कारणस्रुष्टि
कहते है!
अपञ्चीकरण सूक्ष्मसृष्टि (समिष्टि सत्वगुण
पंचमहाभूतों का अर्थभाग से अंतःकरण
व्यक्तीकरण हुआ है!) बाकी शेष अर्थभागों से ज्ञानेंद्रियों व्यक्तीकरण हुआ है! ये
मांसमय अवयवों नहीं है! ये केवल शक्तिया है!
कारणसृष्टि:
सत्वगुण पञ्चमहाभूतों का अर्थभाग सत्वगुण पञ्चमहाभूतों का अर्थभाग
अंतःकरण
|
अधिदेवत
|
ज्ञानेंद्रियों
|
अधिदेवत
|
|
½ आकाश(परमात्मचैतन्य)
|
परमात्मा
|
½ आकाश
|
श्रोत्र(कान)
|
दिशा
|
½ वायु (संशयात्माक मन)
|
चन्द्र
|
½वायु
|
त्वक(चर्म)
|
स्पर्शन
|
½अग्नि
(निश्चयात्मक बुद्धि)
|
बृहस्पति
|
½ अग्नि
|
चक्षु (नेत्र)
|
सूर्य
|
½जल(चंचल
चित्त)
|
रूद्र
|
½जल
|
जिह्व(जीब)
|
वरुण
|
½पृथ्वी(अहंकार)
|
जीव
|
½ पृथ्वी
|
घ्राण (नाक)
|
अश्वनी
देवताये
|
सूक्ष्मस्रुष्टि:
अपञ्चीकरण सूक्ष्मसृष्टि ( समिष्टि रजोगुण
पंचमहाभूतों का अर्थभागो से कर्मेंद्रियां व्यक्तीकरण हुआ है!) बाकी शेष अर्थभागों
से पञ्चप्राणों व्यक्तीकरण हुआ है! ये मांसमय अवयवों नहीं है! ये केवल शक्तिया है!
रजोगुण पञ्चमहाभूतों का अर्थभाग रजोगुण पञ्चमहाभूतों का अर्थभाग
महाभूत
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कर्मेंद्रियां
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अधिदेवत
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पञ्चप्राणों(स्थान)
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अधिदेवत
|
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½आकाश
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मुँह(वदनशक्ति)
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अग्नि
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½आकाश
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प्राण(हृदय)
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विशिष्ट
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½वायु
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पाण(हाथ)क्रियाशक्ति
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इन्द्र
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½वायु
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अपान(गुदास्थान)
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विश्वकर्म
|
½अग्नि
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पादम्(गमनशक्ति)
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उपेन्द्र
|
½अग्नि
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व्यान(सर्वशरीर)
|
विश्वयोनि
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½ जलं
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गुदस्थान(विसर्जनशक्ति)
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मृत्यु
|
½ जलं
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उदान(कंठ)
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अज
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½ पृथ्वी
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शिशिनम्(आनंदशक्ति)
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प्रजापति
|
½ पृथ्वी
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समान(नाभि)
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जय
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इसीकारण सूक्ष्मस्रुष्टि 19 तत्वों का सहित है!
वे 5 ज्ञानेंद्रिया, 5 कर्मेन्द्रिया, 5 प्राणों, 4 अंतःकरण है! यह सूक्ष्मस्रुष्टि भौतिकनेत्र गोचर नहीं है! यह साधारण नेत्रो
को दृश्यमान नाही है यानी दिखाई नहीं देगा!
पञ्च ज्ञानेंद्रिया
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पञ्च कर्मेन्द्रिया
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पञ्च प्राणों
|
चार अंतःकरण
|
कुल
मिलाके 19 तत्वों
|
स्थूलसृष्टि अथवा पञ्चीकरण:
पञ्च तन्मात्राएँ विविध रीती में मिलनेका
हेतु स्थूल सृष्टि का मार्ग बनगया!
