शरीर विज्ञानशास्त्र—क्रियायोग Part 4
क्रियायोग परमात्मा ही आदिपुरुष है ! पराप्रकृती ही राधा है ! प्रत्येक जीवात्मा परमात्मा यानी उन्ही का अंश है ! कर्मा का अनुसार जन्म आएगा! गृह और राशियों नर को अपना अपना कर्मा का अनुसार अम्गीक्रुत होने पर, सूक्ष्म शरीर मात्रुयोनी में प्रवेश करके स्थूलशरीर निर्माण के लिए उपयुक्त करेगा! स्थूल और सूक्ष्म शरीर दोनों जन्मकारक अथवा जन्मा हेतु प्रारब्धकर्म संपूर्ण होने से अलग होना ही मरण का अर्थ है! मनुष्य सजीव होने यानी जीवित समय में ही चेतना प्रेरणा से शरीर को आत्म से अलग होने का स्थिति पहुँचने से मरण का बाधा या दुःख नहीं होगा ! परंतु ऐसा स्थिति पहुँचने के लिए अनुशासन पूर्वक (disciplined) नियमानुसार(regular) दृढ निश्चयता से साधना करना अत्यंत आवश्यक है! सद्गुरु का कृपा से मूलाधार, स्वाधिष्ठानं, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, और आज्ञा चक्रों को यानी इन चक्रोंवाली मेरुदंड को शुद्ध करना, और साधक का अन्दर निक्षिप्त हुआ सहज अनन्तशक्ति को प्रज्वारिल्ला करना चाहिए! इस का हेतु साधक को 1) ज्योतिदर्शन , 2) शब्द , और 3) प्रकाम्पनो यानी स्पं