क्रियायोगसाधना—विष्णुसहस्रनामम् बीजमंत्रविवरणअर्थ

क्रियायोगसाधना—विष्णुसहस्रनामम्

ॐ श्री योगानन्दगुरु परब्रह्मणेनमः
श्री विष्णुसहस्रनाम का अर्थ परमात्माको अनेक नामो से ध्यान करना! परमात्मा को पाने के लिए दो ही मार्ग है! चंचल मन को स्थिर करो अथवा चंचल श्वास को स्थिर करो! चंचल श्वास को स्थिर करने से चंचल मन  स्थिर हो जायेगा, इसी को प्राणायाम करते है! यह साधको को सुलभ मार्ग है! चंचल मन स्थिर करने से चंचल श्वास स्थिर हो जायेगा! यह ज्ञान मार्ग है! यह कठिनतर मार्ग है! परमात्मा को अनेक नामो से ध्यान करने से मन स्थिर होजायेगा! परमात्मा प्राप्त आसान हो जायेगा!


हरि

सत

तत

सत का अर्थ सत्ताधारी है, सत का ही किरणों ही इस माया करके गोळ मी गिर रहे है! उस गोळ का अन्दर  का किरणों को तत कहते है! वे जब विकेन्द्रीकरण करने समय ॐ करके शब्द का साथ हरी यानी नाश होनेवाला सृष्टि बनता है! समस्त जीवकोटी इस सृष्टि का अंतर्भाग है! है एक ही, वह सत, वह सर्व शक्तिमान, सर्वव्यापी और सर्वज्ञ,  सत चित आनंद, इसी को नाम और रूप जोड़ने से हरी यानी नाश होनेवाला सृष्टि बनता है! सृष्टि का हेतु अनेक जैसा दिखने माया है! माँ का अर्थ नहीं या का अर्थ यदार्थ, यानी माया यदार्थ नहीं है,   पदार्थ कभी भी यदार्थ नहीं है! परमात्मा का स्वप्ना ही माया है! भयानक स्वप्ना स्वप्नाके भयभीत हुआ मनुष्य अपना नेत्रों खोलने से उस भयानक स्वप्ना से विमुक्त होने रीति माया से विमुक्त होने के लिए क्रियायोग साधना आवश्यक है! वह अति दुर्लभ मानवजन्मा में ही साध्य है! सर्व जीवो में मानवजन्मा अति उत्तम है!
सत का अर्थ परमात्मा, परमात्मा को पाने के लिए   हरी से शब्दाब्रह्म ॐ में, पश्चात तत में, तत पश्चात सत में ममैक होना है!
पहले वाला सत एक प्रकाशसहित दिय्या समझो, दूसरा तत एक ग्लास यानी कांच का गोळ समझो, सत करके दिय्या से कुछ किरणों ही कांच का गोळ में प्रवेश करेगा! सत तत में भी होगा, तत का अतीत भी होगा! सत होने से ही तत होगा, 
तीसरा ॐ, सृष्टि का हेतु, टाटा का परावर्तन, कुछ भी छीज बनाने के पहले शब्द आता है, तत पश्चात नेत्र को दिखनेवाला वस्तु उत्पत्ति होता है! यह ही है नाश होनेवाला सृष्टि जिस को हरी कहते है! इसी कारण कोई भी शुभकार्य हरी ॐ तत सत करके आरम्भ करना चाहिए! अथात नाश होने हरी(सृष्टि) से नाशरहित सत में जाना चाहिए!
विष्णु सहस्रनाम में हर एक नाम एक एक बीजमंत्र है! वह बीजमंत्र तत सम्बन्धित चक्र को प्रकाशवंत करता है!  
इन नामो में तत सम्बन्धित चक्र का बीजमंत्र यानी नाम क्या हैएके विवरण दिया हैहै, हमारा इस प्रयत्न को समझियेगा! श्री भगवतगीता में प्रथम श्लोक ‘धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे’ से प्रारंभ होता है! क्षेत्रे क्षेत्रे धर्म कुरु यानी हर एक क्षेत्र में धर्मकुरु! यहाँ क्षेत्र का अर्थ चक्र कर के अन्वय करना है! हर एक चक्र को स्पंदन् करों करके अर्थ है!तब उस उस चक्र जागृती होजाएगा! जागृत हुआ चक्र का अन्धेरा निकल के वह चक्र प्रकाशित होजायेगा! ज्ञानप्राप्ति सुलभतर होजाएगा! परमात्मा का प्राप्ति सुलभतर होजाएगा!
श्रीविष्णु का अर्थ परमात्मा यानी सत, सहस्रनाम करके बीजाक्षरो का माध्यम से चक्रों को स्पंदन करो, उन चक्रों को प्रकाशित करके मन को स्थिर किया साधक उस सत में ममैक होने को उदीश्य किया है इस अद्भुत श्री विष्णु सहस्रानामम!
इन सहस्रानामो में प्रप्रथम श्लोक का नौ नामो पहले चक्र मूलाधारचक्र स्पंदित करता है! अथात स्पंदना पहले चक्र मूलाधारचक्र से ही आरम्भ होता है!
मनुष्य का शरीर में 72,000 सूक्ष्मनाडिया है! इन में इडा पिंगळा और सुषुम्ना अत्यंत मुख्या सूक्ष्मनाडिया है! मेरुदंड में बाये तरफ इडा पिंगळा और सुषुम्ना है! मेरुदंड का दहिने तरफ पिंगळा और मेरुदंड का बीच में सुषुम्ना सूक्ष्मनाडि होता है! मनुष्य का शरीर में 7 चक्रों है! गुदास्थान का पास पहले चक्र मूलाधाराचक्र है! इस का तर्जनी का नाखूनवाला अढय जोड का उप्पर स्वाधिष्ठान चक्र है! नाभी का पीछे मणिपुराचक्र तीसरा है! ह्रदय का पास मेरुदंड में अनाहताचक्र है! कंठ में विशुद्धचक्र पांचवा है! मेडुल्ला केंद्र का पास आज्ञा नेगेटिवचक्र है! भ्रूमध्य में आज्ञा पाजीटिवचक्र है! इस दोनों को मिलाके आज्ञाचक्र है! सिर्फ इसी चक्र में दो polarities ही! बाकी चक्र सभी single polarity चक्र है! यह छठा चक्र है! शिर में ब्रह्मरंध्र का नीचे सातवा चक्र सहस्रार चक्र  है!
मूलाधाराचक्र स्वाधिष्ठानचक्र मणिपुराचक्र अनाहताचक्र विशुद्धचक्र आज्ञाचक्र सहस्रारचक्र यह आरोहणा क्रम है!
सहस्रारचक्र आज्ञाचक्र विशुद्धचक्र अनाहताचक्र मणिपुराचक्र स्वाधिष्ठानचक्र मूलाधाराचक्र यह अवरोहणा क्रम है!
मूलाधाराचक्र स्वाधिष्ठानचक्र मणिपुराचक्र तक व्याप्त हुआ है ब्रह्मग्रंथी, कुरुक्षेत्र और ऋग्वेद काल!
मणिपुराचक्र अनाहताचक्र विशुद्धचक्र तक व्याप्त हुआ है रूद्रग्रंथी, कुरुक्षेत्र - धर्मंक्षेत्र और यजुर्वेद काल!
विशुद्धचक्र आज्ञाचक्र सहस्रारचक्र तक व्याप्त हुआ है विष्णुग्रंथी, धर्मंक्षेत्र और सामवेद काल!
श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम् में कुछ नाम अथवा बीजाक्षरो उच्चारण करने समय कभी आरोहणा क्रम और कभी  अवरोहणा क्रम में दो या तीन चक्र एक ही समाया में स्पंदन करना अवलोकन करसकते है! ब्रह्मग्रंथी रूद्रग्रंथी अथवा विष्णुग्रंथी विच्छेदन होना अवलोकन करसकते है! एक ग्रंथी विच्छेदन होने पश्चात उस विच्छेदन स्थिर होने के लिए एक ही चक्र में यानी मणिपुराचक्र  विशुद्धचक्र अथवा आज्ञाचक्र में स्पंदन होना भी Observe कर सकते है! ग्रंथी विच्छेदन क्रियायोग में अत्यंत मुख्य है!
क्रियायोग:
क्रियायोग में 1)हठयोग(शक्तिपूरका अभ्यासे), 2)लययोग(सोऽहं और ॐ प्रक्रिया), 3) कर्मयोग (सेवा) ,4)मन्त्रयोग (चक्रों में बीजाक्षराध्यान इत्यादि)और5)राजयोग(प्राणायाम पद्धतिया) होते है! सर्व योगो का सम्मेळन ही क्रियायोग है!
साधक पूरब अथवा उत्तर दिशा देखते हुवे मेरुदंडा सीदा रख के गर्दन पीछे मोड़ के रख के बैठना चाहिए! वज्रासन, पद्मासन, सुखासन अथवा कुर्सी में भी बैठसकते है!
ज्ञानमुद्र अथवा लिंगमुद्रा में बैठना चाहिए! थोड़ा सा  रिलाक्स (Relax)होना है! कूटस्थ में दृष्टी लगा के खेचरीमुद्रा में बैठना चाहिए!
1)विश्वं विष्णुः वषट्कारः भूतभव्यभवप्रभुः भूतक्रुद् भूतभ्रुद् भावो भूतात्मा भूतभावनः
विश्वं(साधक क देह) विष्णुः(सर्वशरीर में व्याप्त हुआ) वषट्कारः(यज्ञ)भूतभव्यभवत्प्रभुः(भूत भविष्यत् वर्तामान का प्रभु) भूतक्रुद्(सृष्टिकर्ता) भूतभ्रुद्(प्राणियों का स्थितिकर्ता)  भावो(शुद्धभावना) भूतात्मा(सर्वप्राणों का आत्मा) भूतभावनः(सर्वप्राणों का हेतु).
ए नौ नामो मूलाधारचक्र को स्पंदन करता है!
2)पूतात्मा परमात्मा च मुक्तानाम् परमागतिः अव्ययः पुरुषः साक्षी क्षेत्रज्ञः अक्षर एव च!  
पूतात्मा(शुद्धात्मा) परमात्मा(सत्) च मुक्तानाम्परमागतिः(साधको का परम लक्ष्य) अव्ययः(व्ययरहित) पुरुषः(आदि पुरुष) साक्षी(साक्षी) क्षेत्रज्ञः(इस देह को जाननेवाला) अक्षर(नाशरहित्) एव च!
ए आठ नामो मूलाधारचक्र को स्पंदन करता है!
3)योगः योगविदाम्नेता प्रधानपुरुषेश्वरः नारासिम्हवपुः श्रीमान केशवः पुरुषोत्तमः 
योगः(योग का माध्यम से साध्य है) योगविदाम्नेता(साधको का नायक) प्रधानपुरुषेश्वरः(माया को जीव को प्रभु) नारसिम्हवपुः(नारसिम्हअवतार—साधक नर नहीं सिंह है) श्रीमान(लक्ष्मीपति—शक्तिप्रदाता) केशवः(अन्तः और बहिर्शत्रुवो का नाशक) पुरुषोत्तमः(पुरुषोत्तम)
ए सात नामो मणिपुरचक्र को स्पंदन करता है!
4)सर्वः शर्वः शिवः स्थाणुः भूतादिः निधिरव्ययः संभवः भावनः भर्ता प्रभवः प्रभुः ईश्वरः
सर्वः(सर्व) शर्वः(पवित्र) शिवः(मंगळस्वरूप) स्थाणुः(घर का कम्भा जैसा) भूतादिः(जीवहेतु) निधिरव्ययः(नाशरहित ऐश्वर्य) संभवः(अवतार) भावनः(धर्मबद्ध इच्छाओं को देनेवाला) भर्ता(सहन करनेवाला) प्रभवः(पंचमहाभूतो का हेतु) प्रभुः(जाजमान) ईश्वरः(ईक्षणों श्वर जैसा धरनेवाला)
ए बारह नामो मणिपुरचक्र को स्पंदन करता है! 