अपञ्चीकृत समिष्टि तमोगुण सूक्ष्म पञ्चमहाभूतों
का अर्थाभाग क्रमशः बाकी शेष चार सूक्ष्म पञ्चमहाभूतों का आठवा भागो को मिलाकर
स्थूल पञ्चमहाभूतों बनगया! इस निम्न लिखित पट्टी (table) में देखिये:-
आकाश
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वायु
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अग्नि
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जल
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पृथ्वी
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पञ्चकं
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½
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1/8
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1/8
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1/8
|
1/8
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आकाश
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1/8
|
½
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1/8
|
1/8
|
1/8
|
वायु
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1/8
|
1/8
|
½
|
1/8
|
1/8
|
अग्नि
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1/8
|
1/8
|
1/8
|
½
|
1/8
|
जल
|
1/8
|
1/8
|
1/8
|
1/8
|
½
|
पृथ्वी
|
पञ्चीकरण हुआ आकाश, वायु, अग्नि, जल, और
पृथ्वी पंचकों इन पांचो को अब से आकाश, वायु, अग्नि, जल, और पृथ्वी इति व्यवहार
किया जाएगा!
अविद्य अथवा सत्व रजो तमो गुण संयुक्त मूलप्रकृति से
व्यक्तीकरण हुआ सत्व गुण सूक्ष्म पंचमहाभूतो एक एक केवल अपना अपना तन्मात्रही का साथ
था! तन्मात्रा का
अर्थ शक्ति है! आकाश को शब्द, वायु को स्पर्श, अग्नि को रूप, जल को रसा, पृथ्वी को
गंध तत्वों है!
इस स्थूला सृष्टि ऐसा नहीं है! स्थूल
आकाशा को शब्द, स्थूल वायु को शब्द और स्पर्श दोनों, स्थूल अग्नि को शब्द, स्पर्श,
और रूप तीनों, स्थूल जल को शब्द, स्पर्श, रूप, और रस चारों, और स्थूल पृथ्वी को शब्द,
स्पर्श, रूप, रसा, और गंध पांचो तत्वों
व्यक्तीकरण हुवे है!
इन व्यक्तीकरण हुआ पंचभूतों से जरायु यानी
चार पैरो का पशु, अंडजो यानी पक्षिया, सरीकृपो यानी रेंगनेवाली जीवो, स्वेदजो यानी
खटमल, मच्छर इत्यादि, और उद्भिजो यानी वनस्पति इत्यादि व्यक्तीकरण हुवे है!
मनो, बुद्धि, चित्त, और अहंकार इस स्थूल
अंतःकरण स्थूल आकाश पंचक का हेतु व्यक्तीकरण हुआ है!
स्थूल पंच प्राणों स्थूल वायु पञ्चकं का हेतु
व्यक्तीकरण हुआ है!
स्थूल पंच ज्ञानेंद्रियया स्थूल अग्नि पञ्चकं
का हेतु व्यक्तीकरण हुआ है!
स्थूल पंच तन्मात्राएँ स्थूल जल पञ्चकं का
हेतु व्यक्तीकरण हुआ है!
स्थूल पंच पंचकर्मेंद्रिया स्थूल पृथ्वी पञ्चकं का हेतु व्यक्तीकरण हुआ है!
स्थूल अंतःकरण :
आकाश का अर्थाभाग में परब्रह्म स्वयं ही
प्रवेश किया है!
बाकी शेष अर्थाभाग आकाश में समान
प्रतिपत्ति में क्रमशः 1/8 पृथ्वी, जल, अग्नि, और वायु सब मिलके स्थूल अहंकार, चित्त, बुद्धि, और मन व्यक्तीकरण है!
स्थूल अंतःकरण का
½आकाश=ब्रह्मचैतन्य
|
1/8 स्थूल आकाश+1/8 पृथ्वी = स्थूल समिष्टि अहंकार
1/8 स्थूल आकाश +1/8 जल = स्थूल समिष्टि चित्तं
1/8 स्थूल आकाश +1/8 अग्नि = स्थूल समिष्टि बुद्धि
1/8 स्थूल आकाश +1/8 वायु = स्थूल समिष्टि मन
|
स्थूल वायुवो:
स्थूल वायु का अर्थाभाग व्यानवायु का रूप
में व्यक्तीकरण हुआ! बाकी शेष अर्थाभाग स्थूलावायु
में समान प्रतिपत्ति में क्रमशः 1/8 आकाश, अग्नि, जल, और पृथ्वी, सब मिलके क्रमशः स्थूल समिष्टि समान, उदान, प्राण, और अपान वायु व्यक्तीकरण हुआ है! प्राण और
अपान वायु दोनों को व्यानवायु अनुसंधान करके संचारण कराएगा!
