श्रीविद्या उपासना
श्रीविद्या उपासना परा पश्यंति प्रिया वैखरी श्री मंजुला मध्यमा करुणा कटाक्ष लहरी कात्यायनी भारती दुर्गांबा नवकोटिमूर्ति सहिता मांपाही माहेश्वरी वेदांत का परमार्थ अद्वैत सिद्धांत ही है! हर एक विचार का पीछे प्रणव नाद अथवा ॐकार इस का समर्थन करता है! वेदांता का प्रणव नाद ॐकार है! ह्रीम् और अहम् दोनों शिव का बीजाक्षर है! प्रणव का अंत बिंदु अथवा शक्ति है! सभी का द्रव्य कारण ( material cause) बिंदु अथवा शक्ति है! सर्वव्यापी परब्रह्मन नियमरहित है! परब्रह्मन से ही परमसत्य ( entities) और नियमसहित सत्यों सभी पाए जाते है! जो दिखाई दे रही चराचर जगत सर्वं इस अनंत पराबिंदु का ही भाग है! शक्ति और शिव का अंतर्भाग सृष्टि और लया है! वैभव , कृपा , और सौंदर्य का साथ मिला हुआ इस आदिशक्ति नित्यासंतोषी है! हर एक मनुष्य जानेमे और अंजाने में आनंद ही चाहेगा! यह ही सनातन वैदीक धर्मं का सार है! अन्यदेव तद्विदिता दथो अविदिता दथि इति शुश्रुम पूर्वेशाम येन स्तद्व्याच चक्षिरे --- केन 4.1 परब्रह्मण जो ज्ञात है उस से निश्चय प्रकार से भिन्न है , और जो अंजाम है उस से अतीत है!