5)स्वयम्भूः शम्भुः आदित्यः पुष्कराक्षः महास्वनः अनादिनिधनः दाता विधाता धातुरुत्तमः
स्वयम्भूः(स्वयं प्रकाशक) शम्भुः(पवित्रता देनेवाला) आदित्यः(सूरज) पुष्कराक्षः(ज्ञाननेत्रवाला) महास्वनः(ॐकार ही श्वास है उनका) अनादिनिधनः(रूपरहित) दाता(सर्वहेतु) विधाता(सिद्धान्तकर्ता) धातुरुत्तमः(सूक्ष्मातिसूक्ष्म)
ए नौ नामो मणिपुरचक्र को स्पंदन करता है!
6)अप्रमेयः हृषीकेशः पद्मनाभः अमरप्रभुः विश्वकर्मा मनुः त्वष्टा स्थविष्टः स्थविरोद्भवः
अप्रमेयः(निर्वाचानाराहित) हृषीकेशः(इन्द्रियों का राजा—मन) पद्मनाभः(ज्ञानकेंद्र) अमरप्रभुः(अमरप्रभु) विश्वकर्मा(सृष्टिकर्ता) मनुः(मनुवु) त्वष्टा(पंचभूतों का मिलानेवाला) स्थविष्टः(सर्वोत्तम) स्थविरोद्भवः(अचल)
ए नौ नामो क्रमशः अनाहत मणिपुरचक्र को स्पंदन करता है! ब्रह्मग्रंथि विच्छेदन को सहायता करेगा!
7)अग्राह्यः शाश्वतः कृष्णः लोहिताक्षः प्रतर्दानः प्रभूतः त्रिककुब्धाम पवित्रं मंगळंपरम्
अग्राह्यः(संग्रहरहित) शाश्वतः(शाश्वत) कृष्णः लोहिताक्षः(दुर्मार्गो को कर्मसिद्धांत का माध्यम से दंडन देनेवाला) प्रतर्दानः(लायाकारक) प्रभूतः(कल्मषरहित) त्रिककुब्धाम(स्थूला सूक्ष्म और कारण तीन लोको को भरनेवाला)  पवित्रं(पवित्र) मंगळंपरम्(परम मंगळस्वरुप)
ए नौ नामो क्रमशः अनाहत मणिपुरचक्र को स्पंदन करता है! ब्रह्मग्रंथि विच्छेदन को सहायता करेगा!
8)ईशानः प्राणदः प्राणः ज्येष्ठः श्रेष्टः प्रजापतिः हिरण्यगर्भः भूगर्भः माधवः मधुसूदनः
ईशानः(परिपालनादाक्ष) प्राणदः(प्राणोंका हेतु) प्राणः(प्राणशक्ति) ज्येष्ठः(प्रप्रथम) श्रेष्टः(श्रेष्ट) प्रजापतिः(सृष्टिकर्ता) हिरण्यगर्भः(जगत का उदर) भूगर्भः(पृथ्वी रक्षक) माधवः(साक्षीभूत) मधुसूदनः(साधको का वासना संहारक)
ए दस नामो मणिपुरचक्र को स्पंदन करता है! ब्रह्मग्रंथि विच्छेदन को सहायता करेगा!
9)ईश्वरः विक्रमी धन्वी मेधावी विक्रमः क्रमः अनुत्तमः दुराघर्षः कृतज्ञः कृतिः आत्मवान
ईश्वरः(सर्वशक्तिमान) विक्रमी(सर्वधैर्यवान) धन्वी(मेरुदंड धनुष जैसा धरा हुआ) मेधावी(सर्वज्ञ) विक्रमः(विशिष्ट क्रमशिक्षणायुत) क्रमः(क्रमशिक्षणायुत) अनुत्तमः(असमान) दुराघर्षः(सर्वशक्तिमान) कृतज्ञः(सर्व जाननेवाला) कृतिः(सत्कर्म को फल देनेवाला) आत्मवान(स्वयं सिद्धिमान)
ए ग्यारह नामो विशुद्धचक्र को स्पंदन करता है! 
10)सुरेशः शरणम् शर्मा विश्वरेता प्रजाभवः अहः संवत्सरः व्यालः प्रत्ययः सर्वदार्शनः
सुरेशः(देवो का देव)शरणम्(सर्व प्राणियों को आश्रय देनेवाला) शर्मा(परमानन्दस्वरूप) विश्वरेता(जगत का बीज) प्रजाभवः(सर्वप्राणों का मूल) अहः(प्रकाश) संवत्सरः(समय) व्यालः(अस्पर्शनीय) प्रत्ययः(शुद्ध ज्ञान) सर्वदार्शनः(सर्व जगत को देखनेवाला)
ए दस  नामो विशुद्धचक्र को स्पंदन करता है!
11)अजः सर्वेश्वरः सिद्धः सिद्धिः सर्वादिः अच्युतः वृषाकपिः अमेयात्मा सर्वयोगविनिसृतः
अजः(जन्मरहित) सर्वेश्वरः(प्रभु) सिद्धः(परिपूर्ण) सिद्धिः(आनंद का पराकाष्ट) सर्वादिः(आदिकारक) अच्युतः(नित्यशुद्ध) वृषाकपिः(अद्भुत खेचरीमुद्रा में ध्यान करनेवाला) अमेयात्मा(अनंत) सर्वयोगविनिसृतः (सर्व स्वतंत्र)
ए नौ नामो विशुद्धचक्र को स्पंदन करता है!
12)वसुः वसुमनाः सत्यः समात्मा सस्मितः समः अमोघः पुन्दरीकाक्षः वृषकर्मा वृषाकृतिः 
वसुः(सर्व पदार्थो का सार) वसुमनाः(उत्कृष्ट शुद्ध मन) सत्यः(सत्य) समात्मा(सर्व जीवो में स्थित) सस्मितः(आदरणीय) समः(सर्व जीवो में समान स्थित) अमोघः(नित्य अवसरणीय) पुंडरीकाक्षः(ह्रुदयवासी) वृषकर्मा(उत्कृष्ट कार्मिक) वृषाकृतिः(उत्कृष्ट रूपी)
वसुः वसुमनाः अमोघः नामो मूलाधारचक्र को स्पंदन करता है!
सत्यः समात्मा सस्मितः समः नामो स्वाधिष्ठानचक्र को स्पंदन करता है!
पुंडरीकाक्षः वृषकर्मा वृषाकृतिः मणिपुरचक्र को स्पंदन करता है!
13)रुद्रः बहुशिरः बभ्रुः विश्वयोनिः शुचिश्रवः अमृतः शाश्वतास्थाणुः वरारोहः महातपाः
रुद्रः(दुःखनाशक) बहुशिरः(सर्वचैतन्य) बभ्रुः(राजा) विश्वयोनिः(जगतकारक) शुचिश्रवः(दिव्यनामक) अमृतः(नाशरहिता) शाश्वतास्थाणुः(नित्यास्थितिवंत) वरारोहः(उत्कृष्ट आरोह) महातपाः(उत्कृष्ट तपस्वी)
ए नौ नामो अनाहतचक्र को स्पंदन करता है! 
14)सर्वगः सर्वविद्भानुः विष्वक्सेनः जनार्दनः वेदः वेदवित अव्यंगः वेदांगः वेदवित कविः
सर्वगः(सर्वव्यापी) सर्वविद्भानुः(सर्व प्रकाशक) विष्वक्सेनः(परमात्मा) जनार्दनः(आनंदप्रदाता) वेदः(वेदं) वेदवित(वेदज्ञानी) अव्यंगः(सर्वविधो से समर्थ) वेदांगः(वेदों ही अंग जैसा है) वेदवित(वेदों का जाननेवाला) कविः(ऋषि)
ए दस नामो विशुद्धचक्र को स्पंदन करता है!
15)लोकाध्यक्षः सुराध्यक्षः धर्माध्यक्षः कृताकृतः चतुरात्मा चतुर्व्यूहः चतुर्द्रष्टः चतुर्भुजः
लोकाध्यक्षः(लोकाध्यक्ष) सुराध्यक्षः(देवतावोम्मका अध्यक्ष) धर्माध्यक्षः( धर्मं का अध्यक्ष) कृताकृतः(सृष्टिकर्ता और सृष्टि) चतुरात्मा(जाग्रत सूक्ष्म कारण और तुरीयावस्थों में स्थित) चतुर्व्यूहः(जाग्रत सूक्ष्म कारण और तुरीयावस्थों का हेतु) चतुर्द्रंष्टः(चतुर ज्ञानदंतायुत) चतुर्भुजः(ध्यान का अनुकूल)
ए आठ नामो मणिपुरचक्र को स्पंदन करता है!
16)ब्राजिष्णुः भोजनं भोक्ता सहिष्णुः जगादादिजः अनघः विजयः जेता विश्वयोनिः पुनर्वसुः
ब्राजिष्णुः(स्वयं प्रकाशमान) भोजनं(भोजन) भोक्ता(अनुभवी) सहिष्णुः(सहिष्णुता) जगादादिजः(सृष्टिकर्ता) अनघः(निर्मल) विजयः(विजय) जेता(नित्यविजय) विश्वयोनिः(जगत्कारक) पुनर्वसुः(हमारा में नित्यनिवासी)
ए दस नामो विशुद्धचक्र को स्पंदन करता है!
17)उपेंद्रः वामनः प्रांशुः अमोघः शुचिः ऊर्जितः अतींद्रः संग्रहः सर्गः धृतात्मा नियमः यमः
उपेंद्रः(इन्द्रियों का समीप मेमे रहनेवाला—मन) वामनः(वरिष्ठ मन) प्रांशुः(उन्नत) अमोघः(अध्भुत संकल्पी) शुचिः(नित्य श्द्धिमान) ऊर्जितः(शक्तिमान) अतींद्रः(इन्द्रियों का अतीत) संग्रहः(स्वकीय संकल्पी) सर्गः(सृष्टि) धृतात्मा(आत्मा नियामक) नियमः(नियामक)  यमः(परिपालक)
ए बारह नामो विशुद्धचक्र को स्पंदन करता है!
18)वेद्यः वैद्यः सदायोगी वीरहा माधवः मधुः अतीन्द्रियः महामायः महोत्साहः महाबलः 
वेद्यः(उन को ही जानना है) वैद्यः(वैद्य) सदायोगी(नित्ययोगी) वीरहा(साधक का अन्दर का दुष्टलक्षण संहारक) माधवः(ज्ञानी) मधुः(अमृत) अतीन्द्रियः(इन्द्रियों का अतीत) महामायः(महामाय) महोत्साहः(महोत्साही) महाबलः(महाबलवान्)   
ए दस् नामो विशुद्धचक्र को स्पंदन करता है!
19)महाबुद्धिः महावीर्यः महाशक्तिः महाद्यतिः  अनिर्देश्यवापुः श्रीमान अमेयात्मा महाद्रिध्रुक 
महाबुद्धिः(सर्वज्ञ) महावीर्यः(महावीर्) महाशक्तिः(सर्वशक्तिमान) महाद्यतिः(स्वयं प्रकाशक)  अनिर्देश्यवापुः (रूपरहित) श्रीमान(पवित्रमनस्) अमेयात्मा(परमात्मा) महाद्रिध्रुक(महाबलावान)
ए आठ नामो विशुद्धचक्र को स्पंदन करता है!