½ स्थूल वायु = समिष्टि स्थूल व्यान वायु
|
1/8 स्थूल वायु +1/8 स्थूल आकाश = स्थूल समिष्टि समान वायु
1/8 स्थूल वायु +1/8 स्थूल अग्नि = स्थूल समिष्टिउदान
1/8 स्थूल वायु +1/8 स्थूल जल = स्थूल समिष्टिप्राण
1/8 स्थूल वायु +1/8 स्थूल पृथ्वी = स्थूल समिष्टि अपान
|
स्थूलज्ञानेंद्रियां:
स्थूल अग्नि का अर्थाभाग चक्षु का रूप में
व्यक्तीकरण हुआ! बाकी शेष अर्थाभाग
स्थूल अग्नि में समान प्रतिपत्ति में क्रमशः 1/8 आकाश, वायु, जल, और पृथ्वी, सब मिलके क्रमशः स्थूल समिष्टि श्रोत्र(सुनने का शक्ति), त्वक् (स्पर्श का शक्ति), जिह्वा (रसन का शक्ति), और घ्राण(सूंघने का शक्ति) व्यक्तीकरण हुआ है!
½ स्थूल अग्नि = स्थूल समिष्टि नेत्र
|
1/8 स्थूल अग्नि +1/8 स्थूल आकाश = स्थूल समिष्टि कान
1/8 स्थूल अग्नि +1/8 स्थूल वायु = स्थूल समिष्टि चर्म
1/8 स्थूल अग्नि +1/8 स्थूल जल = स्थूल समिष्टि जीब
1/8 स्थूल अग्नि +1/8 स्थूल पृथ्वी = स्थूल समिष्टिनाक
|
स्थूल पंच भूततत्वों अथवा
तन्मात्राएँ:
स्थूल जल का अर्थाभाग समिष्टि रसतत्व का
रूप में व्यक्तीकरण हुआ! बाकी शेष अर्थाभाग
स्थूल जल में समान प्रतिपत्ति में क्रमशः 1/8 आकाश, वायु, अग्नि, और पृथ्वी, सब मिलके क्रमशः स्थूल समिष्टि शब्द, स्पर्श, रूप, और गंध तन्मात्राएँ व्यक्तीकरण हुआ है!
½ स्थूल जल = समिष्टि स्थूल रसतत्व
|
1/8 स्थूल जल +1/8 स्थूल आकाश = स्थूल समिष्टि शब्द
1/8 स्थूल जल +1/8 स्थूल वायु = स्थूल समिष्टि स्पर्श.
1/8 स्थूल जल +1/8 स्थूल अग्नि = स्थूल समिष्टि रूप
1/8 स्थूल जल +1/8 स्थूल पृथ्वी = स्थूल समिष्टि गंध
|
स्थूल पंच कर्मेन्द्रिया:
स्थूल पृथ्वी का अर्थाभाग
समिष्टि पायुतत्व(मलविसर्जनशक्ति) का रूप में व्यक्तीकरण हुआ! बाकी शेष अर्थाभाग स्थूल पृथ्वी में समान
प्रतिपत्ति में क्रमशः 1/8 आकाश, वायु, अग्नि, और पृजल सब मिलके क्रमशः स्थूल समिष्टि वाक्(मुँह), पाणी(क्रियाशक्ति), पादम्(गमनशक्ति), और उपस्थ (मूत्र
विसर्जन शक्ति) व्यक्तीकरण हुआ है!
½ स्थूल पृथ्वी = स्थूल समिष्टि पायुवु(गुदस्थान)
|
1/8 स्थूल पृथ्वी +1/8 स्थूल आकाश= स्थूल समिष्टि मुँह
1/8 स्थूल पृथ्वी +1/8 स्थूल वायु = स्थूल समिष्टि पाणी (हाथो).