20)महेष्वासः महीभर्ता श्रीनिवासः सताम्गतिः अनिरुद्धः सुरानन्दः गोविन्दः गोविदाम्पतिः 
महेष्वासः(महान मेरुदंडा धरनेवाला) महीभर्ता(भूमि को भरनेवाला) श्रीनिवासः(पवित्रनिवासी) सताम्गतिः(साधको का अंतिम लक्ष्य) अनिरुद्धः(सर्वो चाहनेवाला) सुरानन्दः(देवातावो का आनंद देनेवाला) गोविन्दः(सर्वभूतो का आधार) गोविदाम्पतिः(इन्द्रियों का राजा—मनस्)
ए आठ नामो विशुद्धचक्र को स्पंदन करता है!
21)मरीचिःदमनःहंसः सुपर्णः भुजगोत्तमः हिरण्यनाभः सुतपाः पद्मनाभः प्रजापतिः
मरीचिः(प्रकाशमान)दमनः(दुश्तानाशक)हंसः(परमात्मा) सुपर्णः(सुन्दर दल्वाला सहस्रारचक्र) भुजगोत्तमः(इन्द्रियों का अतीत) हिरण्यनाभः(ज्ञानकेंद्र) सुतपाः(तपस्वी) पद्मनाभः(ज्ञान ही नाभी है) प्रजापतिः(जीवो का भर्ता) 
ए नौ नामो विशुद्धचक्र को स्पंदन करता है!
22)अमृत्युः सर्वदृक् सिंहः संघाता संधिमान् स्थिरः अजः दुर्मर्षणः शास्ता विश्रुतात्मा सुरारिहा
अमृत्युः(मरानाराहित) सर्वदृक्(सर्व को देखनेवाला) सिंहः(लाकर्ता) संघाता(परस्पर सम्बंधयुता) संधिमान्(आनंदस्वरूप) स्थिरः(स्थिर) अजः(सृष्टिकर्ता) दुर्मर्षणः(अजेय) शास्ता(शासक) विश्रुतात्मा(परमात्मा) सुरारिहा(दुष्ठसम्हारक)
अमृत्युः(एक नाम) मूलाधारचक्र को स्पंदन करता है!
सर्वदृक् सिंहः (दो नाम) अनाहतचक्र को स्पंदन करता है! ब्रह्मग्रंथी विच्छेदन के लिए सहायता करता है!
संघाता संधिमान् स्थिरः अजः दुर्मर्षणः शास्ता विश्रुतात्मा सुरारिहा आठ नाम विशुद्धचक्र को स्पंदन करता है!
23)गुरुः गुरुतमः धाम सत्यः सत्यपराक्रमः निमिषः अनिमिषः स्रग्वी वाचस्पतिरुदारघीः
गुरुः(आदिगुरू) गुरुतमः(उत्तमगुरु) धाम(साधको का लक्ष्य) सत्यः(सत्य) सत्यपराक्रमः(असलीपराक्रमी) निमिषः(ध्याननिमज्ञ साधक का अर्धनिमीलिता नेत्रों) अनिमिषः((ध्याननिमज्ञ साधक का खोलाहुआ  नेत्रों) स्रग्वी(दिव्यमाला धरनेवाला) वाचस्पतिरुदारघीः(पवित्र सत्संग वाचानासमर्थ)
ए नौ नामो विशुद्धचक्र को स्पंदन करता है!
24)अग्रणीःग्रामणीः श्रीमान न्यायः नेता समीरिणःसहस्रमूर्धा विश्वात्मा सहस्राक्षः सहस्रपात्
अग्रणीः(दिशानिर्देशक)ग्रामणीः(नायक) श्रीमान(पवित्र मनस) न्यायः(न्यायरूपी) नेता(नायक) समीरिणः(न्याय प्रचारक)सहस्रमूर्धा(सहस्र जाननेवाला) विश्वात्मा(परमात्मा) सहस्राक्षः(चारो ओर देखनेवाला) सहस्रपात् (सर्वशक्ति मान)
ए दस नामो विशुद्धचक्र को स्पंदन करता है!
25)आवर्तानः निवृत्तात्मा संवृतः सम्प्रमर्दनः अहःसंवर्तकः वह्निः अनिलः धरणीधरः
आवर्तानः(कालयंत्र) निवृत्तात्मा(स्थिर) संवृतः(बाहर नहीं दिखानेवाला) सम्प्रमर्दनः(अहम्कारियो को दंडन देनेवाला) अहःसंवर्तकः(सूरज) वह्निः(अग्निः) अनिलः(मुख्याप्राण) धरणीधरः(पृथ्वी को भरनेवाला)
ए नौ नामो विशुद्धचक्र को स्पंदन करता है!
26)सुप्रसादः प्रसन्नात्मा विश्वध्रुग् विश्वभुक् विभुः सत्कर्ता सत्कृतः साधुः जह्नुःनारायणः नरः
सुप्रसादः(उत्तम अनुग्रह प्रदान करनेवाला)प्रसन्नात्मा(आनंदमयस्वरुप) विश्वध्रुग्(जगत सहायक) विश्वभुक्(सर्व को भोजन करनेवाला) विभुः(परमात्मा) सत्कर्ता(सत्कर्म करनेवाला) सत्कृतः(सत्पुरुषो का ध्येय)  साधुः(साधु) जह्नुः(नायक)नारायणः(सर्वव्यापी) नरः(दिशा निर्देशक)
ए ग्यारह नामो विशुद्धचक्र को स्पंदन करता है!
27)असंख्येयःअप्रमेयात्मा शिष्टकृत् शुचिः विशिष्टः सिद्दार्थः सिद्धसंकल्पः सिद्धिदः सिद्धिसाधनः 
असंख्येयः(अनंतरूपी)अप्रमेयात्मा(प्रमेयाराहित)विशिष्टः(विशिष्ट)शिष्टकृत्(शिष्टरक्षक)शुचिः(नित्यशुचिवन्त)सिद्दार्थः(परिपूर्ण) सिद्धसंकल्पः(परिपूर्ण संकल्पी) सिद्धिदः(सिद्धिप्रदाता) सिद्धिसाधनः(परमानंद मार्ग निर्देशक)
असंख्येयःअप्रमेयात्मा मूलाधारचक्र को स्पंदन करता है!
शिष्टकृत् शुचिः विशिष्टः विशुद्धचक्र को स्पंदन करता है!
सिद्दार्थः सिद्धसंकल्पः सिद्धिदः सिद्धिसाधनः अनाहतचक्र को स्पंदन करता है! ब्रह्मग्रंथि विच्छेदन को सहायता करता है!
28)वृषाही वृषभः विष्णुः वृषपर्वा वृषोदरः वर्धनः वर्धमानः विविक्तः श्रुतिसागरः
वृषाही(जगत धर्मपरिपालक) वृषभः(अनुग्रहप्रदाता) विष्णुः(सर्वव्यापी) वृषपर्वा(अंतिमलक्ष्य) वृषोदरः(महापेट्) वर्धनः(जीवो का आहाराप्रदाता) वर्धमानः(परमात्मा) विविक्तः(चंचलरहित) श्रुतिसागरः(वेदो का सागर)
ए नौ नामो विशुद्धचक्र को स्पंदन करता है!
29)सुभुजः दुर्धारह वाग्मी महेन्द्रः वसुदः वसुः नैकरूपः ब्रुहद्रूपः शिपिविष्टः प्रकाशनः
सुभुजः(सुशक्तिमान) दुर्धारह(परिमाणरहित) वाग्मी(वरिष्ट कीर्तिमान) महेन्द्रः(इन्द्रियों का राजा—मानस) वसुदः(ऐश्वर्यशाली) वसुः(अन्तर्यामी) नैकरूपः(रूपरहित) ब्रुहद्रूपः(अनेकरूपी) शिपिविष्टः(सूरज को भी प्रकाश देनेवाला) प्रकाशनः(सब को प्रकाशित करनेवाला)
ए दस नामो मणिपुरचक्र को स्पंदन करता है!
30)ओजस्तेजोद्युतिधरः प्रकाशात्मा प्रतापनः ऋद्धःस्पष्टाक्षरः मन्त्रः चंद्रांशुः भास्करद्युतिः
ओजस्तेजोद्युतिधरः(सत्यम शिवम् सुन्दरम) प्रकाशात्मा(स्वयंप्रकाशी) प्रतापनः(सर्वशक्तिमान)ऋद्धः(सर्व ऐश्वर्यमान) स्पष्टाक्षरः(ॐकार) मन्त्रः(पवित्र वेदमंत्र) चंद्रांशुः(शीतल प्रकाश) भास्करद्युतिः(सूर्यप्रकाशातीत)
ओजस्तेजोद्युतिधरः मूलाधार स्वाधिष्ठान मणिपुर और अनाहत चक्रों को क्रमशः स्पंदन करेगा! ब्रह्मग्रंथि विच्छेदन को सहायता करेगा!  
प्रतापनः ऋद्धःस्पष्टाक्षरः मन्त्रः चंद्रांशुः भास्करद्युतिः छे मंत्रों अनाहत चक्र को स्पंदन करेगा!
31) अमृतांशूद्भवः भानुः शशबिंदुः सुरेश्वरः औषधं जगतस्सेतुः सत्यधर्मपराक्रमः
अमृतांशूद्भवः(नाशरहित) भानुः(स्वयंप्रकाशी) शशबिंदुः(शीतल शक्ति) सुरेश्वरः(देवातावो का प्रभु) औषधं(सर्व दुःखों क औषध) जगतस्सेतुः(जगत/साधक और परमात्मा का सेतु) सत्यधर्मपराक्रमः(सत्य और धर्म को पराक्रमी प्रचारक)
अमृतांशूद्भवः मंत्र मूलाधार स्वाधिष्ठान मणिपुर और विशुद्ध चक्रों को क्रमशः स्पंदन करेगा! ब्रह्मा और रूद्र ग्रंथियों का विच्छेदन करेगा!
भानुः शशबिंदुः सुरेश्वरः औषधं जगतस्सेतुः सत्यधर्मपराक्रमः छे मंत्र विशुद्ध चक्र को स्पंदन करेगा! 
32)भूतभव्यभवन्नायः पवनः पावनः अनलः कामहा कामकृत् कान्तः कामः कामप्रदः प्रभुः  
भूतभव्यभवन्नायः(भूताभाविश्यत वर्तमानो का प्रभु)पवनः(प्राणशक्ति)पावनः(पवित्रस्वरूपी)अनलः(मुख्याप्राण्) कामहा(साधको का इच्छावो का नाश कर के मुक्ति देनेवाला)  कामकृत्(धर्मबद्ध इच्छावो को देनेवाला) कान्तः(सौंदर्य का पराकाष्ट) कामः(सर्वो का इष्ट) कामप्रदः(साधको का  प्रभुः धर्मबद्ध इच्छावो को देनेवाला) प्रभुः( सर्व जीवरासी का प्रभु)   
ए दस नाम विशुद्ध चक्र को स्पंदन करेगा! 
33) युगादिकृत् युगावर्तः नैकमायः महाशनः अदृश्यः व्यक्तरूपः सहस्रजित् अनंतजित्
युगादिकृत्(युगों का सृष्टिकर्ता) युगावर्तः(युगों का परिपालक) नैकमायः(अनंतशक्तिमान) महाशनः(महाभक्षक) अदृश्यः(ग्राह्यरहित) व्यक्तरूपः(साधको का व्यक्त होनेवाला) सहस्रजित्(अनेक दुश्ताशाक्तियो का विजेता) अनंतजित्(नित्यविजेता)
ए आठ नाम क्रमशः अनाहत मणिपुर चक्र का स्पंदन करेगा! ब्रह्मग्रंथि विच्छेदन का सहायता करेगा!
34)इष्टः विशिष्टः शिष्टेष्टःशिखंडी नहुषःवृषः क्रोधहा क्रोधकृत्कर्ता विश्ववाहुः महीधरः
इष्टः(प्रेम की भंडार) विशिष्टः(विशिष्ट) शिष्टेष्टः(साधको का प्रेमी)शिखंडी(तटस्थ) नहुषः(माया का माध्यम से जीवो को वश करनेवाला)वृषः(धर्मावतार) क्रोधहा(क्रोधविनाशी) क्रोधकृत्कर्ता(दुष्टसम्हारक) विश्ववाहुः(अनंत शक्तिमान)महीधरः(पृथ्वी को भरनेवाला)
ए दस नाम मणिपुरचक्र को स्पंदन करेगा!
35)अच्युतः प्रथितः प्राणः प्राणदःवासवानुजः अपांनिधिः अधिष्ठानम् अप्रमत्तः प्रतिष्ठितः
अच्युतः(अस्पर्शनीय) प्रथितः(आदिपुरुष) प्राणः(स्थितिहेतु) प्राणदः(बलहेतु)वासवानुजः(मन का भय्या) अपांनिधिः(समुद्र) अधिष्ठानम्(मूलकारक) अप्रमत्तः(सदा जागरूकी)प्रतिष्ठितः(स्वयं स्थितिवंत)
ए नौ नाम स्वाधिष्ठानचक्र को स्पंदन करेगा!  
36)स्कंदः स्कंदधरःधुर्यःवरदःवायुवाहनः वासुदेवः बृहद्भानुः आदिदेवः पुरंदरः
स्कंदः(साधक क आत्मनिग्रहशक्ति) स्कंदधरः(आत्मनिग्रहशक्ति को धरनेवाला)धुर्यः(सर्व को भरनेवाला) वरदः(धर्मबद्ध वरों का देनेवाला) वायुवाहनः(सात वायुवो का प्रतिनिथि) वासुदेवः(वासुदेव) बृहद्भानुः(उत्तमसूर्य) आदिदेवः(आदिदेव) पुरंदरः(स्थूला सूक्ष्म और कारण शरीर में रहनेवाले)
स्कंदः स्कंदधरःधुर्यःवरदः तीन नाम स्वाधिष्ठानचक्र को स्पंदन करेगा!
वायुवाहनः वासुदेवः दो नाम मणिपुरचक्र को स्पंदन करेगा!
बृहद्भानुः आदिदेवः पुरंदरः तीन नाम अनाहतचक्र को स्पंदन करेगा!
37)अशोकः तारणः तारः शूरः शौरिः जनेश्वरः अनुकूलः शतावर्तः पद्मी पद्मा निमेक्षणः
अशोकः(शोकरहित) तारणः(साधको को भवसागर से पार करनेवाला) तारः(रक्षक) शूरः(धैर्यवान) शौरिः(शौर्यवान्) जनेश्वरः(जीवो का प्रभु) अनुकूलः(साधको को अनुकूल) शतावर्तः(अनंत अवतारी) पद्मी(पद्म जैसा संसार से विमुक्त हुआ साधक) पद्मा(संसार से विमुक्त हुआ साधक) निमेक्षणः(संसार का उप्पर निर्लिप्तता) 
ए दस नाम अनाहतचक्र को स्पंदन करेगा! 
38)पद्मनाभः अरविंदाक्षः पद्मगर्भः शरीरभृत् महार्धिः ऋद्धः वृद्धात्मा महाक्षः गरुडध्वजः
पद्मनाभः(ज्ञान नाभि)  अरविंदाक्षः(ज्ञाननेत्र) पद्मगर्भः(ज्ञान ह्रदय) शरीरभृत्(शरीर को स्थितिवंत करनेवाले) महार्धिः(अद्भुत प्रकाशी) ऋद्धः(सर्वव्यापी) वृद्धात्मा(परमात्मा) महाक्षः(महानेत्र) गरुडध्वजः(ज्ञानारूढ)   
ए दस नाम विशुद्धचक्र को स्पंदन करेगा! 
39)अतुलः शरभः भीमः समयज्ञः हविर्हरिः सर्वलक्षणलक्षण्यः लक्ष्मीवान् समितिंजयः
अतुलः(असमान) शरभः(स्वयंप्रकाशी) भीमः(भयंकरस्वरूपी) समयज्ञः(समय को पहचाननेवाला) हविर्हरिः(हविश को भोजन करनेवाला) सर्वलक्षणलक्षण्यः(विचारणा से साध्य होनेवाला) लक्ष्मीवान्(शक्ति को भरनेवाला) समितिंजयः(नित्यजय)
 ए आठ नाम अनाहतचक्र को स्पंदन करेगा!
40)विक्षरः रोहितः मार्गः हेतुः दामोदरः सहः महीधरः महाभागः वेगवान् अमिताशनः
विक्षरः(अविनाशी) रोहितः(ज्ञानी) मार्गः(मार्गदर्शी) हेतुः(जगत्कारक) दामोदरः(परमात्मा) सहः(सर्व वस्तुवो को सहनेवाला) महीधरः(पृथ्वी आधारशक्ति) महाभागः(नित्य ऐश्वर्यशाली) वेगवान्(अमितावेग) अमिताशनः(अमितभक्षक)
ए दस नाम अनाहतचक्र को स्पंदन करेगा!
41)उद्भवः क्षोभणः देवः श्रीगर्भः परमेश्वरः करणं कारणं कर्ता विकर्ता गहनः गुहः
उद्भवः(मूलहेतु) क्षोभणः(दुष्टों कोक्षोभ देनेवाला)  देवः(परमात्मा) श्रीगर्भः(पवित्र हृदयी) परमेश्वरः करणं(निमित्तकारण) कारणं(द्रव्यकारण) कर्ता(करनेवाला) विकर्ता(विशिष्ट कार्य करनेवाला)  गहनः(योगसाधना अति रहस्य है—रहस्य का अर्थ रहित हास्य यानी हास्य रहित है)  गुहः(माया से आवृत है)
ए ग्यारह नाम विशुद्धचक्र को स्पंदन करेगा!  
42)व्यवसायःव्यवस्थानःसंस्थानःस्थानदः ध्रुवः परिर्धिः परमस्पष्टः तुष्टः पुष्टः शुभेक्षणः  
व्यवसायः(निश्चित))व्यवस्थानः(आधार)संस्थानः(सर्व का स्थान)स्थानदः(योगो का स्थान देनेवाला) ध्रुवः (स्थिर स्वरूपी) परिर्धिः(उत्तम कीर्तिवान) परमस्पष्टः(अत्यंत स्पस्ट)  तुष्टः(नित्य संतोषी) पुष्टः((नित्यतृप्ती) शुभेक्षणः(शुभ दृष्टी))      
ए दस नाम अनाहतचक्र को स्पंदन करेगा!
43)रामः विरामः विरजः मार्गः नेयः नयः अनयः वीरः शक्तिमताम्श्रेष्टःधर्मः धर्मविदुत्तमः
रामः(नित्यानन्दमयी) विरामः(विशिष्ट आरामी) विरजः(कामरहित) मार्गः(अमरत्वा को मार्ग दिखानेवाला) नेयः(मार्गदर्शी) नयः(नायक) अनयः(नायकरहित) वीरः(वीर) शक्तिमताम्श्रेष्टः(शक्तिमानो से शक्तिमान) धर्मः(धर्म स्वरूपी)धर्मविदुत्तमः(धर्मयुक्तज्ञानी)
रामः विरामः विरजः तीन नाम क्रमशः विशुद्ध अनाहत और मणिपुर चक्रों को स्पंदन करेगा! ब्रह्मग्रंथी  विच्छेदन के लिए सहायता करेगा!
मार्गः नेयः नयः अनयः वीरः शक्तिमताम्श्रेष्टःधर्मः धर्मविदुत्तमः आठ नाम मणिपुरचक्र को स्पंदन करेगा! ब्रह्मग्रंथी  विच्छेदन दृढ़ करने में सहायता करेगा!
44)वैकुंठःपुरुषः प्राणः प्रणादः प्रणवः पृथुः हिरण्यगर्भः शत्रुघ्नः व्याप्तः वायुः अधोक्षजः
वैकुंठःपुरुषः(पंचमहाभूतो को मिलाके सृष्टि व्यक्तीकरण कारक) प्राणः(प्राणशक्ति) प्रणादः(सृष्टि स्थिति लय करक) प्रणवः(ॐकार) पृथुः(व्याप्तहुआ) हिरण्यगर्भः(सृष्टिकर्ता) शत्रुघ्नः(दुष्टसंहारक) व्याप्तः(सर्वव्यापी) वायुः(प्राणशक्ति प्रदाता)) अधोक्षजः(बलप्रदाता)
ए ग्यारह नाम मणिपुरचक्र को स्पंदन करेगा!
45)ऋतुःसुदर्शनः कालः परमेष्टीपरिग्रहः उग्रः संवत्सरः दक्षः विश्रामः विश्वदक्षिणः
ऋतुः(ऋतुओं का प्रभु)सुदर्शनः(सहस्रारचक्र) कालः(काल) परमेष्टी(अनंतकीर्तिकेंद्र)परिग्रहः(साधको का नकारात्मक शक्तियों को परिग्रह करनेवाला)  उग्रः(दुष्टों का उग्रस्वरूपी) संवत्सरः(काल) दक्षः(दक्ष) विश्रामः(विशिष्ट श्रामिक) विश्वदक्षिणः (उत्कृष्ट)   
ए दस नाम अनाहतचक्र को स्पंदन करेगा! ब्रह्मग्रंथी विच्छेदन के लिए सहायता करेगा!  
46)विस्तारः स्थावारः स्थाणुः प्रमाणं बीजमव्ययम् अर्थः अनर्थः महाभोगः महाधनः
विस्तारः(अनंताव्यापी) स्थावारःस्थाणुः(स्थिर और अस्थिर)  प्रमाणं(ज्ञान का मार्ग) बीजमव्ययम्(अव्यय बीज) अर्थः(जीवित परमार्थ) अनर्थः(परिपूर्ण) महाभोगः(महाभोगी) महाधनः(महाशक्तिमान)
ए नौ नाम विशुद्धचक्र को स्पंदन करेगा! 
47)अनिर्विण्णः स्थविष्ठः अभूः धर्मयूपः महामुखः नक्षत्रनेमी क्षमः क्षामः समीहनः
अनिर्विण्णः(अद्वेशी) स्थविष्ठः(कुल मिलाके केवल परमात्मा ही है)  अभूः(जन्मरहित) धर्मयूपः(धर्मं का सार) महामुखः(अनेकमुखी) नक्षत्रनेमी(नक्षत्रकेंद्र) क्षमः(क्षमा स्वरुप) क्षामः(प्रळय में भी रहनेवाला) समीहनः(साधको का क्षेम चाहनेवाला)
ए दस नाम क्रमशः अवरोहणा क्रम में विशुद्ध और अनाहतचक्र को स्पंदन करेगा! रुद्रग्रंथी विच्छेदन का सहायता करेगा!
48)यज्ञः ईज्यः महेज्यः क्रतुः सत्रं सतां गतिः सर्वदर्शी विमुक्तात्मा सर्वज्ञः ज्ञानमुत्तमम्
यज्ञः(यज्ञ)ईज्यः(क्रिया यज्ञ का माध्यम से पुकारने से दर्शनदेनेवाला) महेज्यः(उत्तमोत्तम आराध्य) क्रतुः(काम क्रोध लोभ मोह मदा मात्सर्य करके अरिषड्वर्गो को बलि देनेवाला क्रिया यज्ञ)   सत्रं(सर्वो को छाया देनेवाला) सतांगतिः(साधको का लक्ष्य) सर्वदर्शी(सर्व जाननेवाला) विमुक्तात्मा(मुक्त) सर्वज्ञः(सर्वज्ञ) ज्ञानमुत्तमम् (उत्तमोत्तमज्ञान)
ए दस नाम क्रमशः अवरोहणा क्रम में अनाहत और मणिपुरचक्र को स्पंदन करेगा! रुद्रग्रंथी विच्छेदन का सहायता करेगा! 