1/8 स्थूल पृथ्वी +1/8 स्थूल अग्नि = स्थूल समिष्टि
पादम्
1/8 स्थूल
पृथ्वी +1/8 स्थूल जल= स्थूल समिष्टि उपस्थ (लिंग)
|
इसी हेतु स्थूल सृष्टि 24 तत्वों का संयुक्त है! वे 5 ज्ञानेंद्रिया, 5 कर्मेन्द्रिया, 5 प्राणों,
5 तन्मात्राएँ, 4 अन्तःकरण
5 ज्ञानेंद्रिया
|
5 कर्मेन्द्रिया
|
5 प्राणों
|
5 तन्मात्राएँ
|
4 अन्तःकरण
|
कुल मिलाके 24 तत्वों
|
परमात्मा(सत)
|
||
तत
|
ॐ
|
सृष्टि
|
परमात्मा से व्यक्तीकरण हुआ श्रीकृष्ण चैतन्य को ही शुद्धतत्व
माया अथवा सृष्टि का अन्दर का परमात्मा कहते है!सृष्टि
का अन्दर का परमात्मा को श्री कृष्ण चैतन्य कहते है! इस सृष्टि का अन्दर का परमात्मा
अपने आप को छे प्रकार में प्रकट किया!
सृष्टि का अन्दर का परमात्मा
|
|
समिष्टि कारण (ईश्वर)
|
व्यष्टि कारण(प्राज्ञ)
|
समिष्टि सूक्ष्म (हिरण्य गर्भा)
|
व्यष्टि सूक्ष्म (तेजस)
|
समिष्टि स्थूल(विराट्)
|
व्यष्टि स्थूल (विश्व)
|
आभास चैतन्य
|
ये छे चैतन्याये
और श्रीकृष्ण चैतन्य कुल मिलाके सात चेतनाए प्रकृति छिपाके रखेगा! ये साधारण
मनुष्य को दिखाई नहीं देगा! केवल योगियों को ही दिखाईदेगा!
कोईभी वास्तु का उप्पर सूर्यकिरणों गिरके
परवार्तन करने से ही उस वास्तु दृग्गोचर होगा! इसी को आभास चैतन्य कहते है! वैसा
ही अंतर्मुख हुआ अहंकार दृश्यमान नहीं होगा! परावर्तन होके इन्द्रियों का माध्यम
से परिवर्तन हुआ अहंकार ही व्यक्त होता है! इस आठवा चेतना ही अहम्कारापूरिता
तमोगुणभासित आभासचैतन्य ही साधारण मनुष्य का माम्समयी भौतिक नेत्रों को दिखाईदेगा!
तमोगुण पंचीकृत पंचभूतों में अग्नि, जल,
और पृथ्वी, ये तीनों, भौतिक नेत्रों को
दिखाईदेगा! जल यानी गंगा प्रकृती का प्रतीक है! भीष्म अहंकार का प्रतीक है! गंगा
अपना सात पुत्रों को गंगा में डालदेगा! इन सात चेतानावो को प्रकृति यानी गंगा साधारण नेत्रों को नहीं दिखाईदेगा इति इसा का
तात्पर्य है!
अवस्थाए:
जाग्रतावस्थ: ब्रह्मचैतन्य कारणशरीर में, कारणशरीर का माध्यम
से सूक्ष्मशरीर में, सूक्ष्मशरीर का माध्यम से स्थूलशरीर में प्रवेश करने को, यानी कारण, सूक्ष्म, और स्थूलशरीर तीनों
को चैतन्यवंत करने को जाग्रतावस्था कहते
है!
स्वप्नावस्थ: ब्रह्मचैतन्य
का प्रवेश का हेतु कारणशरीर और सूक्ष्मशरीर दोनों को चैतन्यवंत करने को
स्वप्नावस्था अथवा निद्रावस्था कहते है! जाग्रतावस्था निद्राण में रहता है!
सुषुप्ति अवस्था: गाढा नींद में सूक्ष्म
और स्थूल शरीर दोनों चैतन्यवंत नहीं रहते है! इन्द्रियरहित अविद्या रूपी केवल
कारणशरीर ब्रह्मचैतन्य का प्रवेश का हेतु चैतन्यवंत होने को सुषुप्ति, तुरीय, अथवा अधिचेतनावस्था
कहते है!
सृष्टि का अन्दर का परमात्मा को श्रीकृष्ण
चैतन्य अथवा शुद्ध सत्व माया कहते है! इस सृष्टि का अन्दर का परमात्मचैतन्य,
समिष्टि का कारण, सूक्ष्म, और स्थूल चेतनाए तीनों, व्यष्टि का कारण, सूक्ष्म, और
स्थूल चेतनाए तीनों, कुल सात चेतानावोम में व्यक्त होता है! ये साधारानानेत्रो को दिखाई
नहीं देगा!
कारणशरीर को तमोगुण प्रभाव का हेतु मला,
आवरण दोषों, रजोगुण दोष का हेतु विक्षेपण दोष संभावित होता है!
लालटेन का उप्पर कालिमा लगाने से अन्दर का
ज्योति दिखाई नहीं देगा! वैसा ही तमोगुण अज्ञान नाम का कालिमा यानी मलदोष अमरा अंदर
का परमात्मा को हमको दिखाई नहीं देगा!
अन्धेरा में रज्जू (रस्सी) को देख कर सांप
समझ के भ्रम में पडजाते है! वैसा ही तमोगुण सहित अज्ञान नाम का मनोचंचलिता का हेतु
आवरण दोष संभावित होता है! इस दोष का हेतु हम अपना अंदर का परमात्मा को हम पहचान नहीं
करसकेगा!
रजोगुण का हेतु अहम्कारपूरित विक्षेपणदोष संभावित
होता है! रागाद्वेषों, सुखदुःखों, स्वार्थ, प्रेम, वात्सल्य, दया, संतोष, तृप्ति,
असंतृप्ति, काम, क्रोध, लोभ, मोहा, मद, और मात्सर्य इति अरिषडवर्गो, इत्यादि संभावित
होता है!
इन मला, विक्षेपण, और आवरण दोषों का हेतु कारणशरीर
को 1) देहवासनाये यानी कर्तृत्व, भोक्तृत्वों, 2) धन, पुत्र, और धारा, इति ईषणत्रयम,
कीर्तिवासनाये, 4) लोक वासनाये, संभावित होता है! इन्ही का हेतु अविद्या, भय अथवा अहंकार, इति अस्मिता,
रागद्वेषों, और अपना शरीर का उप्पर मोह इति अभिनिवेश संभावित होता है!
मनुष्य का आदतों को संस्कारों ही कारण है!
संस्कारों का हेतु इन्द्रियप्रभावों का आदत हुआ मनुष्य अपना इच्छाशक्ति को अभिभूत करने
के लिए साधना को उपक्रम करेगा!
1.अन्नमयकोश: पंचीकरण का हेतु स्थूल पंचभूतों से व्यक्तीकरण हुआ 24 तत्वों का साथ उपयुक्त हुआ स्थूलशरीर ही अन्नमयकोश है! पंचज्ञानेंद्रियॉ, पंचकर्मेंद्रियॉ, पंच प्राणों, पंचभूतों का तन्मात्राए, और अंतःकरण, इन्ही को स्थूलशरीर कहते है!
तन्मात्रा का अर्थ शक्ति है! आकाश को शब्द, वायु को स्पर्श, अग्नि को रूप, जल को रस, पृथ्वी को गंध तत्वों होता है!
2. प्राणमयकोश: सूक्ष्मशरीर का अपन्चीक्रुत पंच प्राणों
(प्राण, अपान, व्यान, समान, और उदान), पंचकर्मेंद्रियॉ
(मुँह, पाणी,
पादम्, गुदास्थान, और शिशिनम्), इन्ही को प्राणमयकोश कहते है!
3.मनोमयकोश: सूक्ष्मशरीर का अपन्चीक्रुत पंचज्ञानेंद्रियॉ, मन, और चित्त, इन्ही को मनोमयकोश कहते है!
4. विज्ञानमयकोश: सूक्ष्मशरीर का पंचज्ञानेंद्रियॉ, अहंकार, और निश्चयात्मकबुद्धि,
इन्ही को विज्ञानमयकोश कहते है!
प्राणमय, मनोमय, और विज्ञानमयकोश तीनों को मिलके सूक्ष्मशरीर कहते है!
5. आनंदमयकोश:
त्रिगुणात्मक, मूल अज्ञानरूपी, मोहनस्वरूपी,
अविद्याकवच ही आनंदमय कोशा है!
इसी को कारणशरीर कहते है!
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