49)सुब्रतः सुमुखः सूक्ष्मः सुघोषः सुखदः सुहृत् मनोहरः जितक्रोधः वीरबाहुः विदारणः  
सुब्रतः(परिशुद्ध) सुमुखः(अपारदय) सूक्ष्मः(सूक्ष्म) सुघोषः(ॐकार) सुखदः(सुखप्रदात) सुहृत्(पवित्रमित्र) मनोहरः(सुन्दरमूर्ति) जितक्रोधः(क्रोध को जाया किया) वीरबाहुः(बलवान) विदारणः(दुष्टसंहारक)
ए दस नाम क्रमशः अवरोहणा क्रम में अनाहत और मणिपुरचक्र को स्पंदन करेगा! रुद्रग्रंथी विच्छेदन का सहायता करेगा! 
50)स्वापनः स्ववशः व्यापी नैकात्मा नैककर्मकृत् वत्सरः वत्सलः वत्सी रत्नगार्भः धनेश्वरः
स्वापनः(अद्भुत निषा) स्ववशः(वशरहित) व्यापी(सर्वव्यापी) नैकात्मा(अनंतात्मा) नैककर्मकृत्(अनंता कर्म करनेवाला) वत्सरः(परमात्मा) वत्सलः(दयाळू) वत्सी(जगत्पिता) रत्नगर्भः(विवेकी) धनेश्वरः(सर्वशक्तिमान)
ए दस नाम क्रमशः अवरोहणा क्रम में अनाहत और मणिपुरचक्र को स्पंदन करेगा! रुद्रग्रंथी विच्छेदन का सहायता करेगा!
51)धर्मगुप् धर्मकृत् धर्मी सत् असत् क्ष्ररं अक्षरम् अविज्ञाता सहस्राम्शु विधाता कृतलक्षणः
धर्मगुप्(धर्मरक्षक) धर्मकृत्((धर्मकर्ता) धर्मी(धर्मरक्षक) सत्(सत्) असत्(जगत) क्ष्ररं(नाश होने छेज) अक्षरम्((नाश नही होने छेज) अविज्ञाता(तर्का का अतीत) सहस्राम्शु(सहस्रदळोवाला)  विधाता(ब्रह्मा) कृतलक्षणः(वेदकर्ता)
ए ग्यारह नाम क्रमशः अवरोहणा क्रम में विशुद्ध और मणिपुरचक्र को स्पंदन करेगा! रुद्रग्रंथी विच्छेदन का सहायता करेगा!  
52)गमस्तिनेभिःसत्वस्थःसिंहः भूतमहेश्वरः आदिदेवः महादेवः देवेशः देवभृद्गुरुः 
गमस्तिनेभिः(चेतना प्रकाश)सत्वस्थः(सात्विक)सिंहः(वीर्य नियंत्रण किया साधक) भूतमहेश्वरः(जीवो का प्रभु) आदिदेवः(प्रथमदेवता)महादेवः(देवतावोकाप्रभु)देवभृद्गुरुः(आत्मबोधक)
ए आठ नाम क्रमशः अवरोहणा क्रम में मणिपुर स्वाधिष्टान और मूलाधार चक्रों का स्पंदन करेगा! ब्रह्मग्रंथी विच्छेदन का सहायता करेगा!
53)उत्तरः गोपतिः गोप्ता ज्ञानगाम्यः पुरातनः शरीरभूतबृत् भोक्ता कपीन्द्रः भूरिदक्षिणः
उत्तरः(उत्तमोत्तम) गोपतिः(इन्द्रियों का राजा—मनस) गोप्ता(जीवरक्षक) ज्ञानगम्यः(ज्ञान का गम्य) पुरातनः(आदिपुरुष) शरीरभूतबृत्(शरीरापोषणकर्ता) भोक्ता(भोजन आस्वादन करनेवाला) कपीन्द्रः(खेचरीमुद्रा लगाके ध्यान करने क्रियायोग साधक)  भूरिदक्षिणः(साधको को धर्मबद्धा इच्छाओं को देनेवाला)
ए नौ नाम क्रमशः अवरोहणा क्रम में विशुद्ध और  मणिपुर चक्रों का स्पंदन करेगा! रूद्रग्रंथी विच्छेदन का सहायता करेगा!  
54)सोमपःअमृतपःसोमःपुरुजित् पुरुसत्तमः विनयः जयः सत्यसंधः दाशार्हः सात्वातां पतिः
सोमपः(सोमपान करनेवाला)अमृतपः(नाशरहित)सोमः(चन्द्र)पुरुजित्(साधको का अन्तःशात्रुवो को जितनेवाला) पुरुसत्तमः(पुरुषोत्तम) विनयः(अच्छा नायक) जयः(जय) सत्यसंधः(सत्यपालन करनेवाला) दाशार्हः(आहूतो को पानेवाला)सात्वतांपतिः(सात्विकोंकाप्रभु)
ए दस नाम  मणिपुरचक्र का स्पंदन करेगा!  
55)जीवः विनयितासाक्षी मुकुंदः अमितविक्रमः अंबोनिधिः अनंतात्मा महोदाधिशयः अंतकः
जीवः(जीव) विनयितासाक्षी(नम्रतास्वरूप) मुकुंदः(मुक्तिप्रदाता) अमितविक्रमः(अमित क्रमशिक्षणासहित) अंबोनिधिः (समुद्र) अनंतात्मा(परमात्मा) महोदाधिशयः(ज्ञानसमुद्र) अंतकः(यम)
ए आठ नाम  मणिपुरचक्र का स्पंदन करेगा!  
56)अजः महार्हः स्वाभाव्यः जितामित्रः प्रमोदनः आनन्दः नंदनः नंदः सत्यधर्म त्रिविक्रमः
अजः(जन्मरहित) महार्हः(महागौरव का अर्ह) स्वाभाव्यः(कारणरहित) जितामित्रः(साधक का अंतः और बहिर शतृवो का जिताने मित्र)  प्रमोदनः(नित्यसंतोष प्रदान करनेवाला) आनन्दः(शुद्ध आनंद) नंदनः(आनंदप्रदाता) नंदः(मुक्त) सत्यधर्म(सत्य और धर्म पालन करनेवाला) त्रिविक्रमः(स्थूल सूक्ष्म और कारण लोको का जीतनेवाला)
ए दस नाम  मणिपुरचक्र का स्पंदन करेगा!  
57)महर्षिः कपिलाचार्यः कृतज्ञः मेदिनेपतिः त्रिपदः त्रिदशाध्यक्षः महाशृंगः कृतांतकृत्
महर्षिःकपिलाचार्यः(महर्षिःकपिलाचार्य—ज्ञानप्रदात) कृतज्ञः(क्रियायोगसाधना को आदरण करनेवाला)  मेदिनेपतिः (पृथ्वी आधार शक्ति)  त्रिपदः(स्थूल सूक्ष्म और कारण लोको कर के तीन कदम उन का पाद) त्रिदशाध्यक्षः(स्थूल सूक्ष्म और सुषुप्ति अवस्थों का अध्यक्ष) महाशृंगः(महाशक्तिमान) कृतांतकृत्(माया को अपना अधीन में रखनेवाला)
ए सात नाम क्रमशः अवरोहणा क्रम में विशुद्ध और  अनाहत चक्रों का स्पंदन करेगा! रूद्रग्रंथी विच्छेदन का सहायता करेगा!

58)महावाराहः गोविम्दः सुषेणः कनाकाम्गदी गुह्यः गभीरः गहनः गुप्तः चक्रगदाधरः
महावाराहः(महावरिष्ट मार्ग) गोविम्दः(मनस) सुषेणः(अच्छ सेना) कनाकाम्गदी(ॐकार) गुह्यः(क्रियायोगसाधना) गभीरः(प्रमाण का अतीत) गहनः(अस्पर्शनीय) गुप्तः(रहस्यमय) चक्रगदाधरः(सहस्रारचक्रसहित)
ए नौ नाम क्रमशः अवरोहणा क्रम में विशुद्ध और  अनाहत चक्रों का स्पंदन करेगा! रूद्रग्रंथी विच्छेदन का सहायता करेगा!
59)वेधाः स्वान्गः अजितः कृष्णः दृढः संकर्षणोच्युतः वरुणः वारुणः वृक्षः पुष्कराक्षः महामनाः
वेधाः(सृष्टिकर्ता) स्वान्गः(निमित्त द्रव्य साधना कारक) अजितः(इन को कोइ जित नहीं सकता) कृष्णः(आकर्षक) दृढः(निश्चित) संकर्षणोच्युतः(परिवर्तन रहित ब्रह्मांड भर्ता)  वरुणः((उदयभानु) वारुणः(ब्रह्मांडचेतन) वृक्षः(ब्रह्मांड वृक्ष) पुष्कराक्षः(सर्वव्यापी) महामनाः(महादयाळु)
ए ग्यारह नाम मूलाधारचक्र का स्पंदन करेगा! 
60)भगवान् भगहा आनंदी वनमाली हलायुधः आदित्यः ज्योतिरादित्यः सहिष्णुः गतिसत्तमः 
भगवान्(परमात्मा) भगहा(प्रळयान्तक) आनंदी(आनंदस्वरूपी) वनमाली(वैजयंतीमाला को धरनेवाला) हलायुधः(बलराम) आदित्यः(सूरज) ज्योतिरादित्यः(सूरज का प्रकाश) सहिष्णुः(सर्व को सहननेवाला) गतिसत्तमः(क्रियायोगासाधाको का अन्तिमलक्ष्य)
ए नौ नाम क्रमशः अवरोहणा क्रम में  अनाहत और मणिपुर चक्रों का स्पंदन करेगा! ब्रह्माग्रंथी विच्छेदन का सहायता करेगा!  
61)सुधन्वा खंडपरशुः दारुणः द्रविणप्रदः दिवःस्पृक् सर्वदृग्व्यासः वाचस्पतिरयोनिजः
सुधन्वा(साधक का सीदा रखा हुआ मेरुदंड) खंडपरशुः(ज्ञान परशुराम) दारुणः(दुष्टसंहारक) द्रविणप्रदः(भक्तो का ऐश्वर्यप्रदाता) दिवःस्पृक्(आकाश पूरा व्याप्त हुआ) सर्वदृग्व्यासः(सर्वज्ञ व्यास महर्षि)  वाचस्पतिरयोनिजः (जन्मरहित ज्ञानि)
ए सात नाम क्रमशः अवरोहणा क्रम में  अनाहत और मणिपुर चक्रों का स्पंदन करेगा! ब्रह्माग्रंथी विच्छेदन का सहायता करेगा!  
62)त्रिसामा सामगः साम निर्वाणं भेषजं भिषक् सन्यासकृत् शमः शान्तः निष्ठा शान्तिः परायणं
त्रिसामातीन वेदों में पूजनीय) सामगः(सामवेद गाना) साम(सामवेद) निर्वाणं(ज्ञानलक्ष्य) भेषजं(संसारदुःख को नाशा करनेवाला) भिषक्(दिव्या वैद्यी) सन्यासकृत्(सन्यास आश्रम का अध्यक्ष) शमः(निश्शाब्दी) शान्तः(शान्त) निष्ठा(निष्ठा) शान्तिः(शान्ति) परायणं(अन्तिमलक्ष्य)
ए बारह नाम मणिपुर चक्र का स्पंदन करेगा!
63)शुभांगः शान्तिदः स्रष्टा कुमुदः कुवलेशयः गोहितः गोपतिः गोप्ता वृषभाक्षः वृषप्रियः
शुभांगः(शुभ अंगोवाला) शान्तिदः(शान्तिप्रदाता) स्रष्टा(सृष्टिकर्ता) कुमुदः(अपना स्रष्टि को आनंदित करनेवाला) कुवलेशयः(अनंत करके शेषनाग का उप्पर शोनेवाला) गोहितः(इन्द्रियों का हित) गोपतिः(इन्द्रियों का भरता—मनस) गोप्ता वृषभाक्षः(धर्मरक्षक) वृषप्रियः(धर्मं को आदरण करनेवाला)
ए दस नाम मूलाधारचक्र का स्पंदन करेगा!  
64)अनिवर्ती निवृत्तात्मा संक्षेप्ता क्षेमकृत् शिवः श्रीवत्सवक्षाः श्रीवासः श्रीपतिः श्रीमातांवरः 
अनिवर्ती(निश्चयी ) निवृत्तात्मा(विषयो में निवृत्ति) संक्षेप्ता(अन्तर्यामी) क्षेमकृत्(साधको को भलाई करनेवाला) शिवः(मंगळस्वरूप) श्रीवत्सवक्षः(पवित्र वक्ष जिस को है) श्रीवासः(पवित्रवासी) श्रीपतिः(पवित्रता को भर्ता) श्रीमातांवरः(पवित्र मनस्को को वर)
ए नौ नाम मणिपुरचक्र का स्पंदन करेगा!
65)श्रीदःश्रीशः श्रीनिधिः श्रीविभावनः श्रीधरः श्रीकरः श्रेयः श्रीमान् लोकत्रयाशयः 
श्रीदः(पवित्रता साधको को देनेवाला)श्रीशः(पवित्रता का प्रभु)  श्रीनिधिः(पवित्रता का निधि) श्रीविभावनः(पवित्रता साधको को देनेवाला) श्रीधरः(पवित्रता को  धरनेवाला) श्रीकरः(पवित्रता करनेवाला) श्रेयः(मुक्तिप्रदायक) श्रीमान्(पवित्र मन को साधको को देनेवाला) लोकत्रयाशयः(तीनो लोको का आश्रयी)
ए दस नाम मणिपुरचक्र का स्पंदन करेगा! 
66)स्वक्षः स्वंगःशतानन्दः नन्दिः ज्योतिर्गनेश्वरः विजितात्मा विधेयात्मा सत्कीर्तिः छिन्नसंशयः
स्वक्षः(सुंदर नेत्रयुक्ता) स्वंगः(सुंदर अंगोंवाला)शतानन्दः(आनंदस्वरूपी) नन्दिः(आनंदमूर्ती) ज्योतिर्गनेश्वरः(प्रकाशो का प्रभु) विजितात्मा(इन्द्रियजय) विधेयात्मा(साधको का विजय) सत्कीर्तिः(सत्कीर्तिमान) छिन्नसंशयः(संशयरहित)
ए नौ नाम मणिपुरचक्र का स्पंदन करेगा! 
67)उदीर्णः सर्वतश्चक्षुः अनीशः शाश्वतस्थिरः भूशयः भूषणः भूतिः विशोकः शोकनाशनः
उदीर्णः(उत्तमोत्तम आध्यत्मिकता) सर्वतश्चक्षुः(हर दिशा में नेत्र) अनीशः(सर्वोत्तम) शाश्वतस्थिरः(नित्य स्थिरत्वता) भूशयः(भूमि का आधार) भूषणः(जगत का आभरण) भूतिः(पवित्र स्थितिमान) विशोकः(शोकरहित) शोकनाशनः(शोकनाशक)     
ए नौ नाम अनाहतचक्र का स्पंदन करेगा!
68)अर्चिष्मान् अर्चितः कुम्भः विशुद्धात्मा विशोधनः अनिरुद्धः अप्रतिरथः प्रद्युम्नः अमितविक्रमः
अर्चिष्मान्((अद्भुत प्रकाश) अर्चितः(पूजनीय) कुम्भः(प्रप्रथम कळश) विशुद्धात्मा(विशुद्धात्म) विशोधनः(लयकारक) अनिरुद्धः(सूक्ष्मातिसूक्ष्म) अप्रतिरथः(अजेय) प्रद्युम्नः(ऐश्वर्यवान) अमितविक्रमः(सर्वशक्तिमान)
ए नौ नाम अनाहतचक्र का स्पंदन करेगा! 
69)कालनेमिनिहा वीरः शौरिः शूरजनेस्वरः त्रिलोकात्मात्रिलोकेशः केशवः केशिहा हरिः 
कालनेमिनिहा(क्रियायोगसाधाको का काल को वध करनेवाला) वीरः(वीर) शौरिः(शूर) शूरजनेस्वरः(शूरजनो का प्रभु) त्रिलोकात्मा(स्थूल सूक्ष्म और कारण लोको का आत्मा) त्रिलोकेशः(स्थूल सूक्ष्म और कारण लोको का प्रभु) केशवः(अंतः और बहिर शातृवो का नाशक) केशिहा(तमोगुण संहारक) हरिः(भवरोगनाशक)
ए नौ नाम अनाहतचक्र का स्पंदन करेगा! 
70)कामदेवः कामपालह कामी कान्तः कृतागमः अनिर्देश्यवपुः विष्णुः वीरः अनन्तः धनंजयः 
कामदेवः(धर्मबद्ध कामं) कामपालह(धर्मबद्ध कामों का पूरा करनेवाला)) कामी(त्रुप्तिमान) कान्तः(अमिता सुन्दर) कृतागमः(वेदकर्ता) अनिर्देश्यवपुः(वर्णनारहित) विष्णुः(सर्वव्यापी) वीरः(वीर) अनन्तः(अनन्त) धनंजयः(अर्जुन—इन्द्रियजयी)
कामदेवः कामपालह कामी कान्तः कृतागमः अनिर्देश्यवपुः छे नाम मणिपुरचक्र का स्पंदन करेगा!
विष्णुः वीरः अनन्तः धनंजयः चार नाम अनाहतचक्र का स्पंदन करेगा!
71)ब्रह्मण्यः ब्रह्मकृत् ब्रह्मा ब्रह्म  ब्रह्मविवर्धनः ब्रह्मवित् ब्राह्मणः ब्रह्मी ब्रह्मज्ञः ब्राह्मणप्रियः 
ब्रह्मण्यः(ब्रह्मज्ञों को आदरण करनेवाला)  ब्रह्मकृत्(ब्रह्मज्ञों का रचयिता) ब्रह्मा(सृष्टिकर्ता) ब्रह्म(सृष्टिकर्ता)  ब्रह्मविवर्धनः(ब्रह्मज्ञों को आदरण करनेवाला) ब्रह्मवित्(ब्रह्मज्ञान जाननेवाला) ब्राह्मणः(ब्रह्मज्ञान जाननेवाला) ब्रह्मी(सृष्टिकर्ता)ब्रह्मज्ञः(ब्रह्मज्ञ) ब्राह्मणप्रियः(ब्रह्मज्ञों को आदरण करनेवाला)
ए दस नाम क्रमशः अवरोहणा क्रम में विशुद्ध अनाहत और मणिपुरचक्रों को स्पंदन करेगा! ब्रह्मग्रंथी विच्छेदन का सहायता करेगा)
72)महाक्रमःमहाकर्मा महातेजाः महोरगः महाक्रतुः महायज्वा महायज्ञः महाहविः 
महाक्रमः(महा क्रमशिक्षण)महाकर्मा(महा कर्मो करनेवाला) महातेजाः(महा तेजवान) महोरगः(महासर्प) महाक्रतुः(महायज्ञ) महायज्वा(महायज्ञों करनेवाला) महायज्ञः(महायज्ञ) महाहविः (महाहविस)  
ए आठ नाम अनाहतचक्र को स्पंदन करेगा!
73)स्तव्यः स्तवप्रियः स्तोत्रं स्तुतिः स्तोता रणप्रियः पूर्णः पूरयिता पुण्यः पुन्यकीर्तिः अनामयाह
स्तव्यः(कीर्तिमान) स्तवप्रियः(प्रार्थना प्रिय) स्तोत्रं(स्तोत्र) स्तुतिः(स्तुति) स्तोता(पूजनीय)) रणप्रियः(क्रियायोग साधना रणप्रिय) पूर्णः(पूर्णरूपी) पूरयिता(साधको का धर्मबद्ध इच्छाओं पूरा करनेवाला) पुण्यः(पवित्र कीर्तिमान) पुण्यकीर्तिः(पवित्र) अनामयाह (नामरहित)
ए ग्यारह नाम अनाहतचक्र को स्पंदन करेगा!
74)मनोजनः तीर्थकरः वसुरेता वसुप्रदः वसुप्रदः वासुदेवः वसुः वसुमनाः हविः
मनोजनः(तीव्र विचारधारा) तीर्थकरः(ज्ञानप्रदाता) वसुरेता(स्वर्ण जैसा सार) वसुप्रदः(मोक्षप्रदाता) वसुप्रदः(मोक्षप्रदाता) वासुदेवः(कृष्ण)वसुः(अन्तर्यामी)वसुमनाः(सर्वव्यापी)हविः(हविस)
ए नौ नाम अनाहतचक्र को स्पंदन करेगा! 
75)सद्गतिः सत्कृतिः सत्ता सद्भूतिः सत्परायणःशूरसेनः यदुश्रेष्टः सन्निवासः मुयामुनः 
सद्गतिः(अच्छा लक्ष्य) सत्कृतिः(सत्कार्य करनेवाला) सत्ता(शक्तिमान) सद्भूतिः(अच्छा विभूतिया) सत्परायणः(साधको का अंतिम लक्ष्य) शूरसेनः(अमिता धैर्यवान) यदुश्रेष्टः(कृष्ण) सन्निवासः(सत निवासी) मुयामुनः(धर्मो से परिव्याह्रुत)
ए नौ नाम अनाहतचक्र को स्पंदन करेगा!
76)भूतावासः वासुदेवः सर्वासुनिलयः अनलः दर्पहा दर्पदः दुप्तः दुर्धरः अपराजितः
भूतावासः(भूतो का निवास) वासुदेवः(माया को अधीन में रखा हुआ) सर्वासुनिलयः(सर्व जीवशाक्तो का निलय) अनलः(अमिता कीर्ति और शक्तिमान) दर्पहा(अहम्कारनाशक) दर्पदः(धर्मियों का गर्वकारण) दुप्तः(अनंतानान्दा नषा में रहनेवाला) दुर्धरः(अग्राह्यारूपी) अपराजितः(अजेय)
ए नौ नाम अनाहतचक्र को स्पंदन करेगा!
77)विश्वमूर्तिः महामूर्तिः दीप्तमूर्तिः अमूर्तिमान् अनेकामूर्तिः अव्यक्तः शतमूर्तिः शाताननः  
विश्वमूर्तिः(ब्रह्मांडरूपी) महामूर्तिः(महारूपी) दीप्तमूर्तिः(प्रकाशमान मूर्ती) अमूर्तिमान्(रूपरहित) अनेकामूर्तिः (अनंतरूपी) अव्यक्तः(अव्यक्त) शतमूर्तिः(अनेकारूपी) शाताननः(क्रियायोगासाधाको को अमित इष्ट)
ए आठ नाम मणिपुरचक्र को स्पंदन करेगा!
78)एकः नैकः सवः कः किम् यत् तत् पदमनुत्तमम् लोकबंधुः लोकनाथः माधवः भक्तवत्सलः
एकः(एक ही है) नैकः(अनेक) सवः(सोमयज्ञ) कः(अत्युत्तम आनंद) किम्(ध्येयं) यत्(जो सर्व है) तत्(यह ओ ही है) पदमनुत्तमम्(उत्तमपदम) लोकबंधुः(सर्वो का बंधू)नाथ) लोकनाथः(सर्वो का नाथ) माधवः(भूमि का आधार) भक्तवत्सलः(क्रियायोग साधको का अत्यंत प्रीति दिखानेवाला)  
ए बारह नाम मणिपुरचक्र को स्पंदन करेगा!
79)सुवर्णवर्णः हेमान्गः वरान्गः चंदनाम्गादी वीरहा विषमः शून्यः घ्रुताशी अचलः चलः
सुवर्णवर्णः(सुन्दररूपी) हेमान्गः(सुन्दर अन्गोवाला) वरान्गः(अद्भुत अन्गोवाला)  चंदनाम्गादी(चंदन गंध जैसा   अन्गोवाला) वीरहा(दुष्टसम्हारक) विषमः(असमान) शून्यः(नाहे दिखनेवाला) घ्रुताशी(इच्छारहित) अचलः(न चलनेवाला) चलः(चलनेवाला)
ए दस नाम मणिपुरचक्र को स्पंदन करेगा!
80)अमानी मानदः मान्यः लोकस्वामी त्रिलोकध्रुक् सुमेधा मेधजः धन्यः सत्यमेथः धराधरः 
अमानी(अमिता साधुस्वभाव) मानदः(गरवाप्रदाता) मान्यः(पूजनीय) लोकस्वामी(सर्वलोको का स्वामी) त्रिलोकध्रुक्(तीन लोको का प्रभु) सुमेधा(शुद्ध ज्ञान) मेधजः(शुद्ध ज्ञान)  धन्यः(धन्य) सत्यमेथः(शुद्ध ज्ञान) धराधरः(भूमि का धरनेवाला)
ए दस नाम अनाहतचक्र को स्पंदन करेगा!
81)तेजोवृषः ध्रुतिधरः सर्वशास्त्रभृतांवरः प्रग्रहः निग्रहः व्यग्रः नैकशृंगः गदाग्रजः
तेजोवृषः(अद्भुत प्रकाशी) ध्रुतिधरः(अद्भुत प्रकाशी) सर्वशास्त्रभृतांवरः(महायोद्ध) प्रग्रहः(साधको का प्रार्थना को स्वीकार करनेवाला)  निग्रहः(निर्दिष्ट ग्रहणशक्ति) व्यग्रः(साधको का ध्र्मबद्धा इच्छाओं को प्रदान करनेवाला) नैकशृंगः(अनंतचेतना) गदाग्रजः(साधना का माध्यम से प्रसननाहोनेवाला)
ए आठ नाम क्रमशः विशुद्ध अनाहत और मणिपुर चक्र को अवरोहणा क्रम में स्पंदन करेगा! ब्रह्मा और रुद्रग्रंथी विच्छेदन का सहायता करेगा  
82)चतुर्मूर्तिः चतुर्बाहुः चतुर्व्यूहः चतुर्गतिः चतुरात्मा चतुर्भावः चतुर्वेदवित् एकपात्   
चतुर्मूर्तिः(जाग्रत स्वप्ना सुषुप्ति और तुरीय रूपी)चतुर्बाहुः(मनो बुद्धि चित्त अहंकार—चार भुज) चतुर्व्यूहः(जाग्रत स्वप्ना सुषुप्ति और तुरीय) चतुर्गतिः(जाग्रत स्वप्ना सुषुप्ति और तुरीय का अंतिम लक्ष्य) चतुरात्मा(जाग्रत स्वप्ना सुषुप्ति और तुरीय में स्थित) चतुर्भावः(धर्मं अर्थ कामा मोक्ष पुरुषार्थो का मूल) चतुर्वेदवित्(चारो वेदों का ज्ञानि) एकपात्(ब्रह्मांड केंद्र)
ए आठ नाम अनाहतचक्र को स्पंदन करेगा!
83)समावर्तः निवृत्तात्मा दुर्जयः दुरतिक्रमः दुर्लभः दुर्गमः दुर्गः दुरावासः दुरारिहा
समावर्तः(जीवितचक्र को अच्छा संभालनेवाला)  निवृत्तात्मा(विषयो में निवृत्ति) दुर्जयः(अजेय) दुरतिक्रमः(आक्रम नहीं करसकता) दुर्लभः(दुर्लभ) दुर्गमः(दुर्गम) दुर्गः(दुष्टों का उप्पर निर्दय) दुरावासः(परमात्मा का ह्रदय में स्थान लभ्य होना कष्टतर है) दुरारिहा(असुर स्म्हारक)
ए नौ नाम क्रमशः अनाहत और मणिपुर चक्र को अवरोहणा क्रम में स्पंदन करेगा! ब्रह्मा विच्छेदन का सहायता करेगा
84)शुभांगः लोकसारंगः सुतंतुः तंतुवर्धनः इन्द्रकर्मा महाकर्मा कृतकर्मा कृतागमः
शुभांगः(अच्छा अंगोवाला) लोकसारंगः(ॐकार का माध्यम से लभ्य होनेवाला) सुतंतुः(अच्छा व्याप्त हुआ) तंतुवर्धनः(सर्वो का पिता) इन्द्रकर्मा(अद्भुत कार्यो करनेवाला) महाकर्मा(अद्भुत कार्य करनेवाला) कृतकर्मा(कार्य परिपूर्णता) कृतागमः(वेदों का कर्ता)
ए आठ नाम क्रमशः विशुद्ध अनाहत और मणिपुर चक्र को अवरोहणा क्रम में स्पंदन करेगा! रूद्र और ब्रह्म ग्रंथी  विच्छेदन का सहायता करेगा 
85)उद्भवः सुन्दरः सुन्दः रत्नानाभः सुलोचनः अर्कः वाजसनः श्रुम्गी जयन्तः सर्वविज्ञयी  
उद्भवः(अंतिम लक्ष्य) सुन्दरः(सुन्दर) सुन्दः(दयाळु) रत्नानाभः(ज्ञानकेंद्र) सुलोचनः(नषा नेत्रों) अर्कः(सूर्या) वाजसनः(आहाराप्रदाता) श्रुम्गी(सर्व अंशो स्वयं ही) जयन्तः(अजेय) सर्वविज्ञयी(सर्वज्ञ)
ए दस नाम क्रमशः अनाहत और मणिपुर चक्र को अवरोहणा क्रम में स्पंदन करेगा!  ब्रह्मा ग्रंथी विच्छेदन का सहायता करेगा  
86)सुवर्णबिन्दुः अक्षोभ्यः सर्ववागीश्वरः महाह्लादः महागर्तः महाभूतः महानिधिः
सुवर्णबिन्दुः(सुवर्ण अन्गोवाला) अक्षोभ्यः(अचल) सर्ववागीश्वरः(अच्छा वक्ता) महाह्लादः(महा आनंद प्रदाता) महागर्तः(महा मार्ग) महाभूतः(महाभूत) महानिधिः(महानिधि)
ए सात नाम मणिपुरचक्र को स्पंदन करेगा!  
87)कुमुदः कुंदरः कुंदः पर्जन्यः पावनः अनिलः अमृताशः अमृतवपुः सर्वज्ञः सर्वतोमुखः
कुमुदः(भूमि को नुभव करनेवाला) कुंदरः(स्थूल में रहनेवाला) कुंदः(सुंदररूपी) पर्जन्यः(मेघ) पावनः(पवित्र) अनिलः(सर्वचेतनास्वरूप) अमृताशः(अमृतत्व चाहनेवाला)) अमृतवपुः(अमृतरूपी) सर्वज्ञः(सर्वज्ञ) सर्वतोमुखः(अनेक मुखी)
ए दस नाम क्रमशः अनाहत और मणिपुर चक्र को अवरोहणा क्रम में स्पंदन करेगा!  ब्रह्मग्रंथी विच्छेदन का सहायता करेगा 
88)सुलभः सुव्रतः सिद्धः शतृजित् शतृतापनः न्यघ्रोधः उदुंबरः अश्वत्थः चाणूरांध्रनिषूदनः 
सुलभः(क्रियायोगसाधको का सुलभसाध्य) सुव्रतः(सुव्रत) सिद्धः(सिद्ध) शतृजित्(क्रियायोगसाधको का शतृवो का जय करनेवाला) शतृतापनः(शतृवो का दहन करनेवाला) न्यघ्रोधः(अमर वृक्ष) उदुंबरः(अंतरिक्ष में रहनेवाला) अश्वत्थः(अश्वत्थ वृक्ष)  चाणूरांध्रनिषूदनः(कृष्ण)
ए नौ नाम अनाहताचक्र को स्पंदन करेगा!
89)सहस्रार्चिः सप्तजिह्वः सप्तैथाः सप्तवाहनः अमूर्तिः अनघः अचिन्त्यः भयकृत् भयनाशनः
सहस्रार्चिः(सहस्रारचकर) सप्तजिह्वः(सप्त जीबवाला अग्नि) सप्तैथाः(सप्त जीबवाला अग्नि) सप्तवाहनः(सप्त अश्वो का सूर्या) अमूर्तिः(रूपराहिता) अनघः(जिसका साथ तुलना नही कर सकता) अचिन्त्यः(मानावाचेतना का अतीत) भयकृत्(दुष्टों को भय देनेवाला) भयनाशनः(क्रियायोग साधको का भय नाशक)
ए नौ नाम क्रमशः अनाहत और मणिपुर चक्र को अवरोहणा क्रम में स्पंदन करेगा!  ब्रह्मग्रंथी विच्छेदन का सहायता करेगा  
90)अणुः बृहत् कृशः स्थूलः गुणभृत् निर्गुणः महान् अधृतः स्वधृतः स्वास्थः प्राग्वशः वंशवर्धनः
अणुः(सूक्ष्मातिसूक्ष्म) बृहत्(गरिष्ट को गरिष्ट) कृशः(कोमल) स्थूलः(स्थूल) गुणभृत्(गुणवान) निर्गुणः(गुणरहित) महान्(महात्मा) अधृतः(आधाररहित) स्वधृतः(स्वयं आधार) स्वास्थः(प्रकाशमान) प्राग्वशः(सनातन) वंशवर्धनः (वंश को वृद्धि करनेवाला)
ए बारह नाम क्रमशः अनाहत और मणिपुर चक्र को अवरोहणा क्रम में स्पंदन करेगा!  ब्रह्मग्रंथी विच्छेदन का सहायता करेगा 
91)भारभृत् कथितः योगी योगीशः सर्वकामदः आश्रमः श्रमणः क्षामः सुपर्णः वायुवाहनः
भारभृत्(जगत को धरनेवाला) कथितः(वेदपुरुष) योगी(योगी) योगीशः(योगीश) सर्वकामदः(सब धर्मबद्ध इच्छाओं को प्रदान करनेवाला) आश्रमः(आश्रम प्रदाता) श्रमणः(भक्तिरहित लोगो को दंडनन देनेवाला) क्षामः(भक्षक) सुपर्णः(स्वर्ण पत्ता) वायुवाहनः(वायु को क्रम में रखनेवाला)
ए बारह नाम क्रमशः अनाहत और मणिपुर चक्र को अवरोहणा क्रम में स्पंदन करेगा!  ब्रह्मग्रंथी विच्छेदन का सहायता करेगा
92)धनुर्धरः धनुर्वेदः दण्डः दमयिता दमः अपराजितः सर्वसहः नियंता नियमः यमः
धनुर्धरः(कारण सूक्ष्म और स्थूला मेरुदंड को धरनेवाला) धनुर्वेदः(उस मेरुदंड को क्रियायोगासाधाना में कैसा उपयोग करना है साधको को ज्ञानदेनेवाला)  दण्डः(दुष्टों को दण्ड देनेवाला) दमयिता(नियामक) दमः(सर्वजय) अपराजितः(पराजितरहित) सर्वसहः(सर्व भरनेवाला) नियंता(सर्वसंहाधिकारी) नियमः(सर्वनियामक) यमः(अमर)
ए दस नाम क्रमशः अनाहत और मणिपुर चक्र को अवरोहणा क्रम में स्पंदन करेगा!  ब्रह्मग्रंथी विच्छेदन का सहायता करेगा
93)सत्वावान् सात्विकः सत्यः सत्यधर्मपरायणः अभिप्रायः प्रियार्हः प्रियकृत् प्रीतिवर्धनः
सत्वावान्(अमितपराक्रमी) सात्विकः(अमित सात्विक) सत्यः(सत्य) सत्यधर्मपरायणः(सत्य उर धर्म को आचरण करनेवाला) अभिप्रायः(साधको का लक्ष्य) प्रियार्हः(प्रेम का अर्ह) प्रियकृत्(प्रेमदाता) प्रीतिवर्धनः(प्रीति को वृद्धि करनेवाला)
ए आठ नाम क्रमशः अनाहत और मणिपुर चक्र को अवरोहणा क्रम में स्पंदन करेगा!  ब्रह्मग्रंथी विच्छेदन का सहायता करेगा  
94)विहायसगतिः ज्योतिः सुरुचिः हुतभुक् विभुः रविः विरोचनः सूर्यः सविता रविलोचनः
विहायसगतिः(आकाश में विहार करनेवाला) ज्योतिः(स्वयं प्रकाशी) सुरुचिः(सुरुचि) हुतभुक्(आहूतो को आस्वादन करनेवाला) विभुः(सर्वव्यापी) रविः(रवि) विरोचनः(नानाविध प्रकाश) सूर्यः(सूर्य) सविता(जगत का हेतु) रविलोचनः(सूर्या ही उनका नेत्र है)
ए दस नाम अनाहत चक्र को स्पंदन करेगा!
95)अनंतः हुतभुक् भोक्ता सुखदः नैकजः अग्रजः अनिर्विण्णः सदामर्षी लोकाधिष्टानं अद्भुतः
अनंतः(अनंत) हुतभुक्(आहुतियो को आस्वादन करनेवाला) भोक्ता(अनुभव करनेवाला)  सुखदः(सुखप्रदाता) नैकजः(परमात्मा) अग्रजः(अग्रज) अनिर्विण्णः(व्याकुलरहित) सदामर्षी(सदा दयाळु) लोकाधिष्टानं(लोको का आधारशक्ति) अद्भुतः(अद्भुत)
ए दस नाम अनाहत चक्र को स्पंदन करेगा!
96)सनात् सनातनतमः कपिलः कपिः अव्ययः स्वस्तिदः स्वस्तिकृत् स्वस्ति स्वस्तिभुक् स्वस्तिदक्षिणः 
सनात्(नित्य)सनातनतमः(अच्छा अशरीरी) कपिलः(सांख्यों में कपिलः)कपिः(सूर्या) अव्ययः(नाशरहित) स्वस्तिदः(शुभ आशीर्वचन प्रदाता) स्वस्तिकृत्(शुभ कार्य प्रदाता) स्वस्ति(शुभ) स्वस्तिभुक्(शुभनिवाशी) स्वस्तिदक्षिणः(शुभ प्रदाता)
ए दस नाम क्रमशः विशुद्ध अनाहत और मणिपुर चक्र को अवरोहणा क्रम में स्पंदन करेगा!  ब्रह्मग्रंथी विच्छेदन का सहायता करेगा 
97)अरौद्रः कुण्डली चक्री विक्रमी ऊर्जितशासनः शब्दातिगः शब्दसहः शिशिरः शर्वरीकः
अरौद्रः(शोकनाशक) कुण्डली(कुण्डलीशक्ति को अधीन में रखा) चक्री(सहस्रारचक्र) विक्रमी(विशिष्ट पराक्रमी) ऊर्जितशासनः(शक्ति को शासन करनेवाला) शब्दातिगः(अनिर्वचनीय) शब्दसहः(वेदों का लक्ष्य) शिशिरः(शीतल) शर्वरीकः(अन्धेरा का सृष्टिकर्ता)
ए नौ नाम विशुद्ध चक्र को  स्पंदन करेगा!   
98)अक्रूरःपेशलः दक्षः दक्षिणः क्षमिणांवरः विद्वत्तमः वीतभयः पुण्यश्रवणकीर्तनः
अक्रूरः(क्रूररहित)पेशलः(अमिता मृदुशाली) दक्षः(कार्यशीलता) दक्षिणः(दाता) क्षमिणांवरः(अमित क्षमागुण)  विद्वत्तमः(उत्तम ज्ञान) वीतभयः(भयरहित) पुण्यश्रवणकीर्तनः(पुण्यश्रवणकीर्तन)
ए आठ नाम क्रमशः अवरोहणा क्रम में विशुद्ध अनाहत और मणिपुर चक्रों को स्पन्दन करता है! रूद्र ब्रह्म ग्रंथि विच्छेदन का सहायता करेगा
99)उत्तारणः दुष्कृतिहा पुण्यः दुस्वप्ननाशनः वीरहा रक्षणः संतः जीवनः पर्यवस्थितः
उत्तारणः(रक्षक) दुष्कृतिहा(पापसम्हारी) पुण्यः(पुण्यमूर्ती) दुस्वप्ननाशनः(दुस्वप्ननाशक) वीरहा(दुष्टसंहारी) रक्षणः(रक्षक) संतः(धर्मी) जीवनः(परमात्मा) पर्यवस्थितः(सर्वव्यापी)
ए नौ नाम क्रमशः अवरोहणा क्रम में विशुद्ध अनाहत और मणिपुर चक्रों को स्पन्दन करता है! रूद्र ब्रह्म ग्रंथि विच्छेदन का सहायता करेगा
100)अनंतरूपः अनंतरश्री जितमन्युः भयापहः चतुरस्रः गभीरात्मा विदीशः व्यादिशः दिशाः   
अनंतरूपः(अनंतरूपी) अनंतरश्री(अनंतशक्तिमान) जितमन्युः(क्रोध को जयकिया) भयापहः(संसारभय को दूर करनेवाला)  चतुरस्रः(अद्भुत न्यायाधिकारी) गभीरात्मा(परमात्मा) विदीशः(कर्मफल देनेवाला) व्यादिशः(असमानसेनानी)दिशाः(सद्गुरु)
ए नौ नाम क्रमशः आरोहणा क्रम में विशुद्ध आज्ञा चक्रों को स्पन्दन करता है! रूद्र विष्णु ग्रंथि विच्छेदन का सहायता करेगा 
101)अनादिःभूर्भुवःलक्ष्मीः सुवीरः रुचिरान्गदः जननः जनजन्मादिः भीमः भीमपराक्रमः
अनादिः(आदिरहित)भूर्भुवः(क्रियाशक्ति)लक्ष्मीः(शक्तिप्रदाता) सुवीरः(सुवीर) रुचिरान्गदः(अद्भुतांगी) जननः(जगत्पिता) जनजन्मादिः(जीवकारक)भीमः(भयंकर)भीमपराक्रमः(भयंकरपराक्रमी)
ए नौ नाम क्रमशः आरोहणा क्रम में विशुद्ध आज्ञा चक्रों को स्पन्दन करता है! रूद्र विष्णु ग्रंथि विच्छेदन का सहायता करेगा
102)आधारनिलयः धाता पुष्पहासः प्रजागरः ऊर्ध्वगः सत्पथाचारः प्राणदः प्रणवः पणः
आधारनिलयः(सर्व का आधार) धाता(सर्व नियंत्रणाशक्ति) पुष्पहासः(पुष्प जैसा हास) प्रजागरः(नित्यजागरूक) ऊर्ध्वगः(उत्तमोत्तम) सत्पथाचारः(सत्प्रवर्तना) प्राणदः(प्राणप्रदाता) प्रणवः(ॐकार) पणः(उत्तम कार्याधिकारी)
ए नौ नाम क्रमशः आरोहणा क्रम में विशुद्ध आज्ञा चक्रों को स्पन्दन करता है! रूद्र विष्णु ग्रंथि विच्छेदन का सहायता करेगा  
103)प्रमाणं प्राणनिलयम् प्राणभृत प्राणजीवनः तत्वं तत्ववित् एकात्मा जन्ममृत्युजरातिगः  
प्रमाणं(ज्ञान का मार्ग) प्राणनिलयम्(प्राण का आवास) प्राणभृत(मुख्या प्राण का आवास)प्राणजीवनः(मुख्य प्राण) (प्राण का आवास) तत्वं(हम भी वह परमात्मा ही है) तत्ववित्(ज्ञानि) एकात्मा(एक ही आत्मा) जन्ममृत्युजरातिगः(जन्ममृत्युजरातीत)
ए आठ नाम क्रमशः आरोहणा क्रम में विशुद्ध आज्ञा चक्रों को स्पन्दन करता है! रूद्र विष्णु ग्रंथि विच्छेदन का सहायता करेगा  
104)भूर्भुवः स्वस्तरुः तारः सविता प्रपितामहः यज्ञः यज्ञपतिः यज्वा यज्ञांगः यज्ञवाहनः
भूर्भुवःस्वस्तरुः(तीनो लोको का मूलवृक्ष) तारः(दिशा निर्देशक) सविता(जगत्पिता) प्रपितामहः(दादा) यज्ञः(यज्ञ) यज्ञपतिः(यज्ञ का अधिकारी) यज्वा(यज्ञकर्ता) यज्ञांगः(यज्ञ का अंगो) यज्ञवाहनः(यज्ञ परिपूर्ण)
ए नौ नाम क्रमशः आरोहणा क्रम में विशुद्ध आज्ञा चक्रों को स्पन्दन करता है! रूद्र विष्णु ग्रंथि विच्छेदन का सहायता करेगा
105)यज्ञभृत् यज्ञकृत् यज्ञी यज्ञभुक् यज्ञसाधनः यज्ञांतकृत् यज्ञगुह्यं अन्नं अन्नादः एव च
 यज्ञभृत्(यज्ञरक्षक) यज्ञकृत्(यज्ञ रचयिता) यज्ञी(यज्ञों का अनुभव करनेवाला) यज्ञभुक्(यज्ञों का आस्वादन करनेवाला) यज्ञसाधनः(यज्ञों का द्रव्य) यज्ञांतकृत्((यज्ञों करनेवाला) यज्ञगुह्यं(यज्ञों का रहस्य) अन्नं(आहार) अन्नादः(एना भक्षक) एव च
ए नौ नाम क्रमशः आरोहणा क्रम में विशुद्ध आज्ञा चक्रों को स्पन्दन करता है! रूद्र विष्णु ग्रंथि विच्छेदन का सहायता करेगा    
106)आत्मयोनिः स्वयाम्जातः वैखनः सामगायनः देवाकीनन्दनः स्रष्टा क्षितीशः पापनाशनः
आत्मयोनिः(द्रव्यकारण) स्वयाम्जातः(स्वयंभू) वैखानः(उत्तमोत्तममार्ग—आत्मज्ञान) सामगायनः(सामवेदगायक)
देवाकीनन्दनः(कृष्ण) स्रष्टा(सृष्टिकर्ता) क्षितीशः(भूमि आधारशक्ति) पापनाशनः(साधको का पाप नाश करनेवाला)
ए आठ नाम क्रमशः अवरोहणा क्रम में विशुद्ध आज्ञा चक्रों को स्पन्दन करता है! रूद्र विष्णु ग्रंथि विच्छेदन का सहायता करेगा   
107)शंखभृत् नन्दकी चक्री शाम्गधन्वा गदाधरः राथान्गापाणिः अक्षोभ्यः सर्वप्रहरणायुधः
शंखभृत्(पान्चजन्यशंख धरनेवाला—पंचमहाभूतो से सृष्टि रचनेवाला) नन्दकी(अज्ञान नाशक) चक्री(सहस्रारचक्र धरनेवाला) शाम्गधन्वा(योगमय मेरुदंड धरनेवाला)  गदाधरः(कौमोदकी नाम का गदा धरनेवाला—बलवान) राथान्गपाणिः(योगसाधना को अनुकूल शरीर और अँग वाला)  अक्षोभ्यः(व्याकुलातारहित) सर्वप्रहरणायुधः(सर्व जितने के आयुधो धरनेवाला)
ए आठ नाम क्रमशः अवरोहणा क्रम में विशुद्ध आज्ञा चक्रों को स्पन्दन करता है! रूद्र विष्णु ग्रंथि विच्छेदन का सहायता करेगा 